मन भर हुलास
आया मधुमास
कूकी कोकिला
कूजे पंछी
बसंत
छाया
है।
लो
आया
बसंत
ऋतुराज
फूले पलाश
मादक बयार
है बसंत बहार।
-रवीन्द्र
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जर्जर काया लिए
अभाव में तरसते
झेलते ज़िंदगी का दर्द
रोजी-रोटी को तलाशते
सांझ को निढाल हो
फिर भूख को ओढ़कर
करवटें बदलते हुए
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जवाब देंहटाएंआसमान कितना रोया है तुम क्या जानों
तुमको तो फूलों पे बस शबनम दिखती है
सच कहा ,दूसरों का दर्द कहाँ समझ में आता है बहुतों को, उसे तो चहुंओर हरियाली ही दिखती है।
सच्चा मित्र वही है,जो मित्र के हृदय के दर्द को समझे।
सुंदर अंक, सभी को प्रणाम।
शुभ प्रभात....
जवाब देंहटाएंआँखों में चुभ जाते हैं ख़्वाबों के टुकड़े
नींदों में बेचैनी सी हरदम दिखती है
आसमान कितना रोया है तुम क्या जानों
तुमको तो फूलों पे बस शबनम दिखती है
बेहतरीन अंक...
सादर
शुभप्रभात 🙏बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद रवीन्द्र जी
जवाब देंहटाएंशानदार संकलन
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति
सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
वाह बहुत सुन्दर बहुत ही सुंदर¡
जवाब देंहटाएंशानदार वर्ण पिरामिड अधो और उधर्व।
सभी रचनाऐं मन भावन
उत्कृष्ट संकलन।
सभी रचनाकारों को बधाई। मेरी रचना शामिल करने हेतू हृदय तल से आभार।
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन...
जवाब देंहटाएंफिलहाल तो ठंड के कारण ''आउटर'' में ही खड़ा है बसंत
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति 👌
जवाब देंहटाएंसादर
शानदार प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंलो
जवाब देंहटाएंआया
बसंत
ऋतुराज
फूले पलाश
मादक बयार
है बसंत बहार।
.....बहुत खूब ....
सुंदर अंक
उम्दा रचनाएं
मेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए आभार.........आदरणीय सहृदय