शीर्षक पंक्ति: डॉ.अभिज्ञात जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
73 वे गणतंत्र दिवस समारोह की गरिमामयी ख़ुशबू बिखेरती रचनाओं के साथ गुरुवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ।
आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
हम सूरज की संतानों को!/देशभक्ति गीत/डॉ.अभिज्ञात
एकसूत्रता क्या होती है
भारत यह दिखलाता है।
इंद्रधनुष कैसे बनता है
यह सबको सिखलाता है।
गीत : अपना ये गणतंत्र पुकारे : संजय कौशिक 'विज्ञात'
पल्लवन इस वट बृक्ष का,
बुद्धि शक्ति तरकीब से हुआ।
तब इस सघन छाया में बैठना,
हम सबको नशीब हुआ।
संविधान की हर शाखा ने
भुजबल,विवेक के शस्त्र को साधो,
समर शेष है! सज हो साधु,
तन-मन-धन बलिदान करो अभी,
जन-गण का कल्याण करो अभी,
भारती के हे सुयश सारथी
शौर्य-शिखर पर बढ़ा दे टोला।
भारत के हे भाग्यविधाता,
जागो हे नवयुग के दाता।
और अब चलते-चलते राजस्थानी लोक जीवन की खट्टी-मीठी बातें कहता है एक गीत-
क्षणभंगुर माणस रो जीवण
मोहमाया मह अटक्यो।
दो जूणा री रोट्यां खातिर
छोड़ ठिकाणा भटक्यो।
चील कागला बैठ ताक में
बगुला भगता री जात रही।।
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आज बस यहीं तक
फिर मिलेंगे आगामी गुरुवार।
रवीन्द्र सिंह यादव
एकसूत्रता क्या होती है
जवाब देंहटाएंभारत यह दिखलाता है।
इंद्रधनुष कैसे बनता है
यह सबको सिखलाता है।
शानदार अंक..
सादर..
सराहनीय संकलन मेरे सृजन को स्थान देने हेतु बहुत बहुत शुक्रिया सर।
जवाब देंहटाएंसादर
खूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसादर आभार🙏
राष्ट्रपर्व गणतंत्र दिवस पर, राष्ट्र चेतना और देश भक्ति से ओत प्रोत रचनाओं का संकलन, सभी कलमकारों को शुभकामनाएं,
जवाब देंहटाएंमेरी रचना सम्मलित करने हेतु आभार
बहुत सुंदर, सराहनीय और पठनीय अंक । बहुत शुभकामनाएँ आपको आदरणीय सर 👏👏
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी सामयिक हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह!खूबसूरत प्रस्तुति अनुज रविंद्र जी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन
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