।। उषा स्वस्ति।।
वायु बहती शीत-निष्ठुर!
ताप जीवन श्वास वाली,
मृत्यु हिम उच्छवास वाली।
क्या जला, जलकर बुझा, ठंढा हुआ फिर प्रकृति का उर!
वायु बहती शीत-निष्ठुर!
पड़ गया पाला धरा पर,
तृण, लता, तरु-दल ठिठुरकर
हो गए निर्जीव से--यह देख मेरा उर भयातुर!
हरिवंशराय बच्चन
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शब्द और मायने
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वादाखिलाफी
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कल बच्चे खेलेंगे तो हम ठीक से अपने बचपने में लौट सकेंगे।
जाना और भीतर से गुना तो काम बढ़ गया ऐसी अनुभूति हुई। विद्यार्थियों को ज़िन्दगी देना और मानव बनाना बड़ा काम है। अपनी अयोग्यताओं के साथ स्कूल परिसर में घुसना बेमानी लगने लगा है। कल शाम 'गूगल मीट' पर उत्तराखंड में 'दीवार पत्रिका' को अभियान का रूप देने वाले ख्यात कवि और आन्दोलननुमा व्यक्तित्व महेश पुनेठा को सुना। क्या जबर इंसान हैं। विचारों से लकदक। एकाएक विचार कौंध गया कि कवि के भीतर एक शानदार अध्यापक बसता है।
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वार्षिक संगीतमाला 2021 की शुरुआत
राताँ लंबियाँ से Raatan Lambiyan
इस बार थोड़ी देर से ही सही वार्षिक संगीतमाला 2021 का आगाज़ हो रहा है थोड़े बदले हुए रूप में जिसके..
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तुमको छोड़ कर सब कुछ लिखूंगा :)
कोरा कागज़ और कलम
शीशी में है कुछ स्याही की बूंदे
जिन्हे लेकर आज बरसो बाद
बैठा हूँ फिर से
कुछ पुरानी यादें लिखने..
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जाते -जाते ..अंदाज़े ग़ाफ़िल से..बस इतना कि..
सुनहरा आगाज़
जवाब देंहटाएंवायु बहती शीत-निष्ठुर!
पड़ गया पाला धरा पर,
तृण, लता, तरु-दल ठिठुरकर
हो गए निर्जीव से--
यह देख मेरा उर भयातुर!
आभार..
सादर..
मेरी कविता शब्द और मायने को स्थान देने के लिए आपका धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह उम्दा व पढ़ने योग्य रचनाएँ!
जवाब देंहटाएंआभार🙏🙏
बेहतरीन चयन । 👌👌👌
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएं बहुत आकर्षक।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लिंक्स |मेरी रचना को सरहान देने के लिए आभार सहित धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत संकलन
जवाब देंहटाएंवायु बहती शीत-निष्ठुर!
जवाब देंहटाएंपड़ गया पाला धरा पर,
तृण, लता, तरु-दल ठिठुरकर
हो गए निर्जीव से--
वाह ! मौसम के अनुरूप बच्चन जी की ये कविता। मेरी लिंक को भी स्थान देने का आभार।
खूबसूरत संकलन मेरी कविता को स्थान देने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसुंदर, पठनीय सूत्रों का चयन ।
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