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रविवार, 1 मई 2016

289....कविता और छंद से ही कहना आये जरूरी नहीं है

सादर अभिवादन
एक उपलब्धि हासिल हुई
पाँच लिंको के आनन्द को
हम हर्षित हैं...

चलिए चलते हैं आज की पढ़ी रचनाओं की ओर.....


कहाँ से लाती हो, 
ये मेआर
नाशातो की सहर            
हुनरमंद तह.जीब,और तांजीम
सदाकत,शिद्दतो की मेआर,


वे जो अपने हैं
वे जो अपने नहीं थे
उसके बीच खड़ी मैं
निर्बाध
अनवरत  ... प्रलाप करती हूँ


पसीना, लू के थपेडे और ये झुंझलाहट
बिलकुल तुम्हारे गुस्से से तमतमाये चेहरे सी,
फिर पन्ने की, तरबूजे, खरबूजे की तरी
बिलकुल तुम्हारे, मान जाने के बाद की हँसी जैसी।


फूलों से ये भरी बगीचा
सुहानी सी खुशियों का भोर
सुगंध भरी ये मस्त हवायें
पक्षियों के गीतों का शोर.
भांति-भांति के बना बहाने


और जानेगा मुझे ?
मानो पूछ रहे हो तुम 
हाँ , शायद उसी का प्रतिदान है 
जो तुम दे रहे हो

ये है आज की शीर्षक रचना का अंश
उल्लूक टाईम्स में....सुशील कुमार जोशी
तलवार होते हैं
सच्चे होते हैं
ना खुदा के होते हैं
ना भगवान के होते हैं
ना दीन के होते हैं
ना ईमान के होते हैं
बहुत बड़ी बात होती है



आज्ञा दें यशोदा को
फिर मिलते है,,,,









8 टिप्‍पणियां:

  1. आज की सुन्दर हलचल में 'उलूक' के सूत्र 'कविता और छंद से ही कहना आये जरूरी नहीं है कुछ कहने के लिये जरूरी कुछ उदगार होते हैं' को शीर्षक सूत्र की जगह देने के लिये आभार यशोदा जी ।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बढ़िया हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत बढिया प्रस्तुति उम्दा सूत्रो के साथ.
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए धन्यवाद.

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन प्रस्तुति धन्यवाद यशोदाजी

    जवाब देंहटाएं
  5. सुन्दर लिंक संयोजन आभार

    जवाब देंहटाएं
  6. सुंदर पांच रचनाओं का चयन। मेरी रचना को स्थान देने का आभार।

    जवाब देंहटाएं

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