हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...
इस महामारी काल में अनेक घटना देखने को मिला, जिसके लिए ऊपरवाले पर करने को जी करता है..
लक्ष्य मूल्य और साधन
किसने तुम्हें दिए थे ?
आस्था विश्वास भरकर
रास्ते किसने खोल दिए थे?
हो आज आधुनिक तुम
गाल पीटते हो!
जीवित और मृत दोनों सञ्जय को बुलाएं…
कि वे कोर्ट में हाजिर हों…
सुना!
कि इतिहास में जिनकी कब्रें दफन हैं…
सञ्जय, विद्याधर और दामोदर
वो निकल आये हैं बाहर
ऐसे जिंदा रहने से नफरत है मुझे
जिसमें हर कोई आए और मुझे अच्छा कहे
मैं हर किसी की तारीफ़ करते भटकता रहूं
मेरे दुश्मन न हों और मैं इसे अपने हक में बड़ी बात मानूं...
सच बोलकर संभव नहीं था सच को बताना
इसीलिये मैंने चुना झूठ का रास्ता...
युवा कवि कर्मानन्द आर्य का दूसरा कविता संग्रह है। इसका शीर्षक इतना आकर्षक और मौजूं है कि संग्रह में संकलित कविताओं के निहितार्थ को समझने का केन्द्र बिन्दु-सा प्रतीत होता है। दो कविता-संग्रहों की इस कविता-यात्रा में ‘डरी हुई चिड़िया का मुकदमा’ कवि के विचार-बोध के परिपक्व होने की गवाही देता है। किसी युवा कवि के दूसरे ही कविता-संग्रह की रचनाएँ इतनी स्तरीय हों कि ढूँढने पर भी कोई कविता उस स्तर से नीचे की न मिले, ऐसा बहुत कम होता है।
जबकि थोड़ी देर पहले ही उसने महसूस किया था कि इधर का गाँव काफी हद तक बदल गया था, अब वहाँ पहले जैसा बहुत कम ही बचा था. ज्यादातर नया-नवेला और सुविधा संपन्न. कच्ची मिट्टी के घर, लिपे-पुते फर्श, दीवारों के मांडने, खपरैलों और फूस की छतें, घंटियाँ टुनटुनाते मवेशियों के झुंड, काँच की अंटिया, लट्टू और गिल्ली-डंडा खेलती टुल्लरें, पनघट, चौपाल और वैसी जीवंत गलियाँ अब वहाँ नहीं थीं. न गाँव पानीदार था और न लोग ही पानीदार बचे थे. उनके चेहरों का नूर खो गया था, उमंग और हंसी-ठठ्ठा भाप बनकर कहीं उड़ गए थे।
जानदार अंक
जवाब देंहटाएंसादर नमन..
बहुत सुंदर संकलन।
जवाब देंहटाएंसुन्दर संकलन
जवाब देंहटाएंसुंदर सराहनीय अंक ।
जवाब देंहटाएंअद्भुत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसादर..
आभार🙏
अति सुन्दर एवं पठनीय सूत्रों तक ले जाने के लिए हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंअत्यंत सारगर्भित सूत्रों से सजी हमेशा की तरह सराहनीय अंक दी।
जवाब देंहटाएंकविता पर मुकदमा,
खिरनी कहानी बहुत अच्छी लगी।
प्रणाम दी
सादर।
सादर प्रणाम प्रिय दीदी 🙏🙏
जवाब देंहटाएंन इतने रोचक मुक़दमे पता थे न इतनी विस्मय भरी रचनाएं👍👍 आभार आभार आपका 🙏🙏❤️❤️🌷🌷
सुना!
जवाब देंहटाएंकि इतिहास में जिनकी कब्रें दफन हैं…
सञ्जय, विद्याधर और दामोदर
वो निकल आये हैं बाहर
उन कविताओं को खोजने
जो या तो इतिहास में लिखी गयी थी इन्हीं नामों पर और
वर्तमान में लिखी जा रही हैं
इन्हीं नामों से.///
👌👌👌👌🙏
सच बोलकर संभव नहीं//
जवाब देंहटाएंथा सच को बताना
इसीलिये मैंने चुना झूठ का रास्ता... कविताओं का....
चंद्रकांतु देवताले जी 🙏🙏
बहुत बढियां संकलन
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