भाई विरम सिंह जी आ गए
संजय भाई की वापसी भी
हो ही गई...
कुछ तो विविधता मिलेगी
आप सभी को..
दो दिन से मैं पढ़ ही रही हूँ
प्रस्तुत है कुछ नयी कुछ जूनी रचनाओं की कड़िया.....
भाव की भागीरथी के , मैं किनारे देखता हूँ
आज तर्पण पा गए हैं , वेदना के छंद सारे
बाँध रखी थी गिरह जो , वीतरागी चेतना ने
मुक्त होने लग गए हैं , प्रेम के अनुबंध सारे ।।
संगीता जांगीड़.....
इसमें कितनी सच्चाई है और कितनी अफवाह यह कभी भी परमाणित नहीं हो पाता क्योंकि
दोनों पक्षों के पास अपनी बात सिद्ध करने के दसियों प्रमाण होते हैं।
हमारे देश में भी ऐसी सैंकड़ों विवादित जगहें हैं जिन्हें अंजानी शक्ति के द्वारा बाधित माना जाता है।
ऐसी ही एक इमारत राजस्थान के कोटा शहर में भी है जिसे बृजराज महल के रूप में जाना जाता है।
डॉ. सुशील कुमार जोशी...
कई दिन के
सन्नाटे में
रहने के बाद
डाली पर उलटे
लटके बेताल
की बैचेनी बढ़ी
पेड़ से उतर कर
जमीन पर आ बैठा
हाथ की अंगुलियों
के बढ़े हुऐ नाखूनों से
जमीन की मिट्टी को
कुरेदते हुऐ
लग गया करने
कुछ ऐसा जो
कभी नहीं किया
आज्ञा दें यशोदा को..
एक गीत सुनिएगा
बीस साल बाद
बहुत सुन्दर प्रस्तुति पर 'उलूक' कबाड़ी के पुराने कबाड़ में से फिर से कुछ उठा कर के आई आप :) ।
जवाब देंहटाएंआभार दूसरी बार फिर से ।
पुराने लिखे पढ़ने में अच्छे लगते हैं
हटाएंकाका जी, बच्चन जी और दुष्यन्त कुमार जी
का लिक्खा आज भी प्रासंगिक है
सादर
बढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा...
जवाब देंहटाएंआभार आप का....
बहुत बढ़िया.... यशोदाजी, आभार मुझे यहाँ स्थान देने के लिये 🙏🏼
जवाब देंहटाएंसंगीता बहन
हटाएंस्वागत है आपका
आइएगा और आते रहिएगा
नए लोग नई रचनाएँ
और नई प्रेरणा भी मिलेगी यहाँ
सादर
यशोदा