हवा, पानी, आकाश, धरा, विज्ञान, विकास,
संतोष, घृणा, आवेश समय तो लगेगा।
काश वक्त भी थोड़ी धीमी गति से चलता।"
सबसे अलहिदा,
हो जिसमें बारिस की रिमझिम,
चाँद की धूल,
मटमैले बादलों की उदासी
और
पतझड़ से रौंदे झड़बेरी के पेड़ से गिरे-
पत्तियों का दर्द।
है सुरक्षित यही काफी है
इन आंखों में नींद आ जाने को
मैं जानता हूं वो खुश हैं
चिट्ठी
टपकी हुई बूंदें,छितरी हुई स्याही
बिखरे हुए अस्पष्ट शब्द,
कातरता से भींगे सिमसिम से पन्ने
माँ एक भी हर्फ पढ़ ना सकूं
इस तरह विक्षिप्त हो जाता हूं माँ
चिट्ठी
मैं भी एक सितारा माँ
बन जाता तेरे साथ
क्यूँ नहीं मुझे भी
ले गयी अपने साथ?
गुस्सा आता है
तुम पर बहुत
तेरे जाने के बाद।
पुन: मिलेंगे...
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है हवा कठिन, हड्डी-हड्डी को ठिठुराती
आकाश उगलता अंधकार फिर एक बार
संशय विदीर्ण आत्मा राम की अकुलाती
होगा वह समर, अभी होगा कुछ और बार
तब कहीं मेघ ये छिन्न-भिन्न हो पाएँगे
तहखानों से निकले मोटे-मोटे चूहे
जो लाशों की बदबू फैलाते घूम रहे
हैं कुतर रहे पुरखों की सारी तस्वीरें
चीं-चीं, चिक-चिक की धूम मचाते घूम रहे
पर डरो नहीं, चूहे आखिर चूहे ही हैं
जीवन की महिमा नष्ट नहीं कर पाएँगे
यह रक्तपात यह मारकाट जो मची हुई
लोगों के दिल भरमा देने का जरिया है
जो अड़ा हुआ है हमें डराता रस्ते पर
लपटें लेता घनघोर आग का दरिया है
सूखे चेहरे बच्चों के उनकी तरल हँसी
हम याद रखेंगे, पार उसे कर जाएँगे
मैं नहीं तसल्ली झूठ-मूठ की देता हूँ
हर सपने के पीछे सच्चाई होती है
हर दौर कभी तो खत्म हुआ ही करता है
हर कठिनाई कुछ राह दिखा ही देती है
आए हैं जब चलकर इतने लाख बरस
इसके आगे भी चलते ही जाएँगे
आएँगे उजले दिन जरूर आएँगे"
जी प्रणाम दी,
जवाब देंहटाएंसुप्रभात।
मर्मस्पर्शी भूमिका के साथ बेजोड़ रचनाओं का संग्रहणीय संकलन।
हमेशा की तरह सराहनीय अंक।
मनभावन चिट्ठियाँ, भावनाओं के सागर में डुबकियाँ लगाती। आभार।
जवाब देंहटाएंचिट्ठी ही चिट्ठी कुछ खट्ठी कुछ मिठी
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
बहुत सुंदर सारगर्भित रचना प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंभावनाओं में पगी पातियाँ और प्रस्तुति विशेष 👌👌👌। भावनाओं और संवेदनाओं का अहम दस्तावेज समय के चक्र में बदलकर अपने निष्ठुर और निर्मम रूप में डीजिटल स्क्रीन पर सिमट गया । जहाँ आत्मीयता की मधुर गंघ नहीं बल्कि भ्रामक वाग्ज़ाल में उलझते और बनते बिगड़ते रिश्ते हैं।पहले लंबी प्रतीक्षा में भी अवसाद नहीं था , आज बिन प्रतीक्षा अवसाद और विषाद से हर कोई बेहाल है। लाजवाब लिंको से सजा सुंदर अविस्मरणीय अंक आदरणीय दीदी। आपके लिए शनिवार भले जल्दी आता हो , पाठकों के लिए इसकी अवधि लंबी होती है। हार्दिक शुभकामनायें और बधाई इस प्रस्तुति विशेष के लिए🙏🙏
जवाब देंहटाएंमेरी पंक्तियाँ -----
चिठ्ठी आती थी जब घर घर
जमाने बीत गए,
कागज में चेहरा दिखता था
पल वो सुहाने बीत गए!
गुलाब कभी -कभी गेंदा
या हरी टहनी प्यार भरी
भिजवाते थे दिल लिफ़ाफ़े में ,
साथी दीवाने बीत गए!
ना चिठ्ठिया ना कोई सन्देशा
बैठ विरह जो गाते थे
राह तकते थे नित कासिद की
वो लोग पुराने बीत गए !!
सादर प्रणाम 🙏🙏🌹🌹
सस्नेहाशीष शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका...
हटाएं🙏🙏🙏🌹🌹
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