प्रत्येक ग्रंथ धर्म का उपदेश देता है...
पर श्री भागवत गीता कर्म का उपदेश देती है....
गीता का संदेश देते हुए...
किसी ने कुछ यूं कहा है...
यह जिस्म तो किराये का घर है; एक दिन खाली करना पड़ेगा:!!
सांसे हो जाएँगी जब हमारी पूरी यहाँ; रूह को तन से अलविदा कहना पड़ेगा:!!
वक्त नही है तो बच जायेगा गोली से भी; समय आने पर ठोकर से मरना पड़ेगा:!!
मौत कोई रिश्वत लेती नही कभी; सारी दौलत को छोंड़ के जाना पड़ेगा:!!
ना डर यूँ धूल के जरा से एहसास से तू; एक दिन सबको मिट्टी में मिलना पड़ेगा:!!
कर कर्म बिना फल की इच्छा से; वर्ना बाद में बहुत रोना पड़ेगा!!!!!!!
सब याद करे दुनिया से जाने के बाद; दूसरों के लिए भी थोडा जीना पड़ेगा:!!
मत कर गुरुर किसी भी बात का ए दोस्त:! तेरा क्या है..? क्या साथ लेके जाना पड़ेगा…!!
इन हाथो से करोड़ो कमा ले भले तू यहाँ… खाली हाथ आया खाली हाथ जाना पड़ेगा:!!
यह ना सोच तेरे बगैर कुछ नहीं होगा यहाँ; रोज़ यहाँ किसी को ‘आना’ तो किसी को ‘जाना’ पड़ेगा..
अब देखिये....मेरे पढ़े हुए में से...मेरी पसंद...
गीत
पल को इस समेट लो
वक्त मिलेगा फ़िर कहां।
मिलेगी सबको मंजिलें
नया बनेगा आशियां
कदम कदम से मिल रहे
कारवां भी चल पड़ा।
अमर क्रांतिकारी रासबिहारी बोस - इंडियन इंडिपेंडेस लीग के जनक
२२ जून १९४२ को रासबिहारी बोस ने बैंकाक में लीग का दूसरा सम्मेलन बुलाया, जिसमें सुभाष चंद्र बोस को लीग में शामिल होने और उसका अध्यक्ष बनने के लिए आमन्त्रित
करने का प्रस्ताव पारित किया गया। जापान ने मलय और बर्मा के मोर्चे पर कई भारतीय युद्धबन्दियों को पकड़ा था। इन युद्धबन्दियों को इण्डियन इण्डिपेण्डेंस लीग में शामिल होने और इंडियन नेशनल आर्मी (आई०एन०ए०) का सैनिक बनने के लिये प्रोत्साहित किया गया। आई०एन०ए० का गठन रासबिहारी बोस की इण्डियन नेशनल लीग की सैन्य शाखा के रूप में सितम्बर १९४२ को किया गया। बोस ने एक झण्डे का भी चयन किया जिसे आजाद नाम दिया गया। इस झण्डे को उन्होंने सुभाष चंद्र बोस के हवाले किया। रासबिहारी बोस शक्ति और यश के शिखर को छूने ही वाले थे कि जापानी सैन्य कमान ने उन्हें और जनरल मोहन सिंह को आई०एन०ए० के नेतृत्व से हटा दिया लेकिन आई०एन०ए० का संगठनात्मक ढाँचा बना रहा। बाद में इसी ढाँचे पर सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिन्द फौज के नाम से आई०एन०एस० का पुनर्गठन किया।
नोच ले जितना भी है जो कुछ भी है तुझे नोचना तुझे पता है अपना ही है तुझे सब कुछ हमेशा नोचना
जितना भी
नोचना है
अपनी
सोच को
उसे भी
पता है
तू जो भी
नोचेगा
अपना ही
अपने आप
खुद ही नोचेगा ।
छद्म
यह तुम हो या कोई बूँदों सा रूप धरा है
मेरे लिए तो तुम्हारा हर छद्म उन्मादपूर्ण है ...
कि बादल आये हैं
वो आँसूं भी सूख चुके हैं तप-तपकर
ढलके थे जो कोर कि बादल आये हैं
बाँध लिया है झूला मेरे प्रियतम ने
चला मैं सारा छोड़ कि बादल आये हैं
पौधे, पंछी, मानव सबकी चाह यही
बरसो पूरे जोर कि बादल आये हैं
मातॄ दिवस पर ...
सच कहूँ तो मै बहुत खुश हूँ तुमने ससुराल में सबके दिलों में अपना घर बना लिया है, तुम अपनी दुनिया में खुश हो, तुम्हारी खुशी में ही मेरी खुशी है, तुम्हारे
लौटकर आने पर सारे घर में हंसी की लहर फैल गई थी, मै चाहती थी तुम कुछ दिन रुक जाओ, लेकिन तुमने कहा माँ मुझे जाना होगा, ससुर जी मेरे हाथ की ही चाय पीते हैं,
सासु माँ मेरे बिना मंदिर नहीं जाती होगी, इनको तो यह भी नहीं मालूम कि इनकी जुराबे कहाँ रखी है? मै चुपचाप तुम्हारा चेहरा देख रही थी कि तुम कितनी जल्दी पिता
की जरूरत को भूल गई कि वो तुम्हारे बिना एक कदम भी नहीं चल पाते हैं, मुझे भी खड़े रहने में दिक्कत होती है। तुम कितनी जल्दी भूल गई कि इस घर में तुमने उन्नीस
साल बिताये थे, आज जल्दी जाने की जल्दी मची थी, लेकिन इसमें तुम्हारा कुसूर नहीं था, तुम्हारे जन्म के साथ ही यह निश्चित हो गया था कि एक दिन तुम हम सबको छोड़कर
किसी और का घर बसाने चली जाओगी। मुझे याद है, मैने कहा था हम औरतों की ज़िंदगी में यही होता है, हमें अपने प्यार की खुशबू पूरे गुलशन में बिखेरनी होती है,
आज बस इतना ही...
कुलदीप ठाकुर
वाह..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन..
सादर
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति!!
जवाब देंहटाएंबढ़िया सूत्र संयोजन कुलदीप जी । आभार 'उलूक' के सूत्र नोचने को जगह देने के लिये ।
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