मुलाहिज़ा फ़रमाएँ अंक क्रमांक
एक दो तीन चार....
इस अंक में कुछ खास नही होते हुए भी
कुछ तो खास है......
अभी हालिया आदरणीया कविता दीदी का विवाह वर्षगाँठ
सम्पन्न हुआ है...शुभकामनाएँ
चल पड़ी है गाड़ी आजकल उनके प्यार की....कविता रावत
रोम-रोम पुलकित हो उठते
जब भी बजती घंटी
झनक उठते दिलतार
डूबे मन प्यार में सोच-सोच कर
आतुर धड़कने बढ़ती बार-बार
यूं कब दिन बीत जाता एक दूजे में
लगता हैं आई घड़ी बहार की
सुना है कन्हैया बना चितचोर
रहती उन्हें हर घड़ी अब
उनके इन्तजार की
अन्नदाता.....अनीता सैनी
गुरुर धधक रहा छाती में ,
पगड़ी स्वाभिमान की पहन
अंगारों पर चलता हूँ !!
आगोश में मोहब्बत ,
आँचल में उम्मीद समेटे
निश्चिल नित्य आगमन करता हूँ,!!
अब उल्टा-पुल्टा
डॉ. सुशील जी जोशी
कैसे
पूछा जाये
किसी से
उनके
पिता जी को
उनके पिता जी
सीधा
सिखा गये
या उल्टा
सिखा गये ।
आज बस इतना ही
रविवार शुभ हो
यशोदा
वाहहहह..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन...
हैप्पी सण्डे...
सादर..
बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति। मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात आदरणीया
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति 👌
मेरी रचना को स्थान देने के लिय सह्रदय आभार
सादर
सुन्दर लिंक्स
जवाब देंहटाएंसुन्दर रविवारीय हलचल। आभार यशोदा जी 'उलूक' के पिताश्री की सीख को आज के पन्ने में जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति शानदार रचनाएं
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचनाओं का.गुलदस्ता है दी..मेरी.रचना.को भी स्थान देने के.लिए हृदयतल से अति आभार आपका।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर संकलन सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंअस्वस्था की वजह से विलम्ब से हलचल में अपनी उपस्थिति दर्ज करने के क्षमाप्राथी हूँ
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत आभार यशोदा दी