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सोमवार, 10 दिसंबर 2018

1242..हम-क़दम का अड़तालिसवाँ कदम.....शहनाई

आज हम..
सखी को आज कोई कार्य विशेष है
परिस्थिति विशेष मे ऐसे अवसर आ जाया करते हैं...


शहनाई (तूती)
प्रसिद्ध क्यूँ हुआ..

शहनाई और बिस्मिल्ला खां
शहनाई का जिक्र 
भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्ला खां के जिक्र के बिना अधूरा है,
एक सामान्य से लोक वाद्य-यंत्र को विश्वस्तरीय पहचान दिलाने में 
उनका योगदान अभूतपूर्व रहा है।
बिहार के डूमरांव में जन्मे अमीरूद्दीन का पालन-पोषण संगीत की लय और तान के बीच ही हुआ था।५-६ वर्ष की अवस्था में वे अपने नाना के यहां काशी आ गए।नाना और मामा काशी के पुराने बालाजी मंदिर के नौबतखाने में शहनाई वादन करते थे। यहां बालक अमीरूद्दीन को अपने चारों ओर शहनाईयां ही दिखाई देती। फिर उसे भी रियाज के लिए बालाजी के मंदिर के नौबतखाने में भेजा जाने लगा।काशी तो है ही संगीत की नगरी, नौबतखाने की ओर जाते हुए अमीरूद्दीन को हर घर से संगीत की स्वर-लहरियां सुनाई देती। जिन्हें सुन-सुनकर उसे संगीत के आरोह-अवरोह का बखूबी ज्ञान हो गया था। धीरे-धीरे शहनाई और बिस्मिल्ला खां एक-दूसरे के पूरक बन गए।काशी में आयोजित संगीत समारोह उनके बिना अधूरे रहते। बढ़ती ख्याति केसाथ ही शहनाई-वादन में उनकी सिद्धहस्तता बढ़ती चली गई। देश-विदेश में होने वाले शास्त्रीय संगीत समारोह में उनका शहनाई-वादन अनिवार्य सा हो गया।

रचनाकारों के द्वारा रची गई अभूतपूर्व रचनाएँ पढ़िए....

तुम भी औरों जैसे ही निकले
स्वार्थी, हृदयहीन और निर्मम !
तुम्हें तो बस औरों की
वाहवाही लूटने से मतलब है
महसूस किया है कभी 
मुझ जैसी शहनाई का दर्द 
कभी सोचा है मुझ पर क्या गुज़रती है
जब मेरे तन के हर छेद पर
तुम्हारी ये उँगलियाँ नाचती हैं !

पीली  हल्दी ,  चमके  कंगना, 
लाल   चुनरियाँ,  सुर्ख   जोड़ा  
सिंदूरी   मंद -मंद  मुस्काई 
सप्त   फेरों  में  मिले  क़दम 
रिश्तों   की   गाँठ   सुहानी 
अश्रु    से  भीगी   खुशियां 
पुरवाई   संदेश  है   लाई 
गूँज   उठी   मीठी   शहनाई

गूंज उठी मधुर शहनाई
सजी चूड़ियां गोरी की कलाई
चल दी गोरी पिया की गली
आंखों में ढेरों सपने लिए
होंठों पर ढेरों नगमे लिए
ओढ़ के प्रीत की चुनरी
चल दी गोरी पिया की गली

दूर कहीं शहनाई बजी
आहा! आज फिर किसी के
सपने रंग भरने लगे
आज फिर एक नवेली
नया संसार बसाने चली
मां ने वर्ण माला सिखाई
तब सोचा भी न होगा
चली जायेगी

प्रातः काल तबले की थाप पर
शहनाई वादन   
बड़ा सुन्दर नजारा  होता
भ कार्य का आरम्भ  होता
प्रभाती का प्रारम्भ
हनाई से ही होता
नि इतनी मधुर होती कि
कोई कार्य करने का
न ही न होता

क्यूँ गूँजती है वो शहनाई, अभ्र की इन वादियों में?

अभ्र पर जब भी कहीं, बजती है कोई शहनाई,
सैकड़ों यादों के सैकत, ले आती है मेरी ये तन्हाई,
खनक उठते हैं टूटे से ये, जर्जर तार हृदय के,
चंद बूंदे मोतियों के,आ छलक पड़ते हैं इन नैनों में...

गूंज हूं मैं अकेला,
संग गूंजेंगी ये विरानियाँ,
दो पग भी चले,
बन ही जाएंगी पगडंडियाँ,
पथिक भी होंगे,
यूं ही बजेंगी शहनाईयां....

चारों तरफ बज रही शहनाई है
मेरे घरोंदे में चाँदनी उतर आई है ।

पड़ोसी के चेहरे पे उदासी छाई है
लगता है उनको चाँद ने घूस खाई है ।

उदाहरण स्वरूप ''मेरी धरोहर'' में प्रस्तुत रचनाएँ

सुधियों में हम तेरी
भूख प्यास भूले हैं
पतझर में भी जाने
क्यो पलाश फूले हैं
शहनाई गूँज रही
मंडपों कनातों में।

मेरे बहुत चाहने पर भी नींद न मुझ तक आई
ज़हर भरी जादूगरनी सी मुझको लगी जुन्हाई
मेरा मस्तक सहला कर बोली मुझसे पुरवाई

दूर कहीं दो आंखें भर भर आईं सारी रात
और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात।

रचनाएँ पसंद आई होंगी..रचनाकारों का मनोबल बढ़ाइए
उन्चासवाँ विषय कल के अँक में देखना न भूलिए
सादर
यशोदा



18 टिप्‍पणियां:

  1. गूंज हूं मैं अकेला,
    संग गूंजेंगी ये विरानियाँ,
    दो पग भी चले,
    बन ही जाएंगी पगडंडियाँ,
    पथिक भी होंगे,
    यूं ही बजेंगी शहनाईयां....
    अच्छी रचनाओं का संकलन, बेहद खूबसूरत अंक।
    प्रणाम

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात,
    रचनाकारों की लेखनी को सलाम क्या खूब रंग बिखेर दिए हैं विषय को लेकर।
    आनंद आ गया

    मेरे बहुत चाहने पर भी नींद न मुझ तक आई
    ज़हर भरी जादूगरनी सी मुझको लगी जुन्हाई

    जवाब देंहटाएं
  3. सस्नेहाशीष व शुभकामनाएं छोटी बहना
    आकस्मिक आकर मंत्र-मुग्ध करती हैं

    जवाब देंहटाएं
  4. शुभ प्रभात आदरणीया
    बेहतरीन हमक़दम का संकलन 👌
    शानदार रचनाएँ ,सभी रचनकारों को हार्दिक शुभकामनायें ,
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए सह्रदय आभार आदरणीया
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत उम्दा लिंक्स |मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं
  6. बेहतरीन संकलन और प्रस्तुति यशोदा जी।
    सभी रचनाएं उत्तम, मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार।

    जवाब देंहटाएं
  7. शहनाईयाँ बज रही हैं आज तो जैसे चारों तरह। बहुत सुन्दर प्रस्तुति। आभार यशोदा जी। आप कुछ ना कुछ 'उलूक' के कबाड़ में से ढूँढ ही लाती है।

    जवाब देंहटाएं

  8. अत्यंत सुन्दर प्रस्तुति ! सभी रचनाएं बहुत प्रभावी एवं शानदार ! मेरी रचना को आज की हलचल में स्थान देने के लिए आपका हृदय धन्यवाद एवं आभार दिग्विजय जी ! सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं !

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत खूबसूरत प्रस्तुति । सभी रचनाकारों को हार्दिक अभिनंदन ।

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत ही बेहतरीन रचनाएं सुंदर प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार यशोदा जी

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत ही सुरीली प्रस्तुति आदरणीय यशोदा दीदी | सभी रचनाकारों ने बहुत ही भाव स्पर्शी रचनाओं से इस अंक को अतुलनीय बना दिया | सभी को हार्दिक बधाई और शुभकामनायें | हमकदम की महफ़िलें यूँ ही आबाद रहें यही प्रार्थना है | अद्भुत लिंक संयोजन के लिए हार्दिक बधाई | पर आज भाई शशि गुप्ता जी के अत्यंत संवेदनशील लेख को , जो उन्होंने शहनाई पर लिखा था , लिंकों में ना पाकर मायूसी हुई | कई रचनाएँ गूगल प्लस पर नजर आ रही थी पर ना जाने क्यों वे इन लिंकों में स्थान ना पा सकी | सादर --

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सखी रेणु...
      पथिक जी की ही रचना से ही विषय चुना गया था...आप पिछले मंगल का अंक देखिए.. हम-क़दम नए विषय की सूचना के साथ रचना का लिंक भी दिया हुआ है.. और शहनाई पर उनकी कोई नई रचना की सूचना नही मिली हमें..
      सादर...

      हटाएं
    2. जी दीदी आभारी हूँ आपकी| शंका का समाधान भी किया और शशि भाई की रचना को लिंकों में स्थान दिया | शायद वो समय से भेज ना पाए हो कुछ गलतियाँ रचनाकारों की और से भी हो जाती हैं | सादर --

      हटाएं
  12. शानदार प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन...
    एक से बढकर एक रचनाएं... सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं

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