आज भूमिका में मेरी एक कविता
(मेरे ब्लॉग पर 17 दिसंबर
2017 में प्रकाशित )
विस्तारवादी सोच का
एक देश
हमारा पड़ोसी है
उसके यहाँ चलती तानाशाही
कहते हैं साम्यवाद,
हमारे यहाँ
लोकतांत्रिक समाजवाद के लबादे में
लिपटा हुआ पूँजीवाद।
इंच-इंच ज़मीं के लिए
उसकी लपलपाती जीभ
सीमाएँ लाँघ जाती है,
हमारी सेना
उसकी सेना को बिना हथियार के
उसकी सीमा में धकेल आती है।
कविवर अटल जी कहते हैं-
"आप मित्र बदल सकते हैं पड़ोसी नहीं,"
शीत-युद्ध समाप्ति के बाद
दुनिया में अब दो ध्रुवीय विश्व राजनीति नहीं।
शातिर पड़ोसी ने
भारत के पड़ोसियों
को
निवेश के नाम पर सॉफ़्ट लोन बाँटे
ग़ुर्बत में लोन और भारी हो गए / हो जाएँगे
सॉफ़्ट से व्यावसायिक
लोन हो गए / हो
जाएँगे
लोन न चुकाने पर
शर्तें बदल गयीं / बदलेंगीं
लीज़ के नाम पर कब्ज़ा होगा
चारों ओर से भारत को घेरने का
व्यावसायिक कारोबार के नाम पर
युद्धक रणनीति का इरादा होगा
और हम
सांप्रदायिक उन्माद और नफ़रत के छौंक-बघार लगी
ख़ूनी-खिचड़ी चाव से खा रहे होंगे ....
क्योंकि बकौल पत्रकार अरुण शौरी -
"इस देश की वर्तमान सरकार ढाई लोग चला रहे हैं।"
हैं ख़ुद मज़े में ढाई, जनविश्वास को धता बता रहे हैं।
©रवीन्द्र
सिंह यादव
आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-
मैं
अपनी
कलम
से
श्रृंगार
नहीं
लिखूँगा,
मैं
अपनी
कलम
का
आचार
बदल
दूँगा।
आज
से
प्रेम
का
व्यापार
नहीं
लिखूंगा,
मैं
अपनी
कलम
का
व्यवहार
बदल
दूँगा।
छोड़ गए साजन परदेशी
होंठों की मुस्कान गई।
विरह वेदना मुझको देकर ।
खुशियों की सौगात गई
उम्मीदों की बैठ तराजू
मन को हृदय तोलता है।
अँधियारे आँगन आ बैठा
अंतस मौन बोलता है।
इतिहास अगर दुहराओगे,
उन्नीस सौ बासठ,सड़सठ का।
आठ अगर हम खड़े हुए तो,
खून बहाएँगे तुम अड़सठ का।
गलवन से तुम कदम हटा लो,
लेह और लद्दाख हमारा है।
कच्ची डोरियाँ पुनीत सूत से बँधे बँधन बाँधती
द्बेष-तृष्णा अंहकार के चलते वे रिश्ते आरियों से काटती।
और न जाने कितनी बार जाएगी वह छली
उजड़ी राह आँखों के कोर में खारा पानी लिए जली।
इस संदेह को बनाए
रखने में तथाकथित ‘उच्च’ और ‘बड़े’ लोगों ने अपनी कटुतापूर्ण भूमिका का निर्वहन किया|
बात-बात में उन्हें उनकी औकात में रहने की सीख दी गयी| उपदेश दिया गया| वे मजबूरी में
ही सही सार्थक दिनों की तलाश में भाग्य पर अविश्वास रख श्रम को महत्त्व दिए| यह भी
लोगों को सहन नहीं हुआ तो श्रम की विश्वसनीयता पर ‘डर’ फैलाया गया|
हम-क़दम का नया विषय
यहाँ देखिए
(मेरे ब्लॉग पर 17 दिसंबर 2017 में प्रकाशित )
बढ़िया उत्प्रेरक प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंसादर..
उम्दा लिंक्स चयन
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रस्तुतीकरण
वाह!सुंदर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत चर्चा प्रस्तुति
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