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बुधवार, 13 फ़रवरी 2019
1307..मैं उठूंगा और चल दूंगा उससे मिलने..
13 टिप्पणियां:
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कुछ पल का सुकून
जवाब देंहटाएंबल देता है अपार,
पथ पर चलते रहने का
करते हुए जीवन का जाप.
यह क्षणिक सुकून भी सबकी नियति है, अनेक पथिक सिर्फ चलते रहते हैं, कोई पड़ाव नहीं है।
बहुत बढ़िया संकलन। सभी को प्रणाम।
हार्दिक आभार. आप स्वयं पथिक हैं. पथ का गीत "पोथेर पांचाली" आपको तो पता ही होगा.
हटाएंशुभ प्रभात सखी...
जवाब देंहटाएंअच्छी रचनाए पढ़वाई..
आभार..
सादर..
बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति
सभी रचनाएं उत्तम मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार।
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन
वाह बहुत सुन्दर भूमिका के साथ बेहतरीन लिंकों का चयन।
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति।
सभी रचनाकारों को बधाई।
शुभ प्रभात आदरणीया पम्मी जी
जवाब देंहटाएंबेहतरीन हलचल प्रस्तुति 👌| शानदार रचनाओं में मुझे स्थान देने के लिए सह्रदय आभार आप का |
सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनायें |
सादर
शानदार प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह एक खूबसूरत प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंपम्मी जी,शुक्रिया जो पथ का गीत भी इस यात्रा में शामिल कर लिया.
जवाब देंहटाएंभोर का गीत
और एक सुबह मैं उठूंगा
मैं उठूंगा पृथ्वी-समेत
जल और कच्छप-समेत मैं उठूंगा
मैं उठूंगा और चल दूंगा उससे मिलने
जिससे वादा है कि मिलूंगा।
केदारनाथ सिंह
उगते सूरज की तरह ऊर्जा भर गया.
विचारों की यात्रा चलती रहे. सभी को बधाई !
बेहद सुंदर भूमिका के साथ शानदार रचनाओं का संयोजन है आज के अंक में.पम्मी जी..बेहद उम्द संकलन।
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