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सोमवार, 23 मई 2016

311...हर लिखे लफ्ज़ में जी हुई नाजायज़ साँसों की कर्ज़दार हूँ

सादर अभिवादन..
पता नही हमारे श्रीमान जी
यकबयक एक प्रस्तुति प्रकाशित कर दी 
अपने ब्लॉग में
कभी करते देखा नहीं उन्हें..

चलिए चलें अभी तक की पढ़ी रचनाएं की ओर

यशोदा मैया वारी जाये
गोपियों संग रास रचाये  बंसी अधर लगाये
मोर पँख पीतांबर सोहे  मुरली मधुर  बजाये
ग्वालों संग खेलत खेलें कालिया नाग भगाये
गोपियों को वह  सतायें राधा को मोहन भाये

क्रोध काम मद लोभ सब, हैं जी के जंजाल
इनके चंगुल जो फँसा, पड़ा काल के गाल !

परमारथ की राह का, मन्त्र मानिये एक
दुर्व्यसनों का त्याग कर, रखें इरादे नेक !


इस जीवन में कुछ बातें हैं 
में जिन्हें बयां नहीं कर सकता 
इस जीवन में कुछ रेज़गी हैं 
क्योंकि, सब समान नहीं रहता 
इस जीवन में कुछ सपने हैं!


फिर पंचों ने अपना फैसला सुनाया और कहा कि सारे तथ्यों और सबूतों की जांच करने के बाद यह पंचायत इस नतीजे पर पहुंची है कि हंसिनी उल्लू की ही पत्नी है और हंस को तत्काल गाँव छोड़ने का हुक्म दिया जाता है!


आज की शीर्षक कड़ी...
मेरे जाने के बाद
होती रहेंगी यूँ ही सुबहें
शामें भी गुजरेंगी इसी तरह
रातें कभी अलसाई सी स्याह होगीं

आज्ञा दें कल फिर आऊँगी
सायोनारा
यशोदा......


3 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ! ताज़गी भरे खूबसूरत लिंक्स ! मेरी प्रस्तुति को आज के लिंक्स में शुमार करने के लिये आपका दिल से शुक्रिया यशोदा जी ! बहुत-बहुत आभार आपका !

    जवाब देंहटाएं
  2. दिग्विजय जी बहुत बढ़िया बोध (उल्लू) कथा लेकर आये हैं आज। बधाई । सुन्दर प्रस्तुति यशोदा जी ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति
    आभार!

    जवाब देंहटाएं

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