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गुरुवार, 21 जनवरी 2021

2015...लाख पर्दों में छिपा हो हीरा चमक खो नहीं सकता...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया अनीता जी की रचना से। 

सादर अभिवादन। 


गुरुवारीय अंक में आपका स्वागत है। 

बर्फ़ीली हवाएँ ठिठुरातीं हैं 

बस्तियों से गुज़रते हुए,

परिंदों को ज्ञात है 

क्या करना है कोहरे से गुज़रते हुए। 

#रवीन्द्र_सिंह_यादव 

आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें- 

कुछ ख्याल...मन पाए विश्राम जहाँ

उससे बढ़कर कुछ था होगा जमाने में

उसी को आने दो हर बात, हर तराने में

लाख पर्दों में छिपा हो हीरा चमक खो नहीं सकता

जो सब कुछ है, वह कुछ नहीं में हो, हो नहीं सकता

बसंती रंग... पोइट एंड थॉट्स

सुनो ऋतुराज जब आए

रंग फागुन संग लाए।

मिटाने रात अब श्यामल

आशा दीप जगमगाए।

नए पल्लव नयी कलियाँ

डाल संग लहराएंगी।

खिले सरसों खिले टेसू....

इस शहर के शजर... रंग बिरंगी एकता

नए पौधे दरख़्तों में बदल जाएँगे,

फिर आब- -हवा ताज़ादम होगी,

रास्ते फिर एक-दूसरे से होकर गुज़रेंगे,

यह सुनहरी मट्टी फिर से नम  होगी!

वास्तव मे माता ही है गाय...किसी के इतने पास जा

उनके चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान उभरी उन्होंने खिड़की वापस बंद की और मेरे कंधे पर हाथ रख वापस सीमेंट के चबूतरे पर बैठे और बोले "ये जो तुम गुड़ के झूँठे टुकड़े देख रहे हो ना बेटे मुझे इनसे स्वादिष्ट आज तक कुछ नहीं लगता। जब भी मुझे वक़्त मिलता हैं मैं अक्सर इसी जगह आकर अपनी आत्मा में इस गुड की मिठास घोलता हूँ।"

झरबेरिया के बेर...बोल सखी री

लाल,पीले,गुलाबी बेर देख के चच्चा की आँखों में जो चमक आई कि दुवार पर का थूक भूल गए। चच्चा खाके देखो, खाने के लिए पियारी ज़ोर देने लगी। खट्ठे-मीठे बेर देख के किसका हाथ रुकता है। इकट्ठा भीड़ भी एक- एक बेर उठाने लगी और चच्चा तो जैसे टूट ही पड़े।

*****


आज बस यहीं तक 

फिर मिलेंगे अगले गुरूवार। 

रवीन्द्र सिंह यादव 


8 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर प्रस्तुति अनुज रविन्द्र जी ।

    जवाब देंहटाएं
  2. वाकई दिल को आनंदित करने वाली रचनाओं के लिंक्स से सजा अंक, बहुत बहुत आभार मन पाए विश्राम जहाँ को स्थान देने हेतु !

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति, मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय।

    जवाब देंहटाएं

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