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शुक्रवार, 20 मई 2016

308....आजकल घर में पुराना सामान कौन रखता है..??


जय मां हाटेशवरी...

आज मेरे एक  मित्र ने...
whatsapp पर ये  गजल भेजी...
भाव मन को छु गये...
पत्थरों के शहर में कच्चे मकान कौन रखता है..
आजकल चिड़ियों का भी ध्यान कौन रखता है..?
अपने घर की कलह से फुरसत मिले तो सुनें..
आजकल पराई दीवार पर कान कौन रखता है..?
हर चीज मुहैया है मेरे शहर में किश्तों पर..
आजकल लगाम में अरमान कौन रखता है..?
फ़ुर्सतें हों, यारियाँ हों, गुफ्तगू हो, कुछ सुकूँ हो..
आजकल ज़िंदगी यूं आसान कौन रखता है..??
मोहब्बत में मोल है, शराफत में तोल है..
आजकल इश्क पर जान कौन रखता है..??
मासूमियत में मुस्कुरा दें, खिलखिला के हंस पड़ें..
आजकल बच्चे यूँ नादान कौन रखता है..??
बहलाकर ले जाते हैं वृद्धाश्रम में मां बाप को..
आजकल घर में पुराना सामान कौन रखता है..??
अब पेश है...आज की कुछ चुनी हुई रचनाएं...

 राजशाही से लोकतंत्र तक लोकतांत्रिक कुत्ते और उसकी कटी पूँछ की दास्तान
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‘उलूक’
तेरी बैचैनी
भी समझ के
बाहर होती है
जो नहीं होता है
उसके लिये ही तू
किसलिये हमेशा
इतना जार
जार रोता है
अब तक भी
समझता क्यों नहीं है
प्रजातंत्र हो चुका है
सारे प्रजा के तांत्रिक
प्रजा के लिये ही
तंत्र करते हैं

ध्यान के जरिये मिटाएं अकेलापन
यदि आप ध्यान (Maditation) के लिए तैयार है, तो आप इसका अभ्यास और बढ़ाइए। ध्यान रूपी अवसर से आप स्वयं से जुड़ जाते हैँ। ऐसा माना जाता है कि उदासी मिटाने का
इससे अच्छा तरीका नहीँ है।

क्या सदैव सत्य बोला जा सकता है?
ब्रह्म ही परम सत्य है जिसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता. अपनी आत्मा को उस परम आत्मा से आत्मसात करके और उसमें स्वयं को समाहित करके ही उस निर्पेक्ष
परम सत्य का अनुभव कर सकते हैं. लेकिन इस सत्य का दर्शन और पालन एक साधारण व्यक्ति के लिए संभव नहीं है. महात्मा गाँधी ने कहा था “सत्य की खोज के साधन जितने
कठिन हैं, उतने ही आसान भी हैं। अहंकारी व्यक्ति को वे काफी कठिन लग सकते हैं और अबोध शिशु को पर्याप्त सरल।“
हमें बचपन से सिखाया जाता है "सत्यम् ब्रूयात प्रियं ब्रूयात, न ब्रूयात सत्यम् अप्रियं", लेकिन सत्य अधिकांशतः कड़वा होता है और अगर उसे प्रिय बनाना पड़े तो
फिर वह सत्य कहाँ रहेगा, अधिक से अधिक उसे चासनी में पगा अर्ध सत्य कह सकते हैं. अगर सत्य अप्रिय है तो उसे न कहना क्या सत्य का गला घोटना नहीं है? अप्रिय सत्य
कहने के स्थान पर अगर मौन का दामन थाम लिया जाय तो क्या यह असत्य का साथ देना नहीं होगा? ऐसे हालात में क्या किया जाए? आज के समय जब चारों ओर स्वार्थ और असत्य
का राज्य है, कैसे एक व्यक्ति केवल सत्य के सहारे जीवन में आगे बढ़ सकता है? लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि कुछ पल की खुशी के लिए असत्य को अपना लिया जाये.

सुख-दुःख का अधिष्ठाता 'मन
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किसी वस्तु का मूल्य एवं महत्व 
तब समझ मेँ आता है जब वह हाथ से निकल जाती है। धन की स्थिति मेँ धनवान को उसके महत्व का ध्यान नहीँ आता। वह उसे अपने लिए बड़ी ही साधारण और सामान्य वस्तु समझता
है और बिना किसी विचार के उसका उपयोग-दुरूपयोग करता है। किँतु जब वह उससे हाथ धो बैठता है, तब उसके महत्व को बार-बार याद करके रोता, कलपता और पछताता है। किसी
व्यक्ति को स्वास्थय के महत्व का भान तब तक नहीँ होता जब तक वह उसे खो नहीँ देता। यह कोई बुद्धिमानी की बात नहीँ है कि मनुष्य किसी वस्तु का महत्व तब तक समझना
ही न चाहे जब तक वह उसे सुलभ है। किसी वस्तु को खोकर उसके महत्व को समझने वाले अज्ञानियोँ के अधिकार मेँ पश्चाताप के सिवाय और कुछ नहीँ रह जाता।

एहसास के क्षण
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कैसा यह कहर,
तबाही का मंजर।
यह नीरवता,
मरघट सी उदासी
पढ़ रही मर्सिया
भोर के उजास के सपने देखती
हर ज़िन्दगी की
मौत पर।
विधाता दे दे मुझे
एहसास के कुछ क्षण

आप आये तो खयाल-ए-दिल-ए-नाशाद आया
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आज वो बात नहीं फिर भी कोई बात तो है
मेरे हिस्से में ये हल्की से मुलाकात तो है
गैर का हो के भी ये हुस्न मेरे साथ तो है
हाय किस वक़्त मुझे कब का गिला याद आया

तो फिर मरता कौन है?
आत्मा का देहांतरण होता है। तो फिर मरता कौन है ?शरीर तो जड़ है ,पाँच तत्वों का जमावड़ा है।क्रिया करनी पड़ती है ,शरीर की आत्मा के निकल जाने के बाद। आँख ,नाक
कान, मुख ,चमड़ी  सब अभी भी रहते हैं लेकिन न आँख अब देखती है न कान सुनते हैं न मुख अब  बोलता है न चमड़ी स्पर्श का अनुभव करती है।
कौन है वह जो आँख की भी आँख है ,कान का भी कान है (श्रवण है ),मुख का सम्भाषण है ,चमड़ी का स्पर्श अनुभव करता है। नासिका की गंध है ?कहाँ गया वह। उपनिषद का ऋषि
कहता है यह शरीर एक वृक्ष के समान है जिस पर दो पक्षी रहते हैं। एक जो वृक्ष के फल खाता है ,सुख दुःख का भोक्ता है और दूसरा सिर्फ साक्षी भाव से उसको ऐसा करते
हुए देखता है। वह पक्षी जो सुख दुःख का अनुभव करता है बद्धजीव है ,दूसरा परमात्मा है।


आज के लिये....
यहीं तक...
धन्यवाद।








4 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर व अनछुई रचनाएँ
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. बढ़िया हलचल प्रसतुति कुलदीप जी। आभार 'उलूक' के सूत्र 'राजशाही से लोकतंत्र तक' को स्थान देने के लिये ।

    जवाब देंहटाएं
  3. अच्छे लिंक्स। अच्छी हलचल। आभार एहसास के क्षण को स्थान देने के लिए।

    जवाब देंहटाएं

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