जय मां हाटेशवरी...
आनंद के इस सभर में...
सब से पहले पढ़ते हैं...
आदरणीय Kailash Sharma जी की....
आध्यात्मिक यात्रा के अष्टावक्र गीता - भाव पद्यानुवाद के कुछ अंश...
सात्विक बुद्धि युक्त जो जन है, कुछ उपदेश से मुक्ति है पाता|
असत् बुद्धि जिज्ञासु जीवन भर, न बन पाता ब्रह्म का ज्ञाता||
विषय विराग मोक्ष का रस्ता, विषयों में आनंद है बंधन|
इन सब का तुम ज्ञान है करके, करो वही जो कहता है मन||
जो वाचाल, ज्ञानी, उद्योगी, तत्वबोध शांत व जड़ करता|
सुख का इच्छुक जो जन होता, सत्यत्याग इस लिए करता||
न तुम शरीर न यह तन तेरा, न तुम कर्ता या भोक्ता हो|
रहो सुखी चैतन्य व शाश्वत, तुम निरपेक्ष और साक्षी हो||
राग द्वेष ये धर्म हैं मन के, किंचित हैं न मन के गुण तुम में|
ज्ञान स्वरुप कामनारहित तुम, निर्विकार स्थित हो सुख में||
अब पेश है आज की चयनित कड़ियां...
सड़क, चाँद और मैं...तन्हा कोई नहीं
बादलों की आहट है आसमान में...आओ कुछ ख्वाब बोयें...कुछ धडकते लम्हे...जिन्दगी महज अंधी भाग तो नहीं, सुकून के दो पल, एक सच्ची वाली मुस्कराहट और बस...देखो
न नाक पर अभी अभी एक बूँद गिरी है पानी की. सुना तुमने...कुछ बूँदें पलकों के आसपास भी सिमटी हैं, धरती राह तकते तकते थक चुकी है मेरी तरह, लेकिन देखो अभी,
बिलकुल अभी वो पत्थर हिला है जरा सा....
काश हम भी इंसान होते
यूँ तो कोई नयी बात नहीं है,
इंसानियत तो बिकती ही है,
कभी तो लुटेरों का वार था,
कभी व्यापारी हथियार था,
कभी शहंशाह का मन था,
कभी कबीलों का द्वंद्व था,
ये मोह-मोह के धागे ....
" के ऐसा बे परवाह मन पहले तो ना था
चिट्ठियों को जैसे मिल गया एक नया सा पता
खाली राहें , हम आँखे मूंदे जाएं
पहुंचे कही तो बे वजह
ये मोह-मोह के धागे ....."
दीन -दुनिया से बेखबर दोनों एक दूसरे की आँखों में तब तक झांकते रहे जब तक कि दोनों की आँखे भर ना आई। भरी-भरी दो जोड़ी आँखों में खुशियाँ भरे सपने
समाये हुए थे। एक दूजे का हाथ थाम कर स्टेज से नीचे उतर कर माँ की ओर बढ़ गए। माँ ने भी आगे बढ़ कर गले लगा लिया।
बेचेहरा
है शाम ही ,कहता है सूरज चाँद से ,
अब मैं गया तू आ ,और बात क्या हो
अब चाहता है क्यूँ भला , ये "नील " भी ,
हो जाये बेचेहरा ,और बात क्या हो
हिन्दू धर्म में नारी के स्थान
हिन्दू वैदिक संस्कृति में स्त्री को पुरुष की अर्धांगिनी एवं सहधर्मिणी कहा जाता है अर्थात जिसके बिना पुरुष अधूरा हो तथा सहधर्मिणी अर्थात जो धर्म के मार्ग
पर साथ चले।इस विषय में यहाँ पर इस तथ्य की ओर ध्यान दिलाना आवश्यक है कि भारतीय संस्कृति में पुरुष बिना पत्नी के कोई भी धार्मिक अनुष्ठान नहीं कर सकते।रामायण
में भी संदर्भ उल्लिखित है कि जब श्रीराम चन्द्र जी को अश्वमेध यज्ञ करना था और सीता माता वन में थीं तो अनुष्ठान में सपत्नीक विराजमान होने के लिए उन्हें सीता
माता की स्वर्ण मूर्ति बनवाना पड़ी थी।
आज बस यहीं तक...
कुलदीप ठाकुर
बेहतरीन...
जवाब देंहटाएंसादर
Bahut badhiya..
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसंस्थापक महोदय/महोदया/ संपादक जी
जवाब देंहटाएंआपका प्रयास सराहनीय और बेहतरीन है और आपका ब्लॉग इमे के लिए चुना गया है इसलिए आपके हमने आपके व्यक्तिगत एवं आपकी टीम के प्रयास को Best Blog of the Month में प्रकाशित किया है।
एक बार विजिट कर अपनीे सुझाव अवश्य दें।
Team - i Blogger
हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ
हटाएंपाँच लिंकों का आनन्द अभी अपना पहला जन्मदिन भी नही मना पाया
और उसे बेस्ट ब्लॉग ऑप द मन्थ से सम्मानित किया आपने
सादर...
बढ़िया हलचल प्रस्तुति धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक हलचल..आभार
जवाब देंहटाएं