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बुधवार, 17 जून 2020

1797 ...ग़ज़ल ही ग़ज़ल

सादर अभिवादन
आकस्मिक प्रस्तुति
अपरिहार्य कारणों से आज
पम्मी बहना व्यस्त हैं
हमें मैसेज आया कि
ताबड़-तोड़ प्रस्तुति
फौरन से पेश़्तर
हाज़िर करें...
सो प्रस्तुत है
ब्लॉग आब़सार के
चंद कतरे...
ब्लॉग निगारा हैं
मीनू भागिया
कुछ ग़ज़लें..
......

अहल-ए-शौक़ के  घरों  में  पलते  हैं  बोन्साई
बारिशों को खिड़कियों  से  देखते  हैं  बोन्साई

चमकने लगे  कैसे  कट  छंट  कर फर्श  पे
पहाड़ भी इक  दिन  बन  जाते  हैं बोन्साई

अपना  कद  कुछ  और बढ़ा  ले तू इन्सां
तेरे  लिए तो  हदों  में सिमटते  हैं बोन्साई




दरिया कूज़े में कैसे समाया होगा
सहरा की प्यासी रेत से बनाया होगा

बहुत एहतियात से उठाना तुम इसे
ग़र्दिश ए मस्ती ने इसे घुमाया होगा



दिल्लगियां करने लगा है मेरा आब शार
बलखाता इठलाता सा आवारा आब शार

फूल , तिनके , पत्ते  सबको साथ लेकर
बन बन भटकता है बंजारा आबशार

गुल ,बुलबुलें, शबनम ,शाखें करते हैं बातें रातों की
झिलमिल तारे जाते जाते कह जाते हैं बातें रातों की

तेज़ हवाओं में भटका था कल रात इक मुसाफिर
क़दमों के निशाँ और टूटे पत्ते कहते हैं बातें रातों की

सिलसिले धडकनों के बेताबियाँ यायावर
तगाफुल साँसे बदहवासियाँ यायावर

हर धड़कन के साथ है ज़िन्दगी यकीन
जिस्म में दौड़ते लहू की बेज़ारियां यायावर

....
My Photo
आदरणीय मीनू भागिया
दो ब्लॉग है
आबशार और अक्सर ऐसा होता है
दोनो 2014 से बंद है

........
और अंत में इस हफ़्ते का विषय
हम-क़दम का नया विषय
यहाँ देखिए
सादर



7 टिप्‍पणियां:

  1. आज की ये ताबड़-तोड़ प्रस्तुति वाक़ई धमाकेदार रही! साधुवाद!!!

    जवाब देंहटाएं
  2. गज़लें लाज़वाब है।
    बहुत बहुत आभारी हूँ दी।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  3. कुछ हसरतें अनकही और पिन्हा है बेबसी
    तड़पती मौजों की तिश्नगियाँ यायावर
    खारजार दामन है कोई दश्त तो नहीं
    आ गिरती हैं इसमें वीरानियाँ यायावर
    वाह! 👌👌👌👌👌लाजवाब प्रस्तुति👌👌🙏३ हार्दिक शुभकामनायें और आभार 🙏🙏

    जवाब देंहटाएं

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