जय मां हाटेशवरी......
जब चली ठंडी हवा बच्चा ठिठुर कर रह गया
माँ ने अपने ला'ल की तख़्ती जला दी रात को
-सिब्त अली सबा
स्वागत व अभिनंदन है.....आप सभी का.....
पेश है....आज के लिये मेरी पसंद.....
हर ख़त्म होते साल के साथ
अगले साल का इंतज़ार करती ये मोहब्बत...
न किसी महल की ख्वाईश,
न ही किसी जन्नत की
हमें मुबारक अपने आवारा सड़कों की ये मोहब्बत...
जिन्हे गुस्सा आता है,
वो लोग सच्चे होते हैं,
मैंने झूठों को अक्सर
मुस्कुराते हुए देखा है…
सीख रहा हूँ मैं भी,
मनुष्यों को पढ़ने का हुनर,
सुना है चेहरे पे…
किताबो से ज्यादा लिखा होता है…!”
शब्दों के अम्बार लगे रहते
विचार भी कहाँ पीछे रहते
पहले हम पहले हम कह कर
लाइन तोड़ देते हैं
क्रम में आने का
इंतज़ार नहीं करते
देर तक चाहे शिखर के बीच रह लो
चैन धरती पर तुम्हे आकर मिलेगा
बैठ कर देखो बुजुर्गों के सिरहाने
उम्र का अनुभव वहीं अकसर मिलेगा
सर्दियाँ तब भी थी
जो बेहद कठिनाइयों से कटती थीं,
सर्दियाँ आज भी हैं,
जो आसानी से गुजर जाती हैं.
फिर भी
वो ही जाड़े बहुत मिस करते हैं,
बहुत याद आते हैं.
मुझमें भी साँसे हैं, मेरे भी सपने हैं,
पराये ही सही कुछ मेरे भी अपने हैं,
प्यार की झप्पी पर मेरा भी हक़ है,
इज़्ज़त की रोटी मुझे भी पसंद है।
नागरिक किताबों में बोया हुआ अक्षर हूँ,
पूरे लिखे पत्र का ज़रूरी हस्ताक्षर हूँ।
मैं उसकी पेंटिंग बनाना चाहती हूँ अब। एक लकड़ी की नक्काशीदार मेज़ हो। किनारे पर सफ़ेद इन्ले वर्क। खिड़की के पास रखी हो और खिड़की के बाहर धूप हो। वो मेज़ पर बैठ कर काग़ज़ पर कुछ लिख रहा हो। दाएँ हाथ में क़लम और ऊँगली में फ़िरोज़ी स्याही लगी हो कि क़लम मेरी है। उसे किसी भी क़लम से फ़र्क़ नहीं पड़ता। बाएँ हाथ में सिगरेट, धुँधलाता हुआ काग़ज़ का पन्ना। मैं चाहती हूँ कि एक ही पेंटिंग में आ जाए उसका सफ़ेद कुर्ता, उसका स्याह दिल, उसके रेत के शहर, उसके सपनों का समंदर, उसकी कहानियों वाली प्रेमिकाएँ भी।
"दुनिया क्या कहेगी?और उनकी दुनिया में पता चला...," समीर के दादा जी की गरजती आवाज आज फुसफुसाहट में बदली हुई थी
"टी.वी. सीरियल और फिल्मों को बेचकर धन बटोरने के लिए झूठी कहानियाँ फैलाई गई है... अगर सच बात होती तो गौरी प्रसाद समाज के मुख्य धारा से कैसे जुड़ी रहती?
उन्हें क्यों नहीं...,"
"तुमसे बहस में कौन जीत सकता है...!"
सहानुभूतियों का दिव्यांग दर्शन
दरकते विश्वास का घना गुब्बार
अंतहीन सवालों का क्रम निरंतर चलता है -
आशंकाओ दुविधाओं विफलताओं का
एकल प्रवक्ता दैन्यता कुंठा अवसादों का
भुगतना होता है दंड अपराध विहीनता का
अपराधबोध जीवन की मृगमरीचिका का -
कभी रोके,कभी पोछे,कभी छुपाये आँसू ,
तेरे जाने के बाद बहुत काम आये आँसू ,
कभी सोचा भी के ख़ुशी से तुम्हे जाने दे,
लगे जो गले तो खुद ही उभर आये आँसू ,
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अब बारी है हम-क़दम की
पचासवाँ अंक
विषय
मुस्कान
उदाहरण
नाज़ुक सी डोर से जुड़े ये दिल,
लेकिन आस-पास के कंटीले बाड़ों से
लड़ती उनकी ये मोहब्बत...
उनके होठों पर एक कच्ची सी मुस्कान लाने के लिए
दुनिया भर से नफरत मोल लेती ये मोहब्बत...
इसी अंक से
अंतिम तिथिः 22 दिसम्बर 2018
प्रकाशन तिथिः 24 दिसम्बर 2018
प्रविष्टि प्रारूप पर ही स्वीकार्य
धन्यवाद।
शहर के झूठ में एक नकाब हमने ओढ़ लिया,
जवाब देंहटाएंवो कौन था जफ़र किसने तेरी याद में बहाये आंसू ..
सुंदर संकलन, बेहतरीन रचना
शुभ प्रभात...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाओं का चयन..
दिलखुश प्रस्तुति..
आभार...
सादर...
लाजवाब हलचल भीनी भीनी फुहार की तरह
जवाब देंहटाएंआभार मेरी ग़ज़ल को इतना मान दिया आपने ...
बेहतरीन प्रस्तुति,सभी रचनाएं उत्तम, रचनाकारों को हार्दिक बधाई आपको सहृदय आभार
जवाब देंहटाएंसस्नेहाशीष व शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंसुप्रभात
जवाब देंहटाएंइस रंगबिरंगी महफ़िल में मेरी ग़ज़ल को भी स्थान देने के लिए आभार।सभी रचनाये उच्च कोटि की हैं सभी को बधाई।
बैठ कर देखो बुजुर्गों के सिरहाने
उम्र का अनुभव वहीं अकसर मिलेगा
वाह
सुप्रभात बढ़िया संकलन किया है |मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर संकलन।
जवाब देंहटाएंवाह!!बेहतरीन संकलन ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन आदरणीय
जवाब देंहटाएंसादर
लाजवाब प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन...
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ही शानदार संकल्न सभी रचनाएँ पठनीय।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई।
बेहतरीन प्रस्तुति , सभी रचनाएँ लाजवाब , सभी रचनाकारों को बधाई
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