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बुधवार, 19 जनवरी 2022

3278..शब्द और मायने सज रहे..

 ।। उषा स्वस्ति।।

वायु बहती शीत-निष्ठुर!

ताप जीवन श्वास वाली,

मृत्यु हिम उच्छवास वाली।

क्या जला, जलकर बुझा, ठंढा हुआ फिर प्रकृति का उर!

वायु बहती शीत-निष्ठुर!

पड़ गया पाला धरा पर,

तृण, लता, तरु-दल ठिठुरकर

हो गए निर्जीव से--यह देख मेरा उर भयातुर!

हरिवंशराय बच्चन

खूबसूरत अल्फाज़ो के साथ..मौसम का तकाज़ा है सो.. धूप के सुनहरे धागों से आज की प्रस्तुतियाँ  का आंनद लें..✍️

🏵️🏵️

शब्द और मायने

बांध कर रखे थे गिरह में 
मैंने दोनों को शब्द और उनके मायने
शब्द तो है यहीं मगर
जाने कहाँ उनके मांयने 
खो गए हैं 
गिर गए शायद कहीं

🏵️

वादाखिलाफी


 




बड़े अरमां रहे तुम स
कि तुम पूरा करोगे
अधूरे अरमान उसके
 बीते कल में जो सजाए उसने |
पर तुम भूल गए  
न जाने कैसे हुए बेखबर
 उसके अरमानों से |
अब क्या सोचूँ

🏵️

कल बच्चे खेलेंगे तो हम ठीक से अपने बचपने में लौट सकेंगे






जाना और भीतर से गुना तो काम बढ़ गया ऐसी अनुभूति हुई। विद्यार्थियों को ज़िन्दगी देना और मानव बनाना बड़ा काम है। अपनी अयोग्यताओं के साथ स्कूल परिसर में घुसना बेमानी लगने लगा है। कल शाम 'गूगल मीट' पर उत्तराखंड में 'दीवार पत्रिका' को अभियान का रूप देने वाले ख्यात कवि और आन्दोलननुमा व्यक्तित्व महेश पुनेठा को सुना। क्या जबर इंसान हैं। विचारों से लकदक। एकाएक विचार कौंध गया कि कवि के भीतर एक शानदार अध्यापक बसता है।

🏵️

वार्षिक संगीतमाला 2021 की शुरुआत 

राताँ लंबियाँ से Raatan Lambiyan

इस बार थोड़ी देर से ही सही वार्षिक संगीतमाला 2021 का आगाज़ हो रहा है थोड़े बदले हुए रूप में जिसके..

🏵️

तुमको छोड़ कर सब कुछ लिखूंगा :) 













कोरा कागज़ और कलम                        
शीशी में है कुछ स्याही की बूंदे
जिन्हे लेकर आज बरसो बाद
बैठा हूँ फिर से
कुछ पुरानी यादें लिखने..

🏵️

जाते -जाते ..अंदाज़े ग़ाफ़िल से..बस इतना कि..

कभी उधार की नज़रों से मत निहार मुझे 

किए हैं वैसे तो रुस्वा हज़ार बार मुझे
समझ रहे हैं मगर दोस्त ग़मग़ुसार मुझे

बहुत यक़ीन है नज़रों पे तेरी जानेमन
कभी उधार की नज़रों से मत निहार मुझे..
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️




10 टिप्‍पणियां:

  1. सुनहरा आगाज़
    वायु बहती शीत-निष्ठुर!
    पड़ गया पाला धरा पर,
    तृण, लता, तरु-दल ठिठुरकर
    हो गए निर्जीव से--
    यह देख मेरा उर भयातुर!
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. मेरी कविता शब्द और मायने को स्थान देने के लिए आपका धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  3. हमेशा की तरह उम्दा व पढ़ने योग्य रचनाएँ!
    आभार🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत अच्छी लिंक्स |मेरी रचना को सरहान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं
  5. वायु बहती शीत-निष्ठुर!
    पड़ गया पाला धरा पर,
    तृण, लता, तरु-दल ठिठुरकर
    हो गए निर्जीव से--

    वाह ! मौसम के अनुरूप बच्चन जी की ये कविता। मेरी लिंक को भी स्थान देने का आभार।

    जवाब देंहटाएं
  6. खूबसूरत संकलन मेरी कविता को स्थान देने के लिए धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं

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