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सोमवार, 3 दिसंबर 2018

1235...हम-क़दम का सैंतालिसवाँ क़दम....आवाज

आज विश्व-विकलांंग दिवस है। कुछ अटपटा सा लगता है, इतनी जल्दी हम जो कल तक विकलांंग थे, आज  दिव्यांग  बन गये। क्या नाम बदलने से सब कुछ बदल जाता है? विकलांगता कोई दैवीय उपहार नहीं है यह एक बाधा  ही है, जो हमारे जीवन में अनेकों समस्याओं को जन्म देती है।  दिव्यांग  जैसे शब्दों के इस्तेमाल
से मुझे आपत्ति है क्यूंकि ऐसे शब्द गढ़ लेने भर से ही विकलांगों के साथ भेदभाव खत्म नहीं किया जा सकेगा।
                    मैं सोचता हूं  इस सम्मानजनक संबोधन से हमारी  समस्याओं में कोई कमी नहीं आयी है. आज भी कई परिवार ऐसे हैं, जो अपने विकलांग बच्चों को समाज के समक्ष परिचय देने से भी गुरेज करते हैं। उन्हेंं हमेशा बंद कमरों में ही रखते हैं। कई परिवारों में विकलांग के साथ कई प्रकार से दुर्व्यवहार किया जाता है। कोई भी अक्षम सक्षम बन सकता है, सबसे पहले परिवार-जनों की सोच उसके प्रति सकरातमक हो,  जिसका परिवार में मान होगा, समाज भी उसे सम्मान की दृष्टि से देखेगा।  इस प्रकार वो सभी के सहियोग से अवश्य ही अपनी बाधाओं को दूर करते हुए अवश्य ही एक दिन सफल व्यक्ति बन सकेगा। ये मेरा निजी अनुभव है, जिन विकलांगों को परिवार से सहियोग मिला, वो तो आज कामयाब है, और जिन्हे उनके परिवारों में तिरसकार की दृष्टि से देखा जाता था, वो अधिकांश असफल ही रहे। मैं आज विश्व-विकलांग  दिवस पर उन परिवारों से, जिन में विकलांग बच्चे हैं, वे उनके प्रति सकरात्मक   सोच रखते हुए, अपने बच्चों को हौसला दे। उनकी शिक्षा की व्यवस्था करे। उन्हेंं प्रोत्साहित करेंं। उन्हेंं बाधा रहित वातावरण प्रदान करें। आप के प्रयासों से एक दिन वो सफल व्यक्ति बनेंगे।
-कुलदीप सिंह ठाकुर
★★★★★
तन्हाइयों में गुम ख़ामोशियों की
बन के आवाज़ गुनगुनाऊँ 
ज़िंदगी की थाप पर नाचती साँसें
लय टूटने से पहले जी जाऊँ 
-श्वेता
कैसे समझायें आवाज़ क्या होती है
जुबां वाले बेज़ुबां से पूछिएगा कभी
हमक़दम के विषय आवाज़
पर 
हमारे रचनाकारों की
रचनात्मकता
का आस्वादन
आप भी करिये

आदरणीया मीना शर्मा जी

ना जाने किसकी है आवाज,
बुलाता है कोई !!!
ना है सूरत का पता
और ना ही सीरत का,
फिर भी मन पर मेरे
अधिकार जताता है कोई !
ना जाने किसकी है आवाज,
बुलाता है कोई !!!
★★★★★★
आदरणीमा कुसुम कोठारी जी की 
दो रचना

आवाज दी शमा ने ओ परवाने
तूं क्यों नाहक जलता है।
मेरे फना होते ही हवा
मेरे पंख ले जाती है
रहती ना मेरे जलने की कोई निशानी
बस इतनी सी मेरी तेरी कहानी है ।
बस इतनी सी मेरी तेरी कहानी है।

★★★


सारा ब्रह्माण्ड ध्वनि और
   प्रतिध्वनियों से गूंजारित रहता
       जब तक हम उन्हें न करते
        अक्षर  रूप  में  हासिल
उनका नही होता कोई स्पष्ट स्वरूप
 अक्षर दे सुनाई  तो आवाज बनते
    ढलते ही स्याही में शब्द बनते
    अलंकृत होते तो काव्य बनते

       लय बद्ध हो तो गीत बनते
★★★★★
आदरणीया नेहा दुबे जी

यहाँ एक और आवाज़ है जो 
बाक़ी सुनी हुई आवाज़ों से अलग है, 
हर सुनी हुई आवाज़ को पहचानती हूँ, 
पर इस आवाज़ से अंजान हूँ,
ये आवाज़ है ख़ामोशी की आवाज़।
★★★★★
आदरणीया आशा सक्सेना जी

आवाज मीठी मधुर
कानों में रस घोलती
अपनी ओर आकृष्ट करती
आवाज प्रातः काल परिंदों की होती
स्वतः मन को रिझाती
कोयल की मधुर ध्वनि
कानों में रस घोलती
★★★★★
आदरणीया साधना वैद जी

एक वक्त था जब
ज़रा सा शोर, ज़रा सी हलचल
या ज़रा सी भी आवाज़
नागवार गुज़रती थी
लिखना पढ़ना हो, 
चिंतन मनन करना हो

★★★★★★

आदरणीया दीप्ति शर्मा जी

आवाज़ जो
धरती से आकाश तक
सुनी नहीं जाती
वो अंतहीन मौन आवाज़
हवा के साथ पत्तियों
की सरसराहट में
बस महसूस होती है
पर्वतों को लाँघकर
सीमाएँ पार कर जाती हैं
★★★★★
आदरणीया सुप्रिया जी

ना पुकारा है,ना पुकारूँगी,
ना रोका है,ना रोकूंगी,
तुम चलना निरंतर अपनी राह में,
मैं कभी भी पीछे से 
ना आवाज़ दूंगी...,l
★★★★★
आदरणीया शुभा मेहता जी

लगा जैसे नींद में 
कोई आवाज़ दे रहा है 
आओ ,आओ .....
अपना अमूल्य मत 
हमें बेचो ,हमें बेचो 
मुँहमाँगे दाम मिलेगें 
अच्छा .........!!
हमनें कहा ....
रोजगार मिलेगा ?
हाँ ,हाँ ..जरूर.?
★★★★★
आदरणीया अनुराधा जी

आवाज़ ही पहचान है
हर भाव की हर घाव की
आवाज़ से पहचान है
हर किसी जज़्बात की

सुनाई दे जाती है हर आवाज़

जब कुछ टूट कर बिखरे

नहीं सुनाई देती है तो

जब दिल टूट कर बिखरे

★★★★★
आदरणीया अभिलाषा चौहान जी

आवाज़ दबा दी जाती है अकसर
मन की,आत्मा की,
सुनी-अनसुनी करना
बन गई है फितरत हमारी।
कौन सुनता है ??
जब तड़पती हैं मासूम
हैवानों के बीच
दब जाती है आवाज
अट्टहासों में!!!
 ★★★★★
आदरणीय अनिता जी

नीर नयन  का  सूख  गया, 
बन  मीठी   मुस्कान,  
     लौट आएगे , माही  मेरे 
          मन  में था यही गान.. .....
★★★★★
आदरणीय शशि जी

हो, गुनगुनाती रहीं मेरी तनहाइयाँ
दूर बजती रहीं कितनी शहनाइयाँ

ज़िंदगी ज़िंदगी को बुलाती रही

आप यूँ फ़ासलों से गुज़रते रहे

दिल से कदमों की आवाज़ आती रही

आहटों से अंधेरे चमकते रहे

रात आती रही रात जाती रही...
★★★★★

और चलते-चलते उलूक के पन्नों से
डॉ. सुशील जोशी

कुत्तों का 
भौंकना 
तक उस 
माहौल में 
अपने मूल 
को भूल कर 
सियारों के 
ही अन्दाज 
की उसी 
आवाज में 
अपने आप 
ही अपनी 
आवाज को
तोल रहा 
होता है 

आपके द्वारा सृजित आज का
हमक़दम आपको
कैसा लगा?
अपनी प्रतिक्रिया
के माध्यम से
हमक़दम के लिए आपके 
बहुमूल्य सुझाव
आमंत्रित है।

एक गीत सुनिये मेरी पसंद का

हमक़दम के अगला विषय जानने के लिए
कल का अंक पढ़ना न भूलेंं।

आज के लिए आज्ञा दीजिए।

-श्वेता सिन्हा

                 

18 टिप्‍पणियां:

  1. धन्यवाद श्वेता जी मेरी अनुभूतियों को स्थान देने के लिये।
    सभी रचनाकारों को इस व्याकुल पथिक का प्रणाम

    जवाब देंहटाएं
  2. मेरी आवाज ही पहचान है मेरी
    आवाज नहीं तो गुमनाम हूँ मैं..
    बढ़िया प्रस्तुति...साधुवाद...
    सादर....

    जवाब देंहटाएं
  3. वाहहहह..
    पसंद आया...
    आभार..
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. 'ध्वनी अक्षर आवाज' एक छोटी-सी कृति है और बेहतरीन है जो एक यात्रा पे ले जाती है...अक्षर के।
    और हाँ श्वेता दी, विकलांग को दिव्यांग कहने से शायद कुछ ना बदले लेकिन किसी-किसी के लिए ये छोटा बदलाव भी बहुत मायने रखता है।
    ये सही कहा आपने कि
    "जिसका परिवार में मान होगा, समाज में भी सम्मान होगा।" उन्हें हौसला देना महत्वपूर्ण है।

    जवाब देंहटाएं
  5. लाजवाब अंक। आभार श्वेता जी। 'उलूक' की पुरानी कतरन को स्थान देने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  6. एक ही विषय पर बिभिन्न भाव समेटे रचनाएं पढ़ने में बहुत आनंद आता है |
    मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं
  7. शुभ प्रभात श्वेता जी
    बहुत ही सुन्दर हमक़दम की प्रस्तुति 👌
    लाजबाब रचनाएँ ,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनायें
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए सह्रदय आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  8. सुप्रभात श्वेता....🙏 भूमिका सुंदर ...। विकलांग शब्द बदल कर हुआ दिव्यांग ...,साथ ही उन लोगों के प्रति रवैया बदलना जरूरी है ,और सबसे पहले घर वालों का सहयोग आवश्यक है ,आपकी बात से पूर्णत:सहमत हूँ ।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति शानदार रचनाएं बहुत बहुत आभार श्वेता जी मेरी रचना को स्थान देने के लिए

    जवाब देंहटाएं
  10. सुंदर रचनाओं के साथ विचारणीय प्रस्तुति।
    सभी रचनाकारों को शुभकामनाएँँ।
    धन्यवाद.

    जवाब देंहटाएं
  11. विचारणीय भूमिका के साथ शानदार प्रस्तुतिकरण
    लाजवाब लिंक संकलन....सभी रचनकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं...

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत ही सुन्दर सार्थक रचनाओं का संकलन हमकदम का यह कदम ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार ! कुलदीप जी के विचारों से सहमत हूँ ! केवल नामों के माध्यम से महिमा मंडान के स्थान पर इन्हें सामाजिक स्वीकृति, सम्मान एवं सहयोग की अधिक आवश्यक्ता है और इसका शुभारम्भ निश्चित रूप से उनके अपने परिवार से होना निहायत ज़रूरी है !

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  13. बेहतरीन प्रस्तुति।
    भुमिका में कुलदीप जी की सारगर्भित विचार सटीक और मनन योग्य है। हम बाहरी रुपरेखा और ढांचा भर बदलते रहते हैं जिससे कुछ होना जाना नही। अंतर निहित संवेदनाऐं जब तक सकारात्मक नही होती तब तक सब व्यर्थ है।
    आवाज पर शानदार रचनाऐं, मेरी रचनाओं को सामिल करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया ।
    सभी रचनाकारों को बधाई ।
    शानदार प्रस्तुति शानदार संकलन ।

    जवाब देंहटाएं
  14. बेहतरीन प्रस्तुति श्वेता जी,एक से बढ़कर एक रचनाओं का संकलन,सभी रचनाकारों को बधाई,
    मेरी रचना को चयनित करने के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  15. शुभ रात्रि स्वेता जी आपने बहुत ही गहन विषय से शुरुवात की है मैं समर्थकहूँ आपके इस तर्क में कई नाम बदल से स्थितियां नही बदल जायेगी आज विकलांग भी आत्मनिर्भर हैं लेकिन समाज की दृष्टि सदा से उपेक्षित और दया पूर्ण ही रही है उनके लिए नाम बदलने की जगह अगर हम अपनी सोच और सोचने का तरीका बदले यह उनके लिए ज्यादा सहयोगपूर्ण होगा ,बड़े दिनों बाद आज एकदम से जगमगाहट हो गयी है हलचल के आंगन में ढेर सारी कविताएं हैं आज के शीर्षक पर मेरी रचना को स्थान देने हेतु आभार

    जवाब देंहटाएं
  16. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  17. बहुत शुक्रिया मेरी रचना को शामिल करने के लिए प्रिय श्वेता।

    जवाब देंहटाएं

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