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शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2019

1295...अंतर्मन की आंखो से बीते हुए वक्त को सहेजें...

आप सभी को
स्नेहिल अभिवादन

खूबसूरत, दिलकश, रूहानी
एहसास में भीगी और जादुई शब्दों
से गुंथी हुई
गुलज़ार जी की कुछ
रचनाएँँ

पूरा दिन
खरे दिन को भी खोटा समझ के भूल जाता हूँ मैं
गिरेबान से पकड़ कर मांगने वाले भी मिलते हैं
"तेरी गुजरी हुई पुश्तों का कर्जा है, तुझे किश्तें चुकानी है "

खाली कागज़ पर
सामने रख के देखते हो जब
सर पे लहराता शाख का साया
हाथ हिलाता है जाने क्यों?
कह रहा हो शायद वो...
"धूप से उठके दूर छाँव में बैठो!"

हमें पेडों की पोशाकों से
हवाएँ झाड़ के पत्ते उन्हें चमकाने लगती हैं
मगर जब रेंगने लगती है इन्सानों की बस्ती
हरी पगडन्डियों के पाँव जब बाहर निकलते हैं
समझ जाते हैं सारे पेड़, अब कटने की बारी आ रही है
*
चलिए आज की रचनाएँ पढ़ते हैं-

आदरणीय विश्वमोहन जी
चतुर्दिक फैली जलधि
प्रशांत मन की
करती प्रक्षालित
विचार द्वीपों को
चंचल बौद्धिक लहरियों से।
 करती अठखेली
अहंकार की अमर वेलि।
लहरियों के लौटते ही
अपनी शुष्कता में सूख
ठूंठ सा होने लगता अहंकार।
★★★★★
आदरणीया यशोदा दी

अंतर्मन की आंखो से
बीते हुए वक्त को सहेजें...
कल-कल करती नदियों से
उसकी सहजता का भेद पूछें....
लोरी की बोलों को बोएं.....
★★★★★
आदरणीया साधना जी 
सुधियों का क्या है

जब चंदा ने तारों ने मेरी कथा सुनी 
जब उपवन की कलियों ने मेरी व्यथा सुनी 
जब संध्या के आँचल ने मुझको सहलाया 
जब बारिश की बूँदों ने मुझको दुलराया ।
भावों का क्या ये तो यूँ ही बह आते हैं 
पर तुमने तो एक बार पलट कर ना देखा ।
★★★★★
आदरणीय पंकज त्रिवेदी जी

तुम्हारा मौन भी मेरे लिए
बहुत बड़ा संबल है

कईं बार हम ऐसे जी लेते हैं
अपनी ज़िंदगी जिसमें सिर्फ
एक दूसरे की खुशी में ही
अपनी खुशी मान लेते हैं
★★★★★★
आदरणीय शशि जी
अत्यधिक शराब सेवन से  काम धंधा चौपट हो गया है और स्वास्थ्य भी बेहतर नहीं है। जीवन साथी के लिये जब मन ने पुकार लगाई , तो उनके पास  न काया रहा न माया  , बेचारे सोशल मीडिया के माध्यम से चैटिंग करने लगें। एक विदेशी युवती पर डोरा डालने में सफल हुये भी , तो सात समुंदर पार जाने के लिये पैसा अब नहीं शेष है। सो, मन में इस उम्मीद को जीवित रखते हुये कि कभी तो उनके पास इतना पैसा होगा कि वे अपनी प्रेयसी के देश जाएंगे और दुल्हन बना उसे संग लाएँगे , परंतु कब यौवन तो ढलने को है ?  सो, अब बाकी बचा है यह गीत उनके लिये -

चलते-चलते उलूक के पन्ने से
आदरणीय सुशील सर

उनको भी
कहा गया हो
उनकी भी
कुछ भागीदारी है 
थाना कोतवाली
एफ आई आर
होने का
कोई डर हो
ऐसी बात
के लिये
कोई जगह
छोड़ी गयी हो
नजर नहीं आ रही है 

★★★★★★
एक विशेष संदेश
विनम्र श्रद्धांजलि
आदरणीया मीना जी
अचानक एक रात करीब ढ़ाई बजे पापा जोर जोर से रोने लगे। पापा और मम्मी हमारे बेडरूम में सोते थे और हम तीनों बाहर हॉल में (मैं, मेरे पति और बेटा अतुल)। हम तीनों उठकर भागे अंदर। मम्मी बदहवास। पापा रो रोकर बोल रहे थे - अरे ये मुझे ले जाएँगे, मुझे मार देंगे, ये मुझे मारने आए हैं। मैं घबरा तो गई थी पर हिम्मत करके पापा को छाती से चिपकाकर कहा - कौन ले जाएगा पापा ?
पापा वैसे ही रो रोकर - ये लोग, देख ना सामने खड़े। आदमी, औरतें, बच्चे सब हैं। अरे ! ये मुझे ले जाएँगे !
आज का यह आप सभी को कैसा लगा?
आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया की
प्रतीक्षा रहती है।

हमक़दम के विषय के लिए


कल का अंक.पढ़ना न भूले
कल आ रहीं हैं विभा दी
विशेष प्रस्तुति के साथ।

बंद दरवाज़े,सोये हुये हैंं लोग बहरे
आम क़त्लेआम, हँसी पर हज़ार पहरे
चीर सन्नाटों को, रचा बाज़ीगरी कोई
खुलवा खिडकियाँ आईना दिखाऊँ


14 टिप्‍पणियां:

  1. आओ, शब्दों के खेत में
    खामोशी को फिर से बोएं....
    बहुत सुंदर पंक्तायाँ , मौनी अमावस्या का सृजन सम्भवतः हमारे धर्मशास्त्रों में इसीलिए हुआ हो।
    सरल शब्दों में बड़ा संदेश।
    उम्दा प्रस्तुति और पथिक की बातों को स्थान देने के धन्यवाद श्वेता जी।
    सभी को सुबह का प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन अंक..
    आभार नहीं कहेंगे
    महीनो बाद प्रसूता बनी है कलम....

    बंद दरवाज़े,सोये हुये हैंं लोग बहरे
    आम क़त्लेआम, हँसी पर हज़ार पहरे
    चीर सन्नाटों को, रचा बाज़ीगरी कोई
    खुलवा खिड़कियाँ आईना दिखाऊँ
    ये पंक्तियां पसंद आई....
    .....
    एक मैसेज आया है..
    गूगल प्लस
    2 अप्रैल से
    पूरी तरह बन्द हो जाएगा
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रिय श्वेता,इन दुःखद घड़ियों में कुछ अपनों ने परायों सा व्यवहार किया,तो कुछ परायों ने अपनों से बढ़कर साथ दिया। आप सबका साथ हिम्मत देता है,इतनी दूर से भी!!! वेदना जब संवेदना बन जाती है तब उसमें ईश्वर के दर्शन होते हैं....

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह ! गुलजार की कविताओं से सजा आज का अंक पठनीय है..बधाई !

    जवाब देंहटाएं
  6. बेहद खूबसूरत प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  7. खूबसूरत प्रस्तुति के साथ पठनीय अंक..
    बधाई श्वेता जी,
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  8. सुन्दर रचनाओं से सजा बेहतरीन अंक ! मेरी रचना को आज की हलचल में स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! स्नेहाभिवादन !

    जवाब देंहटाएं
  9. बेहतरीन प्रस्तुति ....स्वेता जी, मीना जी की आपबीती पढ़ दिल भर आया ,भगवान उन्हें सब्र दे

    जवाब देंहटाएं
  10. सुन्दर हलचल। आभार श्वेता जी 'उलूक' के प्रलाप को भी जगह देने के लिये।

    जवाब देंहटाएं

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