दिसम्बर
साल का आखरी महीना
याद कहाँ रहेगा नये साल की प्रतीक्षा में
जाने कब आखरी राह आ जायेगा
ज़िन्दगी में
थम जाये साँसे कही ठहर ना जाये वही
राहो के हर मौसम को जीलो तुम
हर पल को अपना बना लो
जाने कौन सा पल आखरी पल का साक्षी
ज़िन्दगी राह गुजर है गुजर ही जायेगी
इंसान की कीमत उस कुत्ते से भी कम थी। उसके स्वाभिमान ने उसे भीख मांगने से इंकार कर दिया। वह विवश हो सौ का नोट मुट्ठी में बांधकर नए रोजगार की तलाश में चल पड़ा। गाँव में रुपए भेजने थे। इतने कम से कैसे होगा! यही सोच अपनी विवशता पर रो पड़ा…।
विवशता
हाथों में तो मेंहदी का रंग
चढ़ भी न पाया है
चारों तरफ है जश्न का माहौल
मीठी खीर, सेवइयां, दावतें
पर मेरे दिल के आंगन में तो
विवशता
प्रेषण की अंतिम तिथि शनिवार 1-12-2018
तथा
प्रकाशन तिथि सोमवार 3-12-2018
बहुत दूर दूर से...
जैसे
कोई पहाड़ियों से
सदियों पुरानी घुटन भरी
आवाज़ आ रही है
और
मैं उसे सुनते हुए दौड़ लगाता
ऐसा लग रहा है कोई अपना सा
जो मुझे चाहते हुए छूट गया था
आज
फिर उसी आवाज़ ने मुझे खींच लिया
नहीं जानता कि क्या रिश्ता रहा होगा
मेरे और उनके बीच कुछ तो था या है
अब
कदम चल पड़े ही है तो उससे मिलना
भरसक कोशिशें रहेंगी मेरी उसे खोजने
उनकी आवाज़ ही है जो मेरी दिशा तय करें
लगता है
अब दिन दूर नहीं है सदियों पुराने
रिश्ते से फिर जुड़ जाऊं मैं और फिर
नया रिश्ता पुन: स्थापित होगा
न बिछड़ने के लिए ।
-पंकज त्रिवेदी
सादर नमन
जवाब देंहटाएंलोग विवश हैं
आज ठण्ड बहुत है...
सदा की तरह मनभाती प्रस्तुति..
सादर...
सुन्दर सूत्रों का संकलन।
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात आदरणीय
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर संकलन हलचल के आँगन में
सादर
सुन्दर संकलन, सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सूत्र संकलन...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति!!
जवाब देंहटाएंवाह एक ही विषय पर विविध रचनाएं!
जवाब देंहटाएंखोज पर की गई मेहनत साफ साफ दिख रही है आदरणीय सादर।
सभी रचनाकारों को बधाई।
उत्कृष्ट संकलन ।