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रविवार, 30 दिसंबर 2018

1262....एक की हो रही पहचान है, एक पी रहा कड़वा जाम है !

सादर अभिवादन
वर्ष का अंतिम रविवार
कुछ ज़ियादा ही ठण्डा है
ज्यादा बात न करते हुए चलें रचनाओं की ओर...

आज शिखर पर हूँ मैं,
पर दिल में सवाल है 
कि मर-मर कर ऊपर पहुंचने से 
जीते हुए नीचे रहना 
क्या ज़्यादा अच्छा नहीं है?


पुरोहित की है अपनी बेबसी, शाम गहराते ही 
बंद हो गए मंदिर के दरवाज़े, ख़ामोश 
हैं सभी, पृथ्वी हो या आकाश,
सिर्फ़ अंतर गहन सारी
रात है जागे। 


तुम तो पढ कर सुनाओगे नहीं 
कभी वह खत 
जिसे भागने से पहले 
वह अपनी मेज पर रख गई 
तुम तो छुपाओगे पूरे जमाने से 
उसका संवाद 
चुराओगे उसका शीशा उसका पारा 

समय नहीं होगा
जब अवसर होगा ।
जब समय होगा
अवसर नहीं होगा ।

ऐसे ही क्रम चलेगा ।
लुकाछिपी खेलेगा 
और समय बीत जाएगा ।
पता भी ना चलेगा ।

टूटा है यदि दिल तुम्हारा । 
गम की बातें कह सकते हो ।। 

मन में अपने ऐंठ छुपाए । 
सब से सुन्दर तुम लगते हो ।। 

लगते हो तुम मलयानिल से । 
जब अल्हड़पन से हँसते हो ।। 


ये तो तेरा-मेरा रोज़ का मसला हैं,
जंगे ज़िन्दगी में ,
ये कहा सुन ही तो असल असला हैं,
यूँही खट्टे मीठे तजुर्बों की रवानी हैं,
हम्हे तो बस यूँही अब निभानी हैं,
थोड़ा तुम क़दम बढ़ाओ,
मैं कुछ मान जाता हूँ

क्यों नहीं मिलता 
कुछ सम्मान है 
किसी का नाम होने से 
किसी को हो रहा 
बहुत नुकसान है
कोई करे कुछ तो
उसके लिये कभी
इसकी और उसकी 
हो रही पहचान से
किसी की सांसत में 
देखो फंस रही जान है 


आज बस इतना ही
फिर मिलेंगे अगले साल
यशोदा

15 टिप्‍पणियां:

  1. सस्नेहाशीष संग शुभकामनाएं छोटी बहना
    बहुत बढ़ियाँ संकलन

    जवाब देंहटाएं
  2. तुम तो पढ कर सुनाओगे नहीं
    कभी वह खत
    जिसे भागने से पहले
    वह अपनी मेज पर रख गई

    सुप्रभात सुंदर प्रतुति।
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुप्रभात !
      सुबह सुबह के पुष्पगुच्छों के समान ताजा संकलन । इतने सुन्दर अंक की प्रस्तुति के लिये आपका सादर आभार ।

      हटाएं
  4. शुभ प्रभात
    बेहतरीन रचना संकलन और प्रस्तुति
    सभी रचनाकारों को बधाई

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही सुंदर अंक
    बेहतरीन रचनाएँ
    सभी रचनाकारो को बधाई
    आभार... जी इतनी उम्दा रचनाओं को पढ़वाने के लिए
    आलोक धन्वा जी की रचना 'भागी हुई लडकिया' संकलित करने के लिए सह्दय आभार..

    जवाब देंहटाएं
  6. सब में शामिल अपने में गुम ।
    उखड़े-उखड़े से दिखते हो ।।

    खूबसूरत पंक्ति
    पर यह सब में शामिल ,अपने में गुम होने का दर्द बेहद खतरनाक होता है।
    खुदकुशी की घटनाओं में हम पत्रकारों को यही सुनने को मिलता है , "भाई साहब रात तक तो हम सभी साथ ही थें, पता नहीं यह कैसे हो गया!!!"

    सुंदर संकलन,सभी को प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
  7. बढ़िया हलचल प्रस्तुति। आभार 'उलूक' के कुछ कुछ में से कुछ उठा लाने के लिये यशोदा जी।

    जवाब देंहटाएं
  8. बेहतरीन रचना संकलन और प्रस्तुति
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई..........सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
  9. 21:31
    धन्यवाद यशोदाजी ।


    देर हो जाने पर जो खोया,
    उस अनुभव से ही समझा,
    पल-पल का मोल है क्या ।

    खो कर वास्तव में सीखा ।
    वक़्त की वाक़ई कद्र करना ।

    जग से जो कहा,
    स्वयं से भी कहा ।
    देर मत करना ।

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत ही शानदार संकलन सखी सुंदर अंक सभी रचनाऐं बेहतरीन। सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं

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