तनिक से कुछ अधिक ही
लम्बी हो गई है
किंकर्तव्यविमूढ़ थी
काफी से अधिक रचनाएँ छूट भी गई...
निर्मल गुप्त......
कुर्सी पर बैठते ही आदमी
घिर जाता है उसके छिन जाने की
तमाम तरह की आशंकाओं से
इस पर बैठ जाने के बाद
वह वैसा नहीं रह पाता
जैसा कभी वह था नया नकोर।
अपर्णा त्रिपाठी....
जाने लोग बदल गये, या मेरा नजरिया बदल गया
कुछ तो बदला है हवाओं में, कि मौसम बदल गया
कल तक रोये जिसके लिये, उसे पल मे भुला दिया
दो दिन में दिल की धडकने बदली, दिल बदल गया
प्रफुल्ल कोलख्यान....
ओ मेरी जाँ नहीं मैं जिंदा हूँ तेरे अंदर
चाँद को पता है जानता है समंदर
पूछो चाँद से देखो क्या कहता है समंदर
घुमड़ता है जुल्फों में जो आँसू का समंदर
मनोज नौटियाल....
जला देना पुराने ख़त निशानी तोड़ देना सब
तुम्हारी बात को माने बिना भी रह नहीं सकता
मिटा दूं भी अगर मै याद करने के बहानों को
तुम्हारी याद के रहते जुदाई सह नहीं सकता ||
पानी से जब बाहर आई
और अंत में क्षमा याचना
कुछ ब्लॉग में सूचना देते समय दिनांक का ध्यान नही रहा
बुधवार 25 मई 2016 के स्थान पर बुधवार 27 मई 2016
लिख भेजी हूँ
इज़ाज़त दे यशोदा को
कल फिर मिलते हैं....
मछली बच गई मगरमच्छ से
जवाब देंहटाएंइंसानों से ना बच पाई।
वाह! बहुत सुन्दर !!!
बढ़िया प्रस्तुति सुन्दर सूत्रों के साथ । आभार यशोदा जी 'उलूक' की हवा को हवा देने के लिये :)
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारे लिंक दिए, आभार आपका !!
जवाब देंहटाएंYashoda ji,
जवाब देंहटाएंTahe dil se aapki sukrgujar hun. Appka sneh pa kar bahut khushi hoti hai.
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार!