आज पढ़िये सरल और मोहक शब्दों की
जादूगरी से सरोबार गोपाल सिंह "नेपाली" की
लिखी मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ-
(1911-1963)
सितारों को मालूम था छिटकेगी चाँदनी,
सजेगा साज प्यार का बजेगी पैंजनी
बसोगे मन में तुम तो मन के तार बजेंगे
सितारों को मालूम था, हम दोनों मिलेंगे
दो दिन के रैन-बसेरे में, हर चीज़ चुराई जाती है
दीपक तो जलता रहता है, पर रात पराई होती है
गलियों से नैन चुरा लाई, तस्वीर किसी के मुखड़े की
रह गये खुले भर रात नयन, दिल तो दिलदारों ने लूटा
तुम भी चेतो मेरे साथी
तुम भी जीतो मेरे साथी
संघर्षों के निष्ठुर रण में,
कुछ ऐसा खेल रचो साथी !
★★★★★★★★
अब पढ़ते हैं आज की रचनाएँ
★
आदरणीया रेणु जी
ना रहा बस में मेरे -
कब दिल पे जोर था ,
उलझा रहा भीतर -
तेरी यादों का शोर था !!
भ्रम सी थी हर आहट
तुम जैसे आसपास हो ।
कह रहा बोझिल मन
कहीं तुम भी उदास हो !!
★★★★★
आदरणीया नुपूर जी
जब निश्छल होता है संवाद
सर्वदा अपने इष्ट से हमारा,
जान पड़ता है कौनसा पथ है चुनना ।
सत्पथ पर सत्यव्रत हो चले यदि,
जो शोभा दे, वह विजय मिलेगी ।
नीतियुक्त समृद्धि मिलेगी ।
★★★★★
आदरणीय पुरुषोत्तम जी
ढूँढ़ लें ख़ुद को
कलियाँ, चटकती है जहाँ!
खुश्बु, हवाओं में बिखरती है जहाँ!
प्रशस्त साँसें, खुलती हैं जहाँ!
फैलाती हों दामन वादियां,
चल कहीं, वादियों में ढूंढ लें खुद को....
छू लेगी तन, जब मीठी पवन,
गुद-गुदाएगी तन, हलकी सी छुअन,
मिल लूंगा तब, मैैं खुद से वहाँ,
बातें चंद कर लेंगी तन्हाईयाँ,
चल कहीं, तन्हाईयों में ढूंढ लें खुद को....
★★★★★
नहीं मंजिल,तिरस्कार के लिए मुस्काता हूँ;
कुछ रातें सड़क पर गुजरीं ,
अब "पथिक" कहलाने के लिये मुस्काता हूँ।
शहनाई बजी न साथी मिला ,
अब तो तन्हाई के लिए मुस्काता हूँ;
तेरी जुदाई का ये महीना है माँ !
आंचल तेरा पाने के लिये मुस्काता हूँ।
★★★★★★
आदरणीया कामिनी जी
हां ,बस इतना पता होता है कि "मृत्यु "जो की एक शास्वत सत्य है वो तो एक दिन आएगी जरूर लेकिन ये नहीं पता की वो अंत सुखद तरीके से होगा या तकलीफो भरा।हां , एक और फर्क है कि- चलचित्र को जितनी बार चाहे देख सकते है लेकिन जीवन का वो हर एक पल जो गुजर गया वो गुजर गया दोबारा जीने को या देखने को नहीं मिलता। हां ,अपने ख्वाबो ख्यालो में उसे जरूर ढूंढ़ कर देख सकते है और थोड़ो देर के लिए ही सही दिल को सुकून दे सकते है।
★★★
आज यह अंक आपको कैसा लगा?
आप सभी की बहुमूल्य प्रतिक्रिया की
प्रतीक्षा रहती है।
हमक़दम के विषय के लिए
कल का अंक पढ़ना न भूले
विभा दी लेकर आ रही हैंं
विशेष अंक
★
ऋण की माफ़ी का चलन ठीक नहीं साहिब
मासूम अन्नदाता को यूँ बहकाना गलत बात है
इंतज़ाम कोई पुख़्ता,क़ाबिलियत कर पैदा
बैसाखी सपनों की नहींं,ज़मीनी कोई हल दो
पकड़ा कर तख़्तियाँ, जानलेवा न बल दो
चीख कर गलतियों को छुपाना गलत बात है
पकड़ा कर तख़्तियाँ, जानलेवा न बल दो
जवाब देंहटाएंअपनी गलतियों को छुपाना गलत बात है
सुंदर संकलन से भरा अंक..
माँ को समर्पित मेरी प्रथम शब्द विहीन रचना को स्थान देने के लिये आभार भी
शुभ प्रभात..
जवाब देंहटाएंपकड़ा कर तख़्तियाँ,
जानलेवा न बल दो
चीख कर गलतियों को
छुपाना गलत बात है
बढ़िया कथन..
प्राचीन और अर्वाचीन तक
ऐसा ही होता आया है..
श्रमसाध्य प्रस्तुति
सादर...
शुभ प्रभात आदरणीय
जवाब देंहटाएंबेहतरीन हलचल का संकलन 👌
सशक्त व सार्थक रचनाएं, रचनाकारों की लेखनी को नमन, बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति श्वेता जी। मनमोहक और भावपूर्ण रचनाओं
जवाब देंहटाएंके साथ शीत की यह सुबह और भी सुन्दर
हो गई।
शानदार संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ।
जैसे नपी-तुली उचित मात्रा में व्यंजन सामग्री का संयोजन कर स्वादिष्ट व्यंजन बनता है । वैसा ही ।
बहुत ही सुंदर अंक। सादगी में जो सौंदर्य है वह इस अंक की रचनाओं में है, भूमिका में भी और उपसंहार में भी !!! बधाई आपको प्रिय श्वेता ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति श्वेता जी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अंकों के साथ प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंसार्थक संदेश देती उक्तियाँ।
बधाई ।
बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सशक्त रचनाएँ , सुंदर संकलन , सभी रचनाकारों को बधाई
जवाब देंहटाएंवाह! सुन्दर प्रस्तुति। उत्तम रचनाओं का चयन। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति का अंत चर्चित विषय से किया है जो अनेक सवाल खड़े करता है। किसान क़र्ज़ माफ़ी जब चुनाव जिताऊ मुद्दा बन जाय तो अवश्य बहस होनी चाहिए। चुनाव जीतने के बाद इस क़र्ज़ माफ़ी में कितने किन्तु-परन्तु जुड़ जाते हैं यह बात शहरी लोगों को पता नहीं चलती। किसान के प्रति सम्वेदना आम लोगों में इसलिये पैदा हुई क्योंकि उसकी पीड़ा सच्ची है। हम इस बात पर भी विचार करें देश की लगभग 70 प्रतिशत जनता खेती से ही जीवनयापन कर रही है जिसका विकास थम गया है बल्कि ऋणात्मक रुख़ पर है। किसान को अपना माल बेचने वाले और उसकी उपज ख़रीदकर माल बनाने वाले आजकल ख़ूब मज़े में हैं वहीँ किसान फाँसी के फंदे पर लटककर जान दे रहा है। अभी संसद में बताया गया है कि 2016 से अब तक सरकार के पास किसानों की आत्महत्या के आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं (शायद शर्मिंदगी से बचने के लिये गणना रोक दी गयी ?)
किसान के लिये स्पष्ट नीति का सन्देश स्वागतयोग्य है।
प्रिय श्वेता -- सबसे पहले आदरणीय साहित्य पुरोधा गोपाल सिंह नेपाली जी की रचनाएँ पढवाने के लिए बहुत बहुत आभार | सह्तीय प्रेमियों के लिए नेपाली जी परिचय के मोहताज नहीं रहे| उनकी सरस , सरल , भावपूर्ण रचनाएँ पाठकों को मुग्ध करती हैं | नुपुरम जी की रचना ' गीता का मनन ' चिंतनपरक रचना है | आदरणीय पुरुषोत्तम जी भाव पूर्ण रचना के साथ भाई शशिजी की माँ को समर्पित रचना मन को छुने वाली है तो बहन कामिनी सिन्हा जी के सुंदर लेख के साथ उनका पञ्च लिंकों से जुड़ना बहुत सुखद है | और आपकी पंक्तियाँ शानदार हैं और सार्थक भी --
जवाब देंहटाएंइंतज़ाम कोई पुख़्ता,क़ाबिलियत कर पैदा
बैसाखी सपनों की नहींं,ज़मीनी कोई हल दो!!!!!
इन सके साथ मेरी रचना को भी आज मंच पर स्थान मिला जिसके लिए आभारी हूँ | सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई |
शानदार प्रस्तुति उम्दा लिंक संकलन.....
जवाब देंहटाएंपकड़ा कर तख़्तियाँ, जानलेवा न बल दो
चीख कर गलतियों को छुपाना गलत बात है
वाह!!!
बड़े मनोयोग से संकलन किया है
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
सादर
वाह!!श्वेता ,बेहतरीन प्रस्तुति ..।सभी रचनाएँ बहुत खूबसूरत ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया, नेपाली जी की लाजवाब रचनाओं से साक्षात्कार करवाने के लिये, सभी बेहतरीन रचना खोज कर लाने का अथक परिश्रम प्रस्तुति में दिख रहा है।
जवाब देंहटाएंअंक में प्रकाशित सभी रचनाऐं पठनीय सुंदर सभी रचनाकारों को बधाई ।
उपसंहार में आपकी पंक्तियाँ मर्मस्पर्शी है सच कहा ऋण माफी एक बार का हल है फिर क्या होगा यही चक्र चलेगा इससे बेहतर हो कि किसानों को अपनी मेहनत का पुरा अनुदान मिले उनकी फसलों को सही खरीददार और पूरी कीमत मिले सस्ते दाम पर बीज उपलब्ध करवाऐं नई तकनीक की जानकारियां दे आदि और भी आधारभूत की सुविधाएं उन्हें प्राप्त हो।
श्वेता आपने लम्बी सी समस्या को कुछ शब्दों में शानदार तरीके से पिरोया है ।
साधुवाद।
सस्नेह।