जय मां हाटेशवरी...
300 अंक पूरे हो चुके हैं...
अभी सफर काफी लंबा है.....
कहते हैं....
ताश के पत्तों से महल नहीं बनता,
नदी को रोकने से समंदर नहीं बनता,
बढ़ाते रहो जिंदगी में हर पल,
क्यूंकि एक जीत से कोई सिकंदर नहीं बनता
अब चलते हैं आज की चयनित रचनाओं की ओर...
पर सब से पहले....
कहा सूंघ माथा माता ने, परम प्रिय हो तुम राम के
वन के लिए विदा करती मैं, जाओ संग अपने भाई के
सेवा में प्रमाद न करना, सुख-दुःख में यह परम गति हैं
भ्राता के आधीन रहें वे, सत्पुरुषों का यही धर्म है
दान, यज्ञ, युद्ध में मरना, इस कुल का आचार यही
पिता तुम्हारे अब राम हैं, माँ मानना सीता को ही
वन ही अब अयोध्या होगा, सुखपूर्वक तुम जाओ
दिया राम को भी आशीष, मार्ग तुम्हारा मंगलमय हो
हर बूंद नगीना हो................वज़ीर आग़ा
ख़्वाबों में फ़क़त आना
क्यूं उसका करीना हो
आते हो नज़र सब को
कहते हो, दफ़ीना हो
किसे पड़ी है तेरे किसी दिन कुछ नहीं कहने की उलूक कुछ कहने के लिये एक चेहरा होना जरूरी होता है
लिखे को पढ़ कर
लिखे पर सोचने
लिखे पर कुछ
कहने वाले कौन हैं
या किसने लिखा है
क्या लिखा है
लिख दिया है
बताने वाले
लोगों को सारा
लिखा पता होना
जरूरी नहीं होता है
स्टोपर्स
बढे चलो!
अरे भाई रुको न
क्यों हो जल्दी में!
हर मोड़ पर मिलते
उपदेश और सलाह
जिंदगी तो जैसे
1980 के जमाने का
दूरदर्शन !!
हर दस-बारह मिनट बाद ही
ब्लिंक करता दृश्य
रुकावट के लिए खेद है !
२१ वीं सदी में स्त्री की स्थिति का जिम्मेदार कौन?
हम औरते अक्सर बात करते हैं कि सदियों से मर्द औरतों पर अत्याचार करते आ रहे हैं। स्त्री को प्रताडित किया जा रहा है वगैरह वगैरह…… कभी किसी पुरुष को ये कहते
नही सुना गया कि वो भी प्रताडित होता है। आखिर क्या है सच? समाज में आज जो भी स्थिति स्त्री की है क्या उसके लिये सिर्फ पुरुष ही जिम्मेदार है? क्या स्त्री
खुद अपनी स्थिति के लिये जिम्मेदार नही?
चाहे एक पढी लिखी लडकी हो, या घरेलू लडकी, चाहे वो स्वयं अपना वर चुने या घर के सदस्य, उसके ख्वाबों में एक ऐसा लडका होता है जो उससे ज्यादा सक्षम हो, ज्यादा
आत्मनिर्भर हो। क्यों चाहती है हमेशा अपने से ज्यादा? क्या उसे अपनी क्षमता पर भरोसा नही? क्यों वह समाज में यह बात गर्व से नही कह पाती कि उसे मात्र इक सच्चा
और नेक जीवनसाथी चाहिये, उसे उसके स्टेटस, उसके सेलरी पैकेज, उसके बैंक बैलेंस से कोई लेना देना नही।
तय मान लीजिए - घनाक्षरी छंद
बिन बात हंसने जो लग जाओ दिन रात
प्रेम के हुए बीमार तय मान लीजिए।
देख के प्रिय का भाल, लाल लाल होय गाल
प्रेम का चढा खुमार तय मान लीजिए।
अंग में उमंग का जो रंग चढ जाए तब
हो गया तुम्हें भी प्यार तय मान लीजिए।
आज बस यहीं तक...
कुलदीप ठाकुर
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
आभार...
सादर
301 से अब 501 और आगे तक अब इंतजार है मेहनत के फलीभूत होता दिखने का। दिखेगा किसी दिन जरूर जिस दिन शुरु होगा दिन कुछ कहे कुछ लिखे पर कुछ लिखाये कुछ दिखाये को देख कर लोगों के कलम उठा कर कुछ कह देने का । टिप्पणीयों का शतक दिखेगा किसी दिन यहाँ और जरूर दिखेगा । आभार 'उलूक' का आज की सुन्दर प्रस्तुति में सूत्र 'किसे पड़ी है तेरे किसी दिन कुछ नहीं कहने की उलूक कुछ कहने के लिये एक चेहरा होना जरूरी होता है' को जगह देने के लिये कुलदीप जी ।
जवाब देंहटाएंआमीन..
हटाएंशुभ प्रभात ! सुंदर सूत्रों से सजी हलचल, आभार !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंक संयोजन
जवाब देंहटाएंसुंदर संयोजन। एक से एक शानदार लिंक। वाहहह
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