आज वर्ष का सब से लंबा दिन......
और सूर्य ग्रहण भी लग रहा है......
कल हमारे इस ब्लौग ने 1800 अंक भी पूरे कर लिये हैं.....
अंतराष्ट्रीय योग दिवस
हम आज क्या से क्या हुए,
भूले हुए हैं हम इसे,
है ध्यान अपने मान का,
हममें बताओ अब किसे!
पूर्वज हमारे कौन थे,
हमको नहीं यह ज्ञान भी,
है भार उनके नाम पर दो अंजली जल-दान भी।
हम हिन्दुओं के सामने आदर्श जैसे प्राप्त हैं-
संसार में किस जाती को, किस ठौर वैसे प्राप्त हैं,
भव-सिन्धु में निज पूर्वजों के रीति से ही हम तरें,
यदि हो सकें वैसे न हम तो अनुकरण तो भी करें।
साथ ही आज......
पितृ दिवस भी है.....
पिता पहचान हैं
पिता आकाश हैं,
आकाश में धूप हैं,
धूप में कवच हैं.
पिता मित्र हैं,
मित्रों में सुदामा हैं,
पिता ही श्रीकृष्ण हैं.
पिता उपनिषद हैं,
उपनिषदों में कठोपनिषद हैं,
कठोपनिषद में नचिकेता हैं.
पिता विश्वास हैं,
प्रेम के मधुमास हैं,
प्रेम के अहसास हैं.
पिता पहचान हैं,
पिता लुकमान हैं,
पिता के बिना हलकान हैं.
पिता हर्ष हैं,
विचार-विमर्श हैं,
भटकने लगूं तो परामर्श हैं.”
अब पेश है.......
मेरी पसंद......
हमने छोड़ दिया
हमने ये सोचके अब फैसला,तकदीर पे छोड़ दिया।
के उनको पा लेने की,बड़ी शिद्दत से तमन्ना की मैंने,
रातें पलकों में काटीं,बेचैन हो के करवटें बदलीं मैंने,
बार-बार दर्पण से,अपनी खूबसूरती की गवाही पूछी,
संकट काल में तो देश की सोच लो, अपने हित साधने के मौके तो आते रहेंगे
संकट काल में यह जरुरी है कि सरकार हर बात को सार्वजनिक ना करे ! साथ ही विपक्ष को भी अपनी जिम्मेदारी समझते हुए, सिर्फ विरोध के लिए सरकार की हर बात का विरोध ना कर सावधानी पूर्वक अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करनी चाहिए ! समय फिरते ही अपनी भड़ास निकालने का अवसर तो मिल ही जाएगा। फिर क्यूँ फिजूल में अभी जनता के आक्रोष और मजाक का वॉयस बनना, जिससे खुद का ही नुक्सान होता हो ! पर देखा गया है यह बात किसी के समझ में नहीं आती या हो सकता है चापलूस या अवसरवादी छुटभईए अपना हित साधने के लिए आने ही नहीं देना चाहते हों ! जो भी हो ऐसी बातें हैं तो आत्मघाती ही !!
आसरा
पांडे जी बोले- माथुर जी आपकी फोटो बन गयी समझो, अच्छा मै एक काम करता हूँ, मै आपकी ये ब्लैक एंड व्हाइट वाली ले जाता हूँ और अगले मंगल को आपकी और भाभी जी की नई फोटो लेता आऊंगा।
एक हफ्ते बाद दीवार पर कलर्ड फोटो थी, मगर अभी तक ना रोहन को बात सुनने का समय मिला था, ना उसकी निगाह में रजनीगंधा के बीच कोई गुलाब था। हाँ माथुर जी के पास जरूर अब ना रोहन से कहने के लिये कोई बात नहीं थी ना ही रोहन का आसरा।
अवसाद
किसी अपने के अवसाद भरे
जीवन को हर लेता है,
जिंदगी उस अपने की जी जाती है
बरना ये दुनियां है बाबू ,
चलती है और चलती ही जाती है।
सूरज
रोबोट होता तो विवेक भी होता
चाहे वो कृत्रिम ही होता
किसी आंदोलन से न विचलित होता
और इस पर न कोई विचलित होता
बेगाने
“तो...रुकोगे क्या, पता नहीं यह बेमारी कब तक...?”
नजफ़ की बात का जवाब दिए बिना बिशनू उठा और एक ढेला लेकर पूरी ताकत से उछाल दिया बारजों की ओर।
पंछी चह-चह कर उड़ चले...दूर...
धन्यवाद।
पिता की छाया पहचान हूँ
जवाब देंहटाएंसब गमों से अनजान हूँ
बेमिसाल प्रस्तुतीकरण
सादर शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंअच्छी रचनाएँ
आभार
सादर
सुंदर प्रस्तुति। विश्व योग दिवस की शुभकामनाएँ! माता और पिता तो हर पल हमारी साँसों में चढ़ते उतरते हैं। बधाई!
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
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