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मंगलवार, 5 फ़रवरी 2019

1299....सीमांत किसान और मध्यवर्ग का बजट


जय मां हाटेशवरी.....
कभी अधिक व्यस्तता.....
कभी प्रतिकूल परिस्थितियों के चलते.....
नियमित प्रस्तुति नहीं दे पा रहा हूं.....
जिसका मुझे खेेद है.....
इस बार बर्फ-बारी अन्य  वर्षों की अपेक्षा.....
कुछ अधिक हो रही है....
सभी को न चाहते हुए भी.....
घरों में रहना पड़ता है......
वैसे तो आज किसके पास.....
घरों में खाली  बैठने का समय  है.....
...पर प्रकृति के सामने किसकी चली है.....
मुझे तो सबके साथ......
एक साथ बैठने में विशेष-आनंद मिलता  है......
...विशेषकर बर्फ के दिनों में.....
जिस दिन यहां बर्फ-बारी होती है.....
न गाड़ियां चलती है.....
न कोई कार्य ही किया जा सकता है.......
बिजली भी धोखा दे जाती है......
जिस कारण सभी को न चाहते हुए भी  घरों में ही रहना पड़ता  है.....
आज विशेष आनंद महसूस कर रहा हूं.....
हम आप सब के स्नेह के कारण इस ब्लॉग पर......
 कल 13 शतक पूरे कर रहे हैं.....
...अब देखिये मेरी पसंद....


कि यह अंतरिम बजट नहीं है, देश की विकास-यात्रा का माध्यम है। सरकार ने इस अंतरिम बजट में सन 2030 तक की एक तस्वीर 
खींची है। पीयूष गोयल ने उसके जो दस बिन्दुपेश किए हैं उनमें 
सबसे महत्वपूर्ण है पाँच साल में पाँच ट्रिलियन और आठ साल में दस ट्रिलियन की अर्थ-व्यवस्था बनना। इस वक्त हमारी अर्थ-व्यवस्था करीब ढाई ट्रिलियनडॉलर की है। क्या अगले 11 साल में वह सम्भव है, जो कई सौ साल में नहीं हुआ? जवाब अगले दशक में मिलेगा।


मैंने तुम्हारी यादों की
एक नाव बना रखी है,
तुम बस  उस  पार
इंतजार की पतवार
थाम के रखना ,
इस जन्म का लंगर
खोल,  फिर लेंगे
पुनर्जन्म .....



कोई नहीं करता,
समाज को जोड़ने की कोशिश।
हर कोई करता है,
दिलों को तोड़ने की कोशिश।



जाने कहाँ से
एक रंग-बिरंगी 
चिड़िया छोटी-सी
खिड़की पर आ बैठी ।
जान ना पहचान
बिन बुलाई मेहमान !
पर जान पड़ी
अपनी-सी ।
स्वागत को 
हाथ बढ़ाया ही था ..
कि उड़ गई
फुर्र !


My photo
क्यों न अपने स्नेह की नर्म धूप से सहला दें।  
आओ इक सुन्दर सा आकाश बना ले।
हमारे प्रयास आपके दिलों ने इक छोटा सी जगह बना ले।  
आंगन की धूप को आप अपने हृदय से लगा ले. 
हम आपके प्यार को अपना आकाश 
बना ले। आंगन की धूप से

पर तुमने मुझे आईना दिखा मुझे मेरी औकात दिखा दी
प्रेम इश्क़ सिर्फ कहने कोै तुमने मुझे उसकी कीमत बताई
आज हमं खाली हो गए तो तुमने मुझे अंधी गली दिखा दी

फ़ेसबुक (जैसी चीजों) का असल मज़ा थोड़ी दूर तक ही है. गहरे 
पैठने पर डूबना ही होता है. :)
चलिए, ब्लॉग पर सक्रियता, सृजनात्मकता फिर दिखाइए :

अब बारी है हम-क़दम की
अंक सत्तावनवाँ
विषय

नज़र
उदाहरण
अभी जो पास है वो एक पल ही है जीवन
किसी के इश्क में डूबी हुई ख़ुशी सच है

कभी है गम तो ख़ुशी, धूप, छाँव, के किस्से
झुकी झुकी सी नज़र सादगी हंसी सच है

नज़र नज़र से मिली एक हो गयीं नज़रें
हया किसी के निगाहों का कह रही सच है

आदरणीय दिगम्बर भाई की रचना है ये

अंतिम तिथि- 09 फरवरी 2019
प्रकाशन तिथि- 11 फरवरी 2019




आज बस इतना ही.....
फिर मिलेंगे।
धन्यवाद।

12 टिप्‍पणियां:

  1. कभी यथार्थ की कठोर धरातल पर पत्थरों सा धूप में सुलगता हुआ तन है . कभी
    बंद पृष्ठों में महकते हुए मृदु एहसास हैं तो कहीं मृगतृष्णा की सुलगती
    हुई रेतीली प्यास है।

    मनोवृत्तियों का सुंदर चित्रण।
    सुंदर संकलन।
    सभी को सुबह का प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ प्रभात..
    भाई अब ऐसा लगता है कि
    मौसम सारे भारत में सामान्य हो गया है
    विविध रचनाओं का चयन आपकी खासियत है
    प्रमोद जी की समीक्षा बजट पर पढ़ने योग्य है
    फेसबुक में ये सब होता रहता है..
    सावधानी हर जगह जरूरी है
    आभार..
    सादर


    जवाब देंहटाएं
  3. वाह! नवीनता का अहसास फुर्सत वाला। बहुत सुंदर संकलन।

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह!!बहुत उम्दा प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  5. विविधताओं से सुसज्जित प्रस्तुति बहुत बढ़िया..

    जवाब देंहटाएं
  6. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति,

    जवाब देंहटाएं
  7. धन्यवाद, कुलदीप ठाकुरजी. फ़ोन, टेलिविज़न धारावाहिक, सोशल मीडिया,बाकी काम ठप्प हो जाने की वजह से "बेवजह" साथ वक़्त बिताने की बाध्यता कितना सुखद अनुभव होता है. एक तरह से ध्यान लगाने जैसा होता है. बहुत ज़रूरी. हलचल के बीच कभी-कभी शांति से मनन करना भी हलचल को सार्थक बनाता है. हलचल बनी रहे !

    जवाब देंहटाएं

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