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सोमवार, 31 दिसंबर 2018

1263....हम-क़दम का इक्कावनवाँ अंक

तारीख़ का अपना महत्व होता है।
समय की चाल पर संसार अपनी धुरी पर 
घूमता रहता है अनवरत।
कल का दिन बदलाव की 
 नयी आशाओं और उमंगों से भरपूर होगा।
2018 के हमक़दम के अंक की
 अंतिम प्रस्तुति में आप सभी का
सादर अभिवादन
 तेज़ी से आयी थी

रुक ही न सकी
वह उसी झोंक में चली गयी

धीमे आती सहलाती

हम कहते यह बौछार प्यार की है

रहते निःस्तब्ध। छुअन से बँधे।

किन्तु वह रुकी नहीं
हम सहमे, थमे,
उफ़न-उमड़न मन की पर
एक उमस में छली गयी
वह आयी आँचल लहराती
तृषा और लहराती
तृषा और गहराती
भरमाती, सिहराती, चली गयी।

-अज्ञेय
★★★★★

छुअन की भाषा
जीव-जंतु,पक्षी ,पेड़-पौधों के साथ-साथ संसार का सबसे बुद्धिमानप्राणी मनुष्य भी बहुत अच्छी तरह समझते और महसूस करते है।
छुअन मन की संवेदनाओं को जागृत कर अच्छे या बुरे कर्म के लिए प्रेरित करता है।
हिय सरित की धाराओं का आलोड़न
मन पर विचारों की छुअन
जीवन का विसंगतियों में नवप्रस्फुटन
निराशा पर आशाओं की छुअन
सुख-दुःख, प्रेम का आभासी आवरण
हृदय पर भावनाओं की छुअन
बदलाव,विरक्ति,मद-क्रोध संचरण
व्यवहार पर शब्दों की छुअन
बंधन,जग संबंधों का आसक्ति वरण
जग माया की मोहनी छुअन है
 ★★★★★
हमक़दम के विषय "छुवन"पर इस बार 
सीमित रचनाएँ ही आई है।
चलिए  आज की रचनाएँ पढ़ते हैं-
★★★★★★
कुसुम कोठारी

फूलों की छुवन साथ लिये
था थोड़ा बसंती सौरभ
कुछ अल्हड़ता लिये
मतंग मतवाली हवा।

लो लहरा के चली हवा

सरगम दे मुकुल होठों को
तितलियों का बांकपन
किरणों के रेशमी ताने
ले मधुर गान पंछियों का।
★★★★★

अभिलाषा चौहान

प्रेम का मधुमास,
चल रही बासंती पवन।
स्पर्श उसका लगे जैसे,
प्यार की हो छुवन।

खिल उठी हैं मंजरी,
बह उठी तरंगिनि।
कूकती है कोयलिया,
सिहर उठा तन-मन।
★★★★★
आशा सक्सेना

बढ़ती उम्र के साथ होता 
वों का एहसास भिन्न
बचपन में बात्सल्य का प्रभाव 
युवा वय होते ही प्रेम प्रीत की छुअन 
वानप्रस्थ आते ही 
 बिचारों की छुअन करवट लेती 
भक्ति की ओर झुकती 
आस्था बढ़ती जाती 
प्रभु से एकाकार होना चाहती |
★★★★★
साधना वैद

खुले आसमान के नीचे
प्रशांत महासागर के तट पर
शिशिर ऋतु की भीषण सर्दी में
अपने चहरे से टकराती ठंडी हवाओं की
बर्फीली छुअन को याद कर रही हूँ !
एक चहरे के अलावा बाकी सारा बदन
गर्म कपड़ों से कस कर लिपटा होता है  
★★★★★

आदरणीय शशि जी


 मन का मन से स्पर्श , शब्दों का हृदय से स्पर्श और ऋतुओं का प्राणियों से ही नहीं वरन् वनस्पतियों से भी स्पर्श सुख-दुख की अनुभूति करा जाता है। इस हेमंत और शिशिर ऋतु में बर्फिली हवाओं की छुअन जब चुभन देती है , तो अग्नि का ताप दूर से ही सुखद स्पर्श देता है। कुछ सम्बंध मनुष्य के जीवन में ऐसे भी होते हैं कि दूर हो कर भी उसका छुअन मधुर लगता है और कभी-कभी तन से तन का मिलन होकर भी कुछ नहीं मिलता है ।  परस्पर समर्पण भाव का स्त्री- पुरूष के जीवन में अपना ही कुछ आनंद है।
★★★★★★
आज का यह बहुमूल्य संकलन
आपको कैसा लगा।
आपकी उत्साहवर्धन प्रतिक्रिया की सदैव प्रतीक्षा रहती है।

हमक़दम का नया विषय
जानने के लिए 
कल का अंक देखना न भूले।


-श्वेता सिन्हा

19 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात सखी...
    मन का मन से स्पर्श , शब्दों का हृदय से स्पर्श और ऋतुओं का प्राणियों से ही नहीं वरन् वनस्पतियों से भी स्पर्श सुख-दुख की अनुभूति करा जाता है।
    एक और बेहतरीन अंक..
    साधुवाद
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात
    बहुत ही सुंदर प्रस्तुती
    बेहतरीन संकलन

    तेज़ी से आयी थी

    रुक ही न सकी
    वह उसी झोंक में चली गयी.....

    जवाब देंहटाएं
  3. शुभ-प्रभात सखी
    बेहतरीन संकलन एवं प्रस्तुति
    मेरे मन के भावों ने आपके मन को प्रभावित
    किया, रचनाकारों की रचनाओं ने आपके
    दिल को छुआ।भाव,रस ,रंग की छुवन
    बरकरार रहे,हमकदम के साथ हम भी कदम
    मिला चलते रहें।आभार सखी

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहद उम्दा ! सभी लिंक्स अति उत्तम , खूबसूरत सी प्रभावशाली प्रस्तावना ।

    जवाब देंहटाएं
  5. छू कर मेरे मन को किया तूने क्या इशारा बदला ये मौसम लगे प्यारा जग सारा...
    संकलन से बेहद प्यारा एहसास मिल रहा

    जवाब देंहटाएं
  6. सुप्रभात |उम्दा लिंक्स |मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं
  7. रचनाएँ कम हैं किंतु स्तरीय और पठनीय हैं। बहुत अच्छा अंक। छुअन पर आपके द्वारा प्रस्तुत उद्धरण भी बेहतरीन हैं प्रिय श्वेता।

    जवाब देंहटाएं
  8. अंतिम छुवन कैसी होती होगी
    दिसंबर से जनवरी की
    ज्यों हाथ छुड़ा होले होले
    दुल्हन मात पिता का
    जा बैठती डोली में।

    वाह कितनी सुन्दर भुमिका मनमोहक छुवन जैसे प्रकृति की
    बहुत प्यारी पंक्तियाँ छुवन पर आपकी और अज्ञेय जी की।
    गुलदस्ता सजा है उम्दा फूलों से एक कुसुम मेरा भी उसमें ढेर सा आभार।
    सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  9. वाह!!श्वेता ,सुंदर भूमिका के साथ लाजवाब प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  10. वाह बहुत शानदार प्रस्तुति। हरेक कृति लाज़वाब हैं.एक शब्द से कितने भाव निकल गए हैं..
    आभार

    थाम के ऊंगली मंयक की
    आ बैठी मुंडेर पर
    फिर बह चली आमोद में
    सागर की लहरों पर नाचती।

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत खूब... श्वेता जी ,एक एक रचना लाजबाब। सादर स्नेह

    जवाब देंहटाएं
  12. वाहह..सुंदर प्रस्तुति..
    सभी रचनाऐं लाजवाब
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  13. Very Nice.....
    बहुत प्रशंसनीय प्रस्तुति.....
    मेरे ब्लाॅग की नई प्रस्तुति पर आपके विचारों का स्वागत

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत सुन्दर संकलन आज का ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! सभी मित्रों एवं पाठकों को नव वर्ष की अनंत अशेष शुभकामनाएं एवं हार्दिक बधाइयाँँ ! नूतन वर्ष हर एक के जीवन में सुख समृद्धि, सुस्वास्थ्य एवं सफलता की सौगात लेकर आये यही मंगलकामना है ! आभार !

    जवाब देंहटाएं
  15. जी श्वेता जी हृदय से धन्यवाद , इस सुंदर अंक में मेरे विचारों और अनुभूतियों को स्थान देने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  16. लाजवाब संकलन शानदार प्रस्तुतिकरण ...
    सभी रचनकारों को बधाइयाँ एवं शुभकामनाएंं।

    जवाब देंहटाएं
  17. प्रिय श्वेता -- हमकदम का 51वां शुभांक और अत्यंत कोमल सा विषय मन को छू गया | यद्यपि र्चन्स्यें बहुत कम हैं पर सभी अत्यंत मनभावन है और शशि भाई के लेख का विषय तो सराहना से परे है | छुवन पर इतना सुंदर सटीक चिंतन कोई बिरल ही कर सकता है | खास अंक के साथ ये वर्ष का आखिरी अंक तो जल्द ही हमकदम दुसरे साल में प्रवेश करने की तैयारी में है | ये गौरवशाली एक साल हम सहभागियों और पाठकों के लिए बहुत उत्साहवर्धक रहा जिसमें बहुत ही सार्थक सृजन हुआ | कई अंक तो अविस्मरनीय रहे | आशा है आगे भी ये सफर यूँ ही जारी रहेगा | सभी सहयोगियों और सुधि पाठको को नववर्ष की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें | नववर्ष आप और आपके परिवार के लिए अत्यंत सुखद और मंगलकारी हो यही कामना है |

    जवाब देंहटाएं

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