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सोमवार, 11 फ़रवरी 2019

1305...हम-क़दम का सत्तावनवाँ क़दम

स्नेहिल अभिवादन
नज़र पर आप हमारे प्रिय रचनाओं ने इतना कुछ
रच दिया है कि जैसे अब और कुछ कहना शेष नहीं।

मेरी नज़र, उसकी नज़र, सबकी नज़र
नज़र बेरहम, नज़र हमदम, बावस्ता-ए- नज़र
★★★
सबसे पहले एक ग़ज़ल पढ़ लीजिए।

अपनी ही रवानी में बहता नज़र आता है
ये शहर बुलंदी से दरिया नज़र आता है

देता है कोई अपने दामन की हवा उस को
शो'ला सा मिरे दिल में जलता नज़र आता है

उस हाथ का तोहफ़ा था इक दाग़ मिरे दिल पर
वो दाग़ भी अब लेकिन जाता नज़र आता है

आँखों के मुक़ाबिल है कैसा ये अजब मंज़र
सहरा तो नहीं लेकिन सहरा नज़र आता है

इक शक्ल सी बनती है हर शब मिरी नींदों में
इक फूल सा ख़्वाबों में खिलता नज़र आता है

आँखों ने नहीं देखी उस जिस्म की रानाई
ये चार तरफ़ जिस का साया नज़र आता है

दरिया को किनारे से क्या देखते रहते हो
अंदर से कभी देखो कैसा नज़र आता है

फिर ज़ौ में 'नदीम' अपनी कुछ कम है सितारा वो
ये रात का आईना धुँदला नज़र आता है


©इनाम नदीम
★★★
हमक़दम के विषय "नज़र" पर
हमारे प्रतिभासंपन्न रचनाकारों की
लेखनी से निसृत 
अद्भुत रचनाओं का आनंद लीजिए।
★★★
तेरी प्यार वाली नज़र पड़ी
तो ये सारा आलम बदल गया,
तूने मुस्कुराकर क्या कहा,
मेरा गुरूर सारा पिघल गया...
तेरी प्यार वाली नज़र....
★★★★★★
मेरी नजर में तू हैं
तेरी नजर में कोई और 
किसीसे तुम प्यार करती हो
किसीसे मैं भी 
दर्द हम समझते हैं
बखूबी
एक-दूसरे का
पर हम एक दूसरे से प्यार नही करते
★★★★★
जो तेरा ज़िक्र  मेरी जुबान पे हैं
चाँदनी नीली रात फिर उफ़ान पे है .. . !!!

एक बार जो वो गुलबदन गुज़रा था यां से,
उसकी खुशबु कबसे मेरे मकान पे है ,

आज फ़िर वो सज सवर के घर से निकला हैं ,
आज फ़िर  मेरा सब्र इम्तेहान पे है ,
★★★★★★
नजरों ने बड़े-बड़े काम किए हैं,
कहीं मिले दिल कहीं कत्लेआम किए हैं।
नजर-नजर की बात बड़ी बात कह गई,
जुबां न कह सकी जज़्बात कह गई।
झुकी-झुकी नजर हया बन गई,
तिरछी हुई नजर तो अदा बन गई।
★★★★★★

है नजर अपनी अपनी
जैसा सोचते है वही दिखाई देता है
जो देखना चाहते हैं अपने   नजरिये से
करते  हैं टिप्पणी अपने ही अंदाज में
कभी सोच कर देखना
एक ही इवारत पर
अलग अलग टिप्पणीं होती हैं कैसे ?
यही तो फर्क है लोगों  के नजरिये में


यह चुभती-सी नजर
भेदती हैं तन को
करती छलनी मन को
कुछ टटोलती-सी
हर नारी के देह को


मिली नज़र 
बजी जल तरंग
धड़का दिल
नज़रों ने की
मासूम शरारत  
हुए गाफिल
झुकी नज़र
हिजाब की ओट में
शर्माई गोरी


लो फिसल ही गई नजर संभलते संभलते
कह गया आफताब फिर ढलते ढलते ।
चार कदम ना चल सके हयात ए सफर में
मिले थे कभी जो सरे राह चलते चलते।
★★★★★

नजरों में कैसी समायी ये दुनिया
पलकें उठा कर बिजली गिराती
 उमड़ते  अरमानों को है जलाती
निगाहों में यादें बसाती ये दुनिया
इंसानों को ठगती ,हैवानों को भाती
अपनी सी लगती ,मगर गैर होती


वैसे तो, नज़रों का तमाशा भी मन की तरह ही 
बड़ा विचित्र होता है। मुझे तो लगता है कि 
तन, मन और मस्तिष्क तीनों के पास 
अपनी - अपनी दृष्टि होती है। वो कहते हैं न 
मन की आँखों से देखों , विवेक की दृष्टि से 
देखों, भावनाओं में मत बहते रहो , 
स्नेह से देखो नफरत से मत देखो। स्पर्श के 
पश्चात दृष्टि से ही शिशु अपनों को पहचानता है। 
मृत्यु के पश्चात सबसे पहले 
मृत व्यक्ति के नेत्रों की पलकों को ही बंद 
किया जाता है। अतः जब तक जिंदगी है, 
अपनी नजरों को साफ रखें।


हैं न, इस दुनिया में शायद ही कोई ऐसा हो 
जिसे पहली नज़र का प्यार ना हुआ हो,
प्यार दिल करता है पर कहते है-
" सारा कुसूर नज़रो का हैं. "सही भी है ,
इस जीवन का सारा खेल नज़र और नज़रिये 
का ही तो  होता हैं , किसी को पथ्थर में 
भगवान  नज़र आते हैं किसी को भगवान
भी पथ्थर के नज़र आते हैं..
नज़र   जिंदगी  की,  नजरिया  बन  गई , 
कहीं   चढ़ी  परवान, कहीं   धूल  में  मिला  गई |

उठी नजरें, दिल  में  वफ़ा  के फूल खिला गई ,
झुकी   हुई  नजरें , बेरुखी  का  सबब  बन  गई |
★★★★★

और चलते-चलते एक गीत
यशोदा दी की पसंद का

एक-एक क़दम बढ़ता हमक़दम
आप सभी के सहयोग से
मुकम्मल हो रहा है।
आज सभी का तहेदिल से
बेहद शुक्रिया।

आज का यह अंक आप सभी को कैसा लगा
आपकी बहुमूल्य की
सदैव प्रतीक्षा रहती है।
हमक़दम के नये विषय के लिए
कल का अंक पढ़ना न भूलें।

आज के लिए आज्ञा दें-

श्वेता सिन्हा

14 टिप्‍पणियां:

  1. दरिया को किनारे से क्या देखते रहते हो
    अंदर से कभी देखो कैसा नज़र आता है..

    सुंदर अंक ,पथिक की लेखनी को सम्मान देने के लिये धन्यवाद श्वेता जी। सभी को सुबह का प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात,
    बेहतरीन विषय पर एक बेहतरीन प्रतुति,सारी रचनाये एक से बड़कर एक हैं,मेरी एक पुरानी रचना को खोजकर जगह देने के लिये बहुत बहुत अभिनंदन आभार।
    कुसुम जी कि ये ग़ज़ल दिल को छू गयी-

    लो फिसल ही गई नजर संभलते संभलते
    कह गया आफताब फिर ढलते ढलते ।
    चार कदम ना चल सके हयात ए सफर में
    मिले थे कभी जो सरे राह चलते चलते।

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहद सुंदर प्रस्तुति मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार आपका श्वेता जी

    जवाब देंहटाएं
  4. इतनी व्यस्तता पारिवारिक दायित्व और लेखन कार्य के बीच भी आप इतनी उम्दा प्रस्तुति दे देती हो, ये आप की ब्लॉग के प्रति अपार प्रतिबध्दता का सुंदर उदाहरण है।
    शानदार प्रस्तुति।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया।
    सभी रचनाकारोंको बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  5. हमकदम के इस अंक में आज बेहद उम्दा रचनाओं का संकलन ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! वेलेंटाइन दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही उन्दा प्रस्तुति एक से बढ़कर एक रचना पढ़ने को मिली ,सारे रचनाकारों को दिल से बधाई ,मेरे रचना को भी स्थान देकर मेरा उत्साहवर्धन करने के लिए दिल से धन्यवाद स्वेता जी

    जवाब देंहटाएं
  7. बेहतरीन हमक़दम की प्रस्तुति 👌
    लाजबाब रचनाएँ, सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनायें |
    मुझे स्थान देने के लिए सह्रदय आभार आदरणीया श्वेता जी
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुंदर अंक आदरणीया
    उम्दा.....लाजवाब रचनाएं
    मेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए आभार.........जी सादर

    जवाब देंहटाएं
  9. पठनीय एवं सुंदर रचनाओं का संकलन। अपनी रचना को इस विशेषांक में शामिल देखकर बहुत खुशी हुई। तहेदिल से शुक्रिया....

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत ही शानदार प्रस्तुतिकरण एवं उम्दा लिंक संकलन.....।नजर नजारा और नजरिया !!!
    खूबसूरत सारगर्भित प्रस्तुतियाँँ....सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाइयां.....।

    जवाब देंहटाएं
  11. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार श्वेता जी

    जवाब देंहटाएं

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