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शनिवार, 2 जनवरी 2021

1996.. सुरंग

हाज़िर हूँ उपस्थिति मान लें...

ईश से दुआ मांग कर ख़ुदा से प्रार्थना कर

ख़ुश प्रसन्न हो जाता इन्सान आदमी

समय समय की बात है

लड़कर हिन्दू मुसलमान हो जाता इन्सान आदमी

दूसरे खराब मैं का अच्छा होना

सारे फ़साद की जड़ है

यह सोच का कच्चा होना।

लकीर का फ़कीर होना

कहाँ तक सामयिक

यह तो तौल कर नाप लो।

वरना आत्महत्या के लिए ढूँढ़ लो

सुरंग

आधुनिक चिकित्वा में इंजेक्शन लगाने के उपकरण को सिरिंज कहा जाता है जो एक खोखली, पतली ट्यूब जैसी रचना होती है। ग्रीक भाषा के सिरिंक्स में मूलतः बांस के पोले पाईप का भाव था जिसे फूंक मारकर बजाया जाता है। किसी नलिका को फूंकने पर वायु तरंगे उसकी दीवारों से टकराती हैं जिससे ध्वनि पैदा होती है।

मेरे होने के मायने

बदलते मौसमों की हठधर्मिता पर

जरा भी फर्क नहीं पड़ने वाला

आवारा शोहदों का

सड़क से गुजरती लड़कियों पर

फब्तियां कसना यूं ही चलेगा

फेसबुक और ट्विटर पर

वक्तकटी का कारोबार बंद नहीं होगा.

विदेशिया

जहाँ रहती हो

क्या वहाँ भी उगते हैं प्रश्न

क्या वहाँ भी चिन्ताओं के गाँव हैं

क्या वहाँ भी मनुष्य मारे जाते हैं बेमौत

क्या वहाँ भी हत्यारे निर्धारित करते हैं कानून

क्या वहाँ भी राष्ट्राध्यक्ष घोटाले करते हैं

अँधेरे में

"मस्तिष्क के भीतर एक मस्तिष्क

 उसके भी अंदर एक और कक्ष

कक्ष के भीतर

 एक गुप्त प्रकोष्ठ और

 कोठे के साँवले गुहांधकार में"

एकांत में आदमी

घोंसले में आई चिड़िया से

पूछा चूज़ों ने

मां! आकाश कितना बड़ा है?

चूज़ों को

पंखों के नीचे समेटती

बोली चिड़िया

सो जाओ

इन पंखों से छोटा है.

><><><><><

पुन: भेंट होगी...

><><><><><


5 टिप्‍पणियां:

  1. सदा की तरह बेहतरीन...
    एक साल से बाहर हैं आप
    पर महसूस होने ही नहीं दिया
    आभार..
    सादर नमन..

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह शानदार प्रस्तुति।
    एक से एक रचनाएं
    नववर्ष मंगलमय हो सदा सर्वदा।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ।नव वर्ष की मंगलमय शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  4. अच्छा लगा नया ढंग पांच लिंकों के आनंद का
    नववर्ष मंगलमय हो

    जवाब देंहटाएं

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