जय मां हाटेशवरी.....
जो वीर हर पल सरहदों पर......
हमारी सुरक्षा में तैनात रहते हैं.......
जो एक-एक वीर......
सैंकड़ों दुशमनों को मारने की क्षमता रखता हैं.....
पुलवामा में इन वीरों के साथ जो घटा......
वो इन की सुरक्षा में एक बड़ी चूक ही कही जाएगी.....
इस से सारा देश शोकाकुल है......
इन वीर-शहीदों को मेरी ओर से.....
भावभीनी श्रद्धांजली व कोटि-कोटि नमन......
कैसी आतंकी चली हवा, ये सोच के दिल घबराता है।
घर में ही ख़ूनी खेल हुआ, ये सोच के दिल घबराता है।
मां से मिलने आया बेटा, लेकिन शहीद के चोले में,
ख़ामोश तिरंगे में लिपटा, ये सोच के दिल घबराता है।
फौजी बूटों की आवाज़ सुनते ही दो दिन में यह
लोग जेहाद , अलगाववाद और बहत्तर हूरों
का ख्वाब भूल कर देश प्रेम सीख जाएंगे।
सारी अकड़ फुर्र हो जाएगी।जैसे खालिस्तानियों
की हो गई। इंदिरा गांधी जैसा यह कड़ा फैसला
लेना काश कि नरेंद्र मोदी भी आज सीख जाते।
इंदिरा गांधी ने तो जब ज़रूरत पड़ी थी ,
अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में सेना भेज कर कड़ी
सैनिक कार्रवाई भी की थी। कश्मीर सहित देश
की उन सभी मस्जिदों , मजारों और मदरसों में ,
जो जेहादी पैदा कर रही हैं , नमाज की आड़
में हिंसा का पाठ पढ़ा रही हैं , वहां पुलिस नहीं ,
सीधे सेना भेजनी चाहिए । नो कोर्ट , नो सुनवाई ,
मौके पर फाइनल करवाई ।
निदा फाजली लिख ही गए हैं :
उठ-उठ के मस्जिदों से नमाज़ी चले गए
दहशतगरों के हाथ में इस्लाम रह गया।
सरहद पर जो सारी उम्र लड़े
कुछ अपने ही देश को खा गए
उस सैनिक की वीरगति का विषय लिए"
शहीद होते हमारे देश के जवान
नेता सेंकते हैं अपनी रोटियां
गृहमंत्री कर देते हैं निंदा
प्रधानसेवक कर देते हैं ट्वीट
टीवी एंकर स्टूडियों में करते हैं लड़ाई
लड़ते लड़ते मर जायेगे॥
ये वीर जवानो की टोली है,,
जाते जाते कुछ दे जायेगे॥
भारत देश के रहने वाले
इनको तुम प्रणाम करो॥
जान निछवर कर गए है॥
इनको लल्ला सलाम करो॥
अनेक बड़े मुस्लिम लेखकों, विचारकों, ने भी आग्रह किया
है कि इस्लामी किताबों, मदरसों की शिक्षा,
आदि की कड़ी समीक्षा करें। तभी आतंकवाद
को समझना, और उपाय सोचना संभव है। जैसे,
नगीब महफूज, इब्न वराक, वफा सुलतान,
तसलीमा नसरीन, अय्यान हिरसी अली,
अनवर शेख, तारिक फतह, आदि। यहाँ तक कि
बच-बच के रहने वाले सलमान रुश्दी ने भी पूछा है: ‘जिस
मजहबी विश्वास में मुसलमानों की इतनी श्रद्धा है, उस में ऐसा
क्या है जो सब जगह इतनी बड़ी संख्या में हिंसक
प्रवृत्तियों को पैदा कर रही है?’
और लंदन से लेकर श्रीनगर, ढाका, गोधरा,
बाली तक, कई दशकों से जितने आतंकी
कांड हुए, सब इस्लामी विश्वास से चालित रहे हैं। अधिकांश ने
इस्लाम का नाम ले-लेकर अपनी करनी को फख्र से दुहराया है।
अतः इस पर विचार न करना साफ भगोड़ापन है। कानून और
न्याय-दर्शन की दृष्टि से भी यह अनुचित है।
कोई भी सभ्य न्याय-प्रणाली किसी हत्यारे के अपने बयान को
महत्व देती है। उस की जाँच भी होती है।
पर उसे उपेक्षित नहीं किया जाता। क्योंकि उस से
हत्या की प्रेरणा, मोटिव का पता चलता है। जब
असंख्य जिहादी, बार-बार अपने काम का कारण कुरान का
आदेश बता रहे हों, तब इस से नजर
चुराना आतंकवाद को प्रकारान्तर बढ़ावा देना
ही हुआ। इस से नए-नए जिहादी बनने कैसे रुकेंगे?
आखिर, दुनिया भर में मुसलमान आत्मघाती मानव-बम
में कैसे बदलते रहते हैं, किस प्रेरणा से?
अब जिहादियों और मुसलमानों के ऐसे इरादों के बारे में
जानकारी होने पर भी हिन्दू सिर्फ उत्सव मनाने ,
जयंतियाँ मनाने , मंदिरों में क्विंटलों सोना चांदी चढाने
को ही धर्म मान लेते हैं , और सामने शत्रु साफ दिखाई देने पर
उसी तरह आँखें बंद कर लेते हैं ,जैसे कबूतर बिल्ली को देख कर
आँखें बंद करके मान लेता है कि सामने बिल्ली नहीं है .
हिन्दू यदि यही कबूतरी नीति पर चलेंगे तो न तो देश बचेगा
और न हिन्दू धर्म ही रहेगा. हिन्दुओं को इतिहास से सबक
लेने की जरुरत है , याद रखिये जब मेहमूद गजनवी सोमनाथ
पर हमले की तैयारी कर रहता तो हिन्दू राजा यज्ञ अनुष्ठान कर रहे थे,और सोच रहे थे कि भगवान शिव अपने तीसरे नेत्र से म्लेच्छों
को भस्म कर देंगे , हिन्दुओं को समझना
होगा कि कोई देवी देवता उनको नहीं बचा सकेगा
जबतक वह खुद देश के और हिन्दुओं के दुश्मन जिहादियों
को ईंट का जवाब पत्थर से नहीं देते .
हम-क़दम
अब बारी है अगले विषय की
उनसठवाँ विषय
क़रार
उदाहरण
तुम हो पहलू में पर क़रार नहीं
यानी ऐसा है जैसे फुरक़त हो
है मेरी आरज़ू के मेरे सिवा
तुम्हें सब शायरों से वहशत हो
किस तरह छोड़ दूँ तुम्हें जानाँ
तुम मेरी ज़िन्दगी की आदत हो
रचनाकार जॉन ऐलिया
अंतिम तिथिः 23 फरवरी 2019
प्रकाशन तिथिः 25 फरवरी 2019
धन्यवाद।
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जवाब देंहटाएंनमन, वंदन, आक्रोश, राजनैतिक आरोप प्रत्यारोप ,वही मुर्दाबाद के नारे और जुबानी ललकार।
जवाब देंहटाएंविचित्र सी स्थिति है ,इस घटना के बाद।
वहीं जनता शोर मचा रही है एक्शन.. एक्शन...।
प्राणाम ।
सत्ताधारियों को सिर्फ अपनी पड़ी है बस अपनी कुर्सी बची रहे
जवाब देंहटाएंसंग्रहनीय संकलन
सस्नेहाशीष
शुभ प्रभात,
जवाब देंहटाएंबढ़िया...
लगता है सब सही हो रहा है अब
लड़ाई में व्यापारी भी शामिल हो गए हैं
सादर नमन
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति 👌
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई
सादर
पठनीय रचनाओं का संकलन शानदार प्रस्तुतिकरण
जवाब देंहटाएंभारत के जनमानस का आक्रोश और बेचैनी दर्शाती विचारणीय प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसेना को अत्याधुनिक हथियारों की ज़रूरत है। बड़े देश का रक्षा बज़ट चुनौतियों के मुक़ाबले कम है। युद्ध पर गिद्ध दृष्टि लगाये बैठे हथियार व्यापारियों के मंसूबे भाँपते हुए भारत पाकिस्तान को अपनी सक्षम रणनीति से सबक़ सिखायेगा। सेना का मनोबल दृढ़ है जीत के जज़्बे से भरा है।
नमन और श्रद्धांजलि वीरों के लिये।
जवाब देंहटाएंब्लॉग अच्छा है
जवाब देंहटाएंInternet Day - Internet Ki Jankari Hindi Me