आज जून मास का अंतिम दिन
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मैं संस्कृत हूँ
पूरे विश्व में केवल एक संस्कृत ही ऐसी भाषा है जिसमें केवल एक अक्षर से ही पूरा वाक्य लिखा जा सकता है, किरातार्जुनीयम् काव्य संग्रह में केवल “न” व्यंजन से अद्भुत श्लोक बनाया है और गजब का कौशल्य प्रयोग करके भारवि नामक महाकवि ने थोड़े में बहुत कहा है...
न नोननुन्नो नुन्नोनो नाना नानानना ननु।
नुन्नोऽनुन्नो ननुन्नेनो नानेना नुन्ननुन्ननुत्॥
अर्थात: जो मनुष्य युद्ध में अपने से दुर्बल मनुष्य के हाथों घायल हुआ है वह सच्चा मनुष्य नहीं है। ऐसे ही अपने से दुर्बल को घायल करता है वो भी मनुष्य नहीं है। घायल मनुष्य का स्वामी यदि घायल न हुआ हो तो ऐसे मनुष्य को घायल नहीं कहते और घायल मनुष्य को घायल करें वो भी मनुष्य नहीं है। वंदेसंस्कृतम्!
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(भारवि (छठी शताब्दी) संस्कृत के महान कवि)
भारवि (छठी शताब्दी) संस्कृत के महान कवि हैं। वे अर्थ की गौरवता के लिये प्रसिद्ध हैं ("भारवेरर्थगौरवम्")। किरातार्जुनीयम् महाकाव्य उनकी महान रचना है। इसे एक उत्कृष्ट श्रेणी की काव्यरचना माना जाता है। इनका काल छठी-सातवीं शताब्दी बताया जाता है। यह काव्य किरातरूपधारी शिव एवं पांडुपुत्र अर्जुन के बीच के धनुर्युद्ध तथा वाद-वार्तालाप पर केंद्रित है। महाभारत के वन पर्व पर आधारित इस महाकाव्य में अट्ठारह सर्ग हैं। भारवि सम्भ दक्षिण भारत के महर्षि कवि के वंश भट ब्राह्मण भटनागर कायस्थ कुल में जन्मे थे। उनका रचनाकाल पश्चिमी गंग राजवंश के राजा दुर्विनीत तथा पल्लव राजवंश के
राजा सिंहविष्णु के शासनकाल के समय का है।
कवि ने बड़े से बड़े अर्थ को थोड़े से शब्दों में प्रकट कर अपनी काव्य-कुशलता का परिचय दिया है। कोमल भावों का प्रदर्शन भी कुशलतापूर्वक किया गया है। इसकी भाषा उदात्त एवं हृदय भावों को प्रकट करने वाली है। प्रकृति के दृश्यों का वर्णन भी अत्यन्त मनोहारी है। भारवि ने केवल एक अक्षर ‘न’ वाला श्लोक लिखकर अपनी काव्य चातुरी का परिचय दिया है।
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अस्य ....
“आषाढस्य प्रथम दिवसे”
तस्मिन्नद्रौ कतिचिदबलाविप्रयुक्त: स कामी,
नीत्वा मासान्कनकवलयभ्रंशरिक्तप्रकोष्ठ: ।
आषाढस्य प्रथम दिवसे मेघमाश्लिष्टसानुं,
वप्रक्रीडापरिणतगजप्रेक्षणीयं ददर्श ।
कुबेर के उस सेवक (हेममाली) यक्ष की नयी-नयी शादी हुई थी, सबेरे उठने में देर हो जाती थी|
इसलिए वह रात्रि को ही कमल के पुष्प तोड़ कर रख लेता और जब कुबेर शिव-पूजा पर बैठते तब
फूलों की टोकरी पहुंचा देता ।
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“वर्षा ऋतु की स्निग्ध भूमिका
प्रथमदिवस आषाढ-मास का
देख गगन में श्याम घनघटा
विधुर यक्ष का मन जब उचटा
खडे-खडे तब हाथ जोड़कर
चित्रकूट के सुभग शिखर पर
उस बेचारे ने भेजा था,
जिनके ही द्वारा संदेशा
उन पुष्करावर्त मेघों का
साथी बन कर उड़ने वाले
कालिदास ! सच सच बतलाना
पर-पीडा से पूर-पूर हो
थक-थक कर और चूर-चूर हो
अमल-धवल गिरि के शिखरों पर
प्रियवर ! तुम कब तक सोये थे ?
रोया यक्ष कि तुम रोये थे ?
कालिदास सच-सच बतलाना !
…….बाबा नागार्जुन
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देखें कुछ रचनाएं
माँ तुम मुझको आज दिला दो
सपनो वाली मेरी गुड़िया
वो मुझको सुन्दर लगती है
माँ तुम मुझको आज दिला दो
सपनो वाली मेरी गुड़िया
वो मुझको सुन्दर लगती है
सुलगता रहा इक शरर धीरे धीरे
जलाता रहा वो ये घर धीरे धीरे
मचाया हवाओं ने कुहराम ऐसा
गिरा टूट कर हर समर धीरे धीरे
जो
कुछ नहीं चाहता
केवल
बीतते हुए
कुछ समय में से
दो बातें
और
दो पल।
ये प्रेम ही तो है
मही वंदिनी करती गुहार
करो बैर न यूँ ही प्रहार
करते रहे घायल ये मन
चिथड़े किये आँचल-वसन
नहीं शोभता जननी पर वार
बहुविधि समझाया उनको मैंने,
कहा दूत द्वारिका से है आया।
जब मांगी विदा हाथ जोड़कर,
दहाड़ मार रोई सिगरी नगरी।।
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शब्द मुस्कुराते हैं,
शब्द खिलखिलाते हैं,
शब्द गुदगुदाते हैं,
शब्द मुखर हो जाते हैं
शब्द प्रखर हो जाते हैं
इतना होने के बाद भी
शब्द चुभते हैं
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आज बस
सादर वंदन
जो
जवाब देंहटाएंकुछ नहीं चाहता
सुन्दर अंक
आभार
सादर
बेहतरीन अंक
जवाब देंहटाएंप्रभावपूर्ण भूमिका के साथ सुंदर रचनाएँ. आपका
जवाब देंहटाएंअथक प्रयास झलकता है दीदी अंक को बनाने का !
बहुत सारा स्नेह .
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति
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