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शनिवार, 7 मई 2016

295 ...... मैं बिलकुल तेरे जैसा हूँ





सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष

किसी ने सच कहा  .....
अगर जिंदगी में आगे अपनी बढ़ना है, तो 
अपनी लकीर बड़ी करने की कोशिश करें, 
ना कि दूसरे की लकीर को मिटाकर छोटा करने की






बिना रीढ़ वाले ये 
जामुनी अँधेरे - से ,
आर - पार घिरे हुए 
सम्भ्रम के घेरे - से ,
       धरती की साँसों की 
       गुँजलक में बँधे हुए ,
       आते है सागर की 
       सुधियों से लदे - फँदे






जीवन की कठिन राह पर मैं  
जब हँसते हँसते चल देता हूँ    

लोगों की कडवी बातों को मैं
जब हँसते हँसते सुन लेता हूँ
तब सब मुझसे कहते है माँ 







सोचा ना था के इतनी शिद्दत से चाहूंगी तुझे कभी ,
सोचा ना था के इतनी शिद्दत से सजदा करूंगी तेरा कभी। 
तू साथ है तो लगता है के हीर गुम से अजाद हुँ मै।
सोचा ना था के तेरे आगोश में खुद को इतना महफूज पाऊंगी कभी।







आरती की लय,घंटियों में मिल
बजाती है मानो विदाई की शहनाई
बाबुल के गले से लिपटी
बिटिया के गहने फफक फ़फ़क के
गुंजा देते हैं गांव के चौबारे
उतर आये हैं,मेंहदी के सुर्ख रंग
बाबुल की आँखों में
कि लाड़ो बिसरा चली
अंगना बाबुल का






हरिवंश राय बच्चन ने क्या खूब लिखा है- 
‘’मदिरालय जाने को घर से निकलता है पीने वाला,
किस पथ पर जाऊं असमंजस में है वह भोला-भाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब, पर मैं यह बतलाता हूं,
राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।‘’



फिर मिलेंगे ...... तब के लिए
आखरी सलाम

विभा रानी श्रीवास्तव

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