शाश्वत सुवास सा श्वास श्वास छितराई
सतरंगी सी, इन्द्रधनुषी! रास रंग अतिरेक
एक और एक प्रेम गणित में होते सदा ही एक!
सोचती हैं गोपियाँ कि हर्ष के प्रसंग बीच,
राधिका क्यों इतनी उदास लगने लगी ।
प्रेम की पिपासिता का मन कैसे तृप्त होगा !
देख नदिया को फिर प्यास लगने लगी ।।४।।
अब टूटने दो उन्हें!
क्यों रहें बंद ये कपाट!
जाति-धर्म-सम्प्रदाय,
के नाम पर,
क्यों न खोलकर,
नफरतों की धूल झाड़ दें?
इंसानों को अलग कर देखो
धर्म की हर एक किताब में
इंसानियत का पाठ पढ़ाया जाता है।
थोड़ा पिघल , उजाले की किरण
का सबब तू बन ,देख फिर तू भी पूजा
जाएगा ,तेरा जीना सफ़ल हो जाएगा
शुभ प्रभात...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
सादर
शुभ प्रभात सुंदर प्रस्तुति शानदार रचनाएं
जवाब देंहटाएंशानदार संकलन
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन
मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई
बेहतरीन हलचल प्रस्तुति 👌
जवाब देंहटाएंप्रेरक वर्ण पिरामिड से सुंदर शुभारंभ करता सार्थक अंक। सभी सामग्री पठनीय संग्रहित करने योग्य सुंदर संकलन।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई।
अपनों से ले जाता दूर सोशल-मीडिया ...यथार्थ आदरणीय !
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन
बेहतरीन रचनाए
प्रेम की हूक -आशुतोष द्विवेदी जी की रचना इस अंक में सम्मिलित करने के लिए सहृदय आभार.....
वर्ण पिरामिड के साथ सुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाएँ
धन्यवाद।
संदेशात्मक भूमिका है रवींद्र जी..मीडिया की महिमा अपरम्पार,डिटिटल क्रांति के इस युग में मानव.संवेदना मीडिया के इशारों पर निर्भर हो गयी है।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाओं के इस गुलदस्ते में मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदय से आभारी हूँ।
सभी रचनाएँ बहुत अच्छी लगीं।
भूमिका की सज्जा और विषयवस्तु के बीच अद्भुत तालमेल से आगाज़ करती सुमधुर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति रवींद्रजी। सोशल मीडिया और परिवार को दिए जाने वाले समय में संतुलन बना लें तो समस्या हल हो सकती है शायद। प्राथमिकताएँ तय करना बहुत जरूरी है।
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