सादर अभिवादन.
रविवार का दिन
कहा तो जाता है कि
फुरसत रहती है रविवार को
पर यहाँ छत्तीसगढ़ में नहीं है किसी को
फुरसत...
वज़ह है चुनाव और नई सरकार
कयास लगाए जा रहे हैं कैसी होगी सरकार
और उसके मंत्री गण...जारी है जोड़-तोड़
चलिए चलते हैं..आज की रचनाओं का आस्वादन करें...
सफ़र कुछ वक़्त का राह बदल गई ,
तन्हा सफ़र में तन्हाइयों का हो गया,
सोख लिए अश्क़ धूप जिंदगी ने
अदब से बेवफ़ा कह गया ||
चाहते हैं बर्फ ही बर्फ हो आसपास
अवसर मिला है क्यूँ न लाभ उठाएं
किट बुक करवाया
बहुत उत्साह से
पर मित्र बदल गया
उसे ठण्ड रास नहीं आती
अनेकों समझौतों की
खूँटियों से लटके
अपने बेरंग बदसूरत से जीवन को
उसने बड़े करीने से
हालात से एक और समझौता करके
अपने रिश्तों की अलमारी में
बेहद खूबसूरती से सजी
एक बहुत सुन्दर सी मंजूषा में
सजा कर रखा हुआ है
छूकर मेरी पलकें मेरा सपना चला गया
कुछ यूँ लगा जैसे कोई अपना चला गया !
खाली पड़ा हुआ था, जो मुद्दत से बंद था
रहकर उसी मकान में मेहमां चला गया !
ले गया कोई हमें, हमसे ही लूटकर
इक अजनबी के संग दिल-ए-नादां चला गया !
सियासी आईने की तस्वीर एक बार फिर बदल गयी । जिन्हें गुमान था , उनका विजय रथ रसातल में चला गया। सिंहासन पर बैठे वज़ीर बदल गये हैं। भारी जश्न है चारोंओर, पार्टी में इस राजनैतिक वनवास के समापन का श्रेय युवराज को दिया जा रहा है। अब तो अगले वर्ष दीपावली मननी तय है , ऐसा कहा जा रहा है। हम पत्रकारों को भी पटाखा फोड़ने वालों ने जल- जलपान करवाया था , उनका फोटो आदि प्रकाशित कर हमने भी अपना कर्म पूरा किया।
ज्योतिर्मय करतीं दुनिया को
स्वयं शाम की बोझिल किरणें,
दीन हुईं, अब मौन रूप में
चंदा नभ पथ पर निकला है;
चमकाता आँखों में मोती
धवल रश्मियों सा इतराता,
तारों की बारातों से सज
वलय बीच में वह पिघला है।
संध्या के आहातों में अब, ललचाते ओ काले बादल!
ज़रा लगाकर ऐनक देखो, तुम भी हाहाकार मचाओ।
चलते- चलते देखिए
अंगूठे के निशान ...... डॉ. सुशील जोशी
सबका सबके पास जरूर
कुछ ना कुछ होता है
बस इसका लिखा
उसके लिखे जैसा ही हो
ये जरूरी नहीं होता है
फिर भी लिखे को लिखे
से मिलाना भी
कभी कभी जरूरी होता है
निशान से कुछ
ना भी पता चले
पर उस पर अंगूठे का
पता जरूर पता होता है ।
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बस इतना ही काफी है
आदेश दें
दिग्विजय
सुंदर संकलन
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात...
जवाब देंहटाएंबढ़िया अंक...
आभार..
सक्रियता काबिल-ए-तारीफ़ है
आभार..
सादर..
शुभ प्रभात आदरणीय
जवाब देंहटाएंबेहतरीन हलचल प्रस्तुति 👌
बहुत सुन्दर रचनाएँ, सभी रचनकारों को शुभकामनायें,
मुझे स्थान देने के लिए सह्रदय आभार
सादर
बहुत बहुत आभार आदरणीय दिग्विजय अग्रवाल जी।
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन में अपनी रचना को पाकर खुशी हुई। ना जाने क्यों मैं अपने ब्लॉग पर आई हुई टिप्पणियों के जवाब नहीं दे पा रही। रिप्लाय और +1 का ऑप्शन ही नहीं खुल रहा है। किसी को कारण समझ में आए तो कृपया मेरी मदद करें।
बहन मीना..
हटाएंगूगल प्लस बंद होने के कगार पर है
यह फेसबुक को झटका देने के लिए बनाया गया था..पर खुद झटक गया..
सादर
ओह ! किंतु मेरे एक मित्र ने मेरा मेल आइडी लिया और अपने पीसी में खोला तो वहाँ उनसे हो पाया। ना जाने यहाँ क्यों नहीं रहा। धन्यवाद दिग्विजय सर।
हटाएंबहुत ही सुन्दर संकलन एवं प्रस्तुति,सभी रचनाएं एक से बढ़कर एक, रचनाकारों को बधाई।
जवाब देंहटाएंउम्दा संकलन लिंक्स का |मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंसुंदर संकलन, मेरे विचारों को स्थान देने के लिये हृदय से आभार भाई साहब
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा सूत्रों का चयन आज की हलचल में ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से धन्यवाद एवं आभार दिग्विजय जी ! सस्नेह वन्दे !
जवाब देंहटाएंशानदार रचनाओं से सजी आज की लिंक..
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई।
धन्यवाद
सुन्दर रविवारीय अंक। आभार दिग्विजय जी 'उलूक' के पन्ने को भी जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंउम्दा रचनाओं के साथ शानदार प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंएक से बढ़कर एक रचनाएँ पढवाई आपने आदरणीय।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति सुंदर अंक सभी रचनाकारों को बधाई।
लिखे को लिखे से मिलाना ज़रूरी है ।
जवाब देंहटाएंबेशक़ दिग्विजय जी ।