दुःख आक्रोश
नापने का पैमाना
मत तय करो
स्तब्धता मौन
वाचालता में क्या भाव गौण...
बस्ती बस्ती पर्बत पर्बत वहशत की है धूप 'ज़िया'
चारों जानिब वीरानी है दिल का इक वीराना क्या @अहमद ज़िया
सूरज उगेगा पर्दे के पीछे
तितलियाँ नहीं कर पाएंगी
फूलों से मासूम मुलाक़ात,
इस फुलवारी में प्रवेश वर्जित है /
सूरज उगेगा ज़रूर ,
लेकिन परदे के पीछे ,
क्योंकि रौशनी के नाम है वारंट और
उसे ढूंढ रहे हैं -अँधेरे के सिपाही /
सबसे खतरनाक होता है
पाश की कलम से डरे लोगों ने उनकी जान ले ली.
उनकी कविताएं बेहद तल्ख और सार्थक राजनीतिक वक्तव्य हैं.
अपनी कविताओं में वह लोहा खाने और बीवी को बहन कहने की बात करते हैं,
और पेड़ों की लंबाई से वक्त मापने वाले लोगों को देश मानते हैं.
जीवन की राह में
जीवन की राह में, धूप व छाँव में
पवन सा हम लहर, पँछी के जैसा चहक
थाम के हाथों को, मिला कर हर-कदम
पार करने की डगर, खायी मिलके ये कसम।
मोहभंग
“एक ही संविधान के नीचे
भूख से रिरियाती हथेली का नाम
‘दया’ है
और भूख में
तनी हुई मुट्ठी का नाम
नक्सलबाड़ी है |”
रिश्तों का कारवां
मतलब के धागों से
वो टूट जाती है क्योंकि
डोर होती है बुनी उसी
विश्वास के धागो से
जो बोझ उठा लेता है,
उन सभी रिश्तों की
उमीदों का !
><
फिर मिलेंगे..
कविवर पंडित नरेन्द्र शर्मा जी की कविता उदाहरणस्वरूप प्रस्तुत है -
आया था हरे भरे वन में पतझर, पर वह भी बीत चला।
अंतिम तिथिः 16 फरवरी 2019
प्रकाशन तिथिः 18 फरवरी 2019
कल से ही तमाम श्रद्धांजलि सभाएँ और पुतला दहन हो रहा है। राजनीति करने वाले दो मिनट का मौन भी ठीक से कहाँ रह पाते है।
जवाब देंहटाएंरचनाकारों ने आँसुओं में लेखनी को डूबो रखा है,
पर आवश्यकता है प्रतिकार की-
चिंतन- मंथन बहुत हुआ, अब एक्शन मोड में आएँँ श्रीमान।
छद्म युद्ध उनकों भाता, तो हम है शिवा जी के संतान।
सुंदर संकलन,सभी को प्रणाम।
सहमत
हटाएंशानदार प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंसादर नमन दीदी
जवाब देंहटाएंएक और बेहतरीन प्रस्तुति
आभार..
सादर
नमन शहीदों को।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन हलचल
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