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सोमवार, 8 जून 2020

1788..हम-क़दम का एकसौ बाईसवाँ अंक..समर

सादर अभिवादन
लोग शायद समझ नहीं पाए
समर का तात्पर्य
कोई रचना नहीं दिखी
और न ही आई
खुदाई पर मिली रचनाएँ
खुदाई मे सहयोगी सखी श्वेता सिन्हा
पढ़िए...अतीत की रचनाएँ


शुरुआत कालजयी रचना से

 कवि श्रेष्ठ रामधारी सिंह "दिनकर"
समर शेष है, जनगंगा को खुल कर लहराने दो
शिखरों को डूबने और मुकुटों को बह जाने दो
पथरीली ऊँची जमीन है? तो उसको तोडेंगे
समतल पीटे बिना समर कि भूमि नहीं छोड़ेंगे

समर शेष है, चलो ज्योतियों के बरसाते तीर
खण्ड-खण्ड हो गिरे विषमता की काली जंजीर

आदरणीय वीरेन्द्र डंगवाल
है हवा कठिन, हड्डी-हड्डी को ठिठुराती
आकाश उगलता अंधकार फिर एक बार
संशय विदीर्ण आत्मा राम की अकुलाती

होगा वह समर, अभी होगा कुछ और बार
तब कहीं मेघ ये छिन्न-भिन्न हो पाएँगे

तहखानों से निकले मोटे-मोटे चूहे
जो लाशों की बदबू फैलाते घूम रहे
हैं कुतर रहे पुरखों की सारी तस्वीरें
चीं-चीं, चिक-चिक की धूम मचाते घूम रहे
..
उपरोक्त दोनों रचनाएं 
युद्ध के परिप्रेक्ष्य में लिखी गई है
.....
नियमित रचनाओें की श्रृंखला अभी रीती सी है
.....

आदरणीय साधना वैद
इस महासमर में प्रभु की इतनी
प्रबल और शक्तिशाली सेना के सामने
आम इंसान की यह निर्बल असहाय सेना
कहीं नहीं ठहर सकती लेकिन इस
आम इंसान में हिम्मत और हौसला बहुत है,
इसकी जिजीविषा ज़बरदस्त है !
जो ये एक बार ठान ले तो 
हर आपदा को परे ढकेल


आदरणीय विश्वमोहन जी

आज विधना ने अचानक कौन सा है चित्र उकेरा?
जीवन-रण में काल खड्ग से टकरा गया तलवार तेरा.
समर के इस विरल पल मे गुंजे अट्टाहास तेरा,
कालजयी, पराक्रमी-परंतप, अरि-दल बने ग्रास तेरा.
टूटना पर झुक  न जाना, तू याद  कर मेरा सखा है.
छोड़, मेरे आंसूओं में क्या रखा है!

आदरणाय मीना शर्मा जी
गलीचे मखमली,कलियाँ,
नर्म फूलों की पंखुड़ियाँ,
नहीं कदमों तले हों, तो
सफर तजना है कायरता।।
यही तो कर्मभूमि है....

आदरणीय पुरूषोत्तम कुमार सिन्हा

जीवन एक समर है, हर संकट से तू लड़ता चल,
आत्मबल से हर क्षण को विजित करता चल।

जीवन एक प्यार है, दिलों से नफरत को तू तजता चल,
कर हिय को झंकृत द्वेश घृणा पर विजय पाता चल।

आदरणीय ऋता मधु शेखर
होती है खामोश जब, चूड़ी की झनकार
विधवा सूनी माथ पर, लिखती है ललकार

सिर से साया उठ गया, छूट गया है साथ
आज सलामी दे रहे, नन्हे नन्हे हाथ


आदरणीय आँचल पाण्डेय
है लाक्षागृह में लपट उठी,
फिर शकुनि की बिसात बिछी,
पक्षों में दोनों अधर्म खड़ा,
विदुरों का धर्म वनवास गया।
शांति का ना कोई दूत यहाँ,
कुरुक्षेत्र हुआ अंधकूप यहाँ।
क्या राष्ट्रप्रेम का शोर है?
ये क्षण का बस ढोंग है।

आदरणीय अभिषेक सिंह 'नीलांश'
जाने किस आवाज से वो हो जाएगा ख़ामोश ,
जाने किस एहसास से वो नामाबर हो जाये


आपको मालूम है हर पल है खुद से जंग ,
फिर भी तसल्ली को खुद में समर हो जाये

आदरणीय सुजाता प्रिया

उजड़े ना खेत- खलिहान।
जहाँ न रहेगी कोई बथान।
खेतों में फैकट्रियाँ लगेंगी।
नकली अनाज जहाँ बनेगें।
ऐसे जन पर कहर न करना।।
गाँव मेरे तू शहर न बनना।।

आदरणीय रूपचंद्र शास्त्री मयंक
लगा झटका-बढ़ा खटकाखनककर आइना चटका
बग़ावत कर रहीं अब पगड़ियाँदस्तारखानों की
सियासत के समर में मिट गयाअभिमान दल-बल का
अखाड़े में धुलाई हो गयीजब पहलवानों की

आदरणीय प्रीति सुराना
सैनिक की पत्नी के डायरी का पन्ना
अब बैठी हूँ तुम्हारे प्रतिमान
यानि यादों की किताब को थामें
जो तुम्हारी अनुपस्थिति में
एक मात्र सहारा है
मेरे सुख-दुख का,
यादों के भंवर से डूबती उतरती
बचती, संभलती,..
तुम्हारे बिना सब कुछ संभाल लेने हेतु कर्तव्यबद्ध हूँ,
अश्रु को तुम्हारे लक्ष्य हेतु
बाधक न होने देने को वचनबद्ध भी,
हर वचन निभाऊंगी,..

आदरणीय राजेंद्र शर्मा
क्रांति से भ्रांति मिटे है निकले घर से नाग है
माटी पर जो मर मिटा है,मिट्टी से अनुराग है
क्रांति से मिटती है खाई,क्रांति ने गरिमा लौटाई
क्रांति के आव्हान से हीहोते हम आजाद  है


आदरणीय सैलाना
सफ़र की क़ीमत थकन से न आँको
न छालों का, काँटों का
न पसीने की बूँदों का
किसी भी बैंक में लॉकर नहीं होता

क्यूँ करते हो रश्क देखकर 
इमारतें बुलन्द किसी की
यूँही नहीं होती हासिल मंज़िले
हौसला दिल में 'गर नहीं होता


आदरणीय भारती दास
जीवन रण में
आंखों से आंसू बहा रही थी.
द्रवित हो गई सरल सुनैना
भर आये थे उसके नैना
उसने कहा घर मेरे आना
काम काज में हाथ बंटाना.
कर्मठ कर्म करते रहते हैं


आदरणीय आशा लता सक्ससेना

समर क्षेत्र

वादा किया  है खुद से |
कायर पीठ दिखाकर
पीछे हट जाते हैं
पर हम पूरे  जोश से
खड़े हैं समर भूमि   में |
ईश्वर पर अटूट है श्रद्धा
समर में पीठ दिखा कर
भागेंगे नहीं कायर की तरह

यही वादा किया है खुद से |



आदरणीय सुबोध सिन्हा
सोचता हूँ कभी-कभी कि ..
लगभग हजार साल पहले
महमूद गजनवी के सोलहवें
आक्रमण के समय 1025 ईस्वी में
कोई ना कोई तो हमारा भी
एक अदना-सा पूर्वज रहा होगा ?
पर भला कौन रहा होगा ?
जिसके डी एन ए का अंश आज हमारा होगा
मुझे तो पता ही नहीं .. तनिक भी नहीं।
...
आज बस इतना ही
कल का अँक देखना न भूलें
123 वाँ विषय लेकर आ रहे हैं
भाई रवीन्द्र जी
सादर



13 टिप्‍पणियां:

  1. विषय बेहतरीन..
    सारी रचनाएं अप्रतिम..
    शुभकामनाएँ..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. खोदे गह्वर समर क्षेत्र का, शब्द सहेजे भुजबल के,
    पाञ्चजन्य का नाद गूँजे आज,पांच लिंक के हलचल में
    समर-भूमि का कालजयी उद्घोष करती रचनाओं से सजी बहुत सुंदर, पठनीय और संग्रहणीय प्रस्तुति। आभार और बधाई!!!

    जवाब देंहटाएं
  3. पठनीय और उपयोगी लिंक।
    --
    मेरी पोस्ट का लिंक लगाने के लिए धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  4. सुप्रभात
    सुन्दर प्रस्तुति |मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद सर|

    जवाब देंहटाएं
  5. सस्नेहाशीष संग शुभकामनाएं छोटी बहना

    समर पर स्मरणीय रचना .. सबको को साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌👌 सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई

    जवाब देंहटाएं
  7. आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! मेरी रचना को आज के अंक में सम्मिलित किया मन आनंदित हुआ ! सभी रचनाएं बहुत सुन्दर एवं सभी रचनाकारों का हार्दिक अभिनन्दन ! सप्रेम वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  8. समर समर्पित रचनायें ,बहुत ही सुंदर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  9. उत्खनन विभाग के प्रबंधकों को सच्चे दिल से सलाम है और सस्नेह धन्यवाद भी। मुझे तो याद भी नहीं था कि ये रचना 'समर' विषय से संबंधित हो सकती है। लॉकडाउन में मेरी कलम भी लॉक हो गई है दी।
    बहुत सुंदर प्रस्तुति। पाँच लिंकों की समर्पित टीम का पुनः पुनः आभार।

    जवाब देंहटाएं
  10. वाह दी !बेहतरीन प्रस्तुति।
    उम्दा रचनाओं का संगम ।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत सुन्दर प्रस्तुति सभी रचनाएँ अति ऊत्तम👌👌👌👌

    जवाब देंहटाएं

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