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सोमवार, 20 जुलाई 2020

1830...हम-क़दम का नूतन अंक क्रमांक एक सौ सत्ताइस...पृथ्वी

स्नेहिल अभिवादन
स्वागत है आप सभी का
सोमवारीय अंक में
विषय दिया गया था
पृथ्वी
असंभव है परिभाषा
जो जननी है उसकी कोई भला कैसे 
परिभाषित कर सकता है
पृथ्वी अथवा पृथिवी एक संस्कृत शब्द हैं जिसका अर्थ 
"एक विशाल धरा" निकलता हैं। एक अलग पौराणिक कथा के अनुसार,महाराज पृथु के नाम पर इसका नाम पृथ्वी रखा गया। इसके अन्य नामो में- धरा, भूमि, धरित्री, रसा, रत्नगर्भा इत्यादि सम्मलित हैं। अन्य भाषाओ इसे जैसे- अंग्रेजी में अर्थ और लातिन भाषा में टेरा कहा जाता हैं। हालकि सभी नामों में इसका अर्थ लगभग सामान ही रहा हैं। फिर भी कई नामों से संबोधित करते है पृथ्वी को
भूमि, धरती, भू, धरा, महि,मेदिनी,धरा,
रसा,वसुन्धरा,विकेशी,क्षमा,अवनि, धरती, बाकी के नाम आप भी लिखिए और एक नई परिभाषा गढ़िए
सादर



कालजयी रचनाएँ

स्मृतिशेष रांगेय राघव

'हम शस्य उगाने आए थे
छाया करते नीले-नीले
झुक झूम-झूम हम चूम उठे
पृथ्वी के गालों को गीले

'हम दूर सिंधु से घाट भर-भर
विहंगों के पर दुलराते -से
मलयांचल थिरका गरज-गरज
हम आए थे मदमाते- से


कलाम को सलाम ....
manju-bhatnagar-mahima-kids-kalaam-ko-salaam.jpg
मशाल की तरह जले तुम सदैव,
आज आफ़ताब बन गए।
सागर से उठे तुम अंतरिक्ष तक,
आज पृथ्वी-पुत्र बन गए।


स्मृतिशेष केदारनाथ सिंह
जैसे जेल में लालटेन
चाँद उसी तरह
एक पेड़ की नंगी डाल से झूलता हुआ
और हम
यानी पृथ्वी के सारे के सारे क़ैदी ख़ुश
कि चली कुछ तो है
जिसमें हम देख सकते हैं
एक-दूसरे का चेहरा!


दोहे (धरा पर)
पृथ्वी सदियों से रही, है रत्नों की खान।
उसका दोहन मत करो, वो है मातृ समान।।

मानव के व्यवहार पर, है धरती लाचार।
बेचैनी में ले रही, करवट बारंबार।।

कंपती धरती दे रही, दुनिया को पैग़ाम।
ना सुधरा मानव अगर, भोगेगा अंजाम।।

नियमित पाठकों की रचनाएँ
.......................

आदरणीय अनन्ता सिन्हा
जब इस से भी हमारा मन नहीं भरता,
हम हिंसा को पूजा बनाते हैं।
शायद इसलिए क्यूंकि जगदम्बा को,
हम केवल मंदिर में ही देख पाते हैं।

क्षमा करो हे जगत- जननी वसुंधरा,
जो हम तुम्हें न भगवती मान पाते हैं।
तभी तो हर विजयदशमी हम,
पशुओं की बलि चढ़ाते है।


आदरणीय आशा सक्सेना
वे हैं महनतकश व  जुझारू
बंजर धरती पर खेले बड़े हुए
छोटी मोटी चोट से भयभीत नहीं हुए |
मैं रही घर में  मौम की गुड़िया सी
ठण्ड से बचती बचाती वर्षा में भीग जब जाती
बदलते मौसम का वार तक सहन न कर पाती
अपने को कठिन कार्य में अक्षम पाती |



आदरणीय कामिनी सिन्हा
पृथ्वी,धरती,धरणी या धरा 
चाहे जो नाम दे परन्तु 
उसका रूप और कर्तव्य 
तो एक "माँ" का ही है। 
जैसे, एक नारी का तन ही 
एक शिशु को जन्म दे सकता है 
और उसका 
पालन पोषण भी कर सकता है। 


आदरणीय अभिलाषा चौहान 'सुज्ञ'
इस ब्रह्मांड में
जीवन से परिपूर्ण
हरित-नीलाभ्र
ओ मेरी पृथ्वी!!
तुझसे ही है मेरा वजूद
अपने हरितांचल में दिया दुलार
तू है तो मैं हूँ
ओ मेरी पृथ्वी!!
मैं कृतघ्न
भूल तेरे उपकार
तेरी देह को करता छलनी


आदरणीय कुसुम कोठारी
क्षिति धरा  अडिग अचल
जब भी हुई चलायमान सचल
लिया विध्वंस  रूप विनाश
काश समझता ये आकाश ।

अनंत झुकता चला आता है
वसुधा से लिये मिलन का राग
पर वो नही  उठना चाहती
ये कोई अभिमान न विराग।

आदरणीय साधना वैद
मैं धरा हूँ .....

मैं धरा हूँ
रात्रि के गहन तिमिर के बाद
भोर की बेला में
जब तुम्हारे उदित होने का समय आता है
मैं बहुत आल्हादित उल्लसित हो
तुम्हारे शुभागमन के लिए
पलक पाँवड़े बिछा
अपने रोम रोम में निबद्ध अंकुरों को
कुसुमित पल्लवित कर
तुम्हारा स्वागत करती हूँ !


आदरणीय सुजाता प्रिय
पृथ्वी
पृथ्वी बनी पटरानी,
बनी सारे जगत की ऱानी।
लगती बड़ी ही सुहानी,
बनी सारे जगत की रानी।

हरी मखमल की चोली पहनी।
चुनरी का रंग हुआ धानी,
बनी सारे जगत की रानी।
पृथ्वी बनी......

आदरणीय सुधा देवरानी
धरती माँ की चेतावनी

मानव तू संतान मेरी  
मेरी ममता का उपहास न कर ।
सृष्टि - मोह वश मैं चुप सहती,
अबला समझ अट्टहास न कर ।

सृष्टि की श्रेष्ठ रचना तू !
तुझ पर मैने नाज़ किया ।
कल्पवृक्ष और कामधेनु से ,
अनमोल रत्नों का उपहार दिया ।


आदरणीया अपर्णा बाजपेयी
छल

प्रेम ने रोटी के बीच रख दिए कुछ सिक्के,
आवाज़ ने भाषा का पुल तोड़ दिया,
मै गुलाब में रजनीगंधा खोजती रही,
पाषाण ने पानी को कर लिया कैद अपने गर्भ में,


आदरणीय अनीता सैनी
आस की एक बूँद ....

कभी-कभी समर्पण से प्रभावित होती है 
पानी की एक बूँद से जो बाँधे रखती है 
एकनिष्ठ अस्थि-पिंजर एक  ठूँठ से 
  जो कब का संवेदनारहित हो चुका है 
 जिसमें मर चुका है प्रेम वर्षों पहले 
 सूख चुका है जीवन जिसका एक अरसे से। 

 अनायास ही मिलना चाहती है मिट्टी में,
 उस मिट्टी में जो तपती है अहर्निश 
   धरती में जो पसीजती है जीवनभर 
  अनदेखेपन की तह में तपती निर्मोही-सी।  




आदरणीय सुबोध सिन्हा 'बंजारा'
गुरुत्वाकर्षण बनाम प्यार ...

आप भी हमारे आपसी गुरुत्वाकर्षण वाले बंधन के तरह आपस में प्यार से बंध कर रहिए। अगर आप सभी प्यार से मिलजुल कर रहना सीख लेंगें तो आप के धर्मों और मज़हबों वाले तथाकथित स्वर्ग, ज़न्नत और बहिश्त, जिनकी कपोल कल्पना की गई है धर्मग्रंथों में, सब आपकी माँ या माता यानि इसी भारत में ..मुझ में ..
मेरी माँ यानि पृथ्वी पर बस जायेगा।
आप मुझे माँ कहते हैं तो .. अपनी माँ की बातें .. मेरी बातें .. मान लीजिए। अपने लिए नहीं भी मानते हों तो कम-से-कम अपनी भावी पीढ़ियों के लिए ही सही हिन्दू-मुसलमान की जगह इंसान बन जाइए ... प्लीज़ ...  बनेंगे ना ? ... आयँ ! ... बस यूँ ही


आदरणीय सुशील कुमार जोशी
अपने ग्रह को
बचाने के लिये

वो उस
पूरी की पूरी
प्रयोगशाला को

उठा के दूर
यहाँ पृथ्वी
बना कर
ले आया होगा

वापस
लौट के
ना आ जाये
फिर से कहीं
उसके पास
......
इतना ही लिख पाए लोग
कल मिलिए भाई रवीन्द्र जी से
वे आएँगे एक नए विषय के साथ
सादर..




17 टिप्‍पणियां:

  1. 🙏🙏सभी को सुप्रभात और प्रणाम। धरित्री माँ कोसमर्पित लाजवाब प्रस्तुति। सभी रचनाएँ पर्यावरण और धरती संब्ंधित चिंतन को नए आयाम देती हैं। प्रिय सुधा बहन की इन दायित्वपूर्ण पंक्तियों के साथ इस सार्थक अंक के लिए आपको आभार और शुभकामनायें आदरणीय दीदी ----
    चेतावनी समझ मौसम को कुदरत की !
    वरना तेरी प्रगति ही तुझ पर भारी होगी ।
    अब तुझ पर ही तेरे विनाश की ,
    हर इक जिम्मेदारी होगी..
    सभी रचनाकारों को शुभकामनायें। सादर🙏🙏🌹🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  2. लाजवाब प्रस्तुति।सभी रचनाएँ बेहतरीन।सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  3. अत्यंत सुंदर प्रस्तुतिकरण। रोज़ पांच लिंकों के आनंद और आकर इतनी सुंदर और प्रेरणादायक रचनाएँ पढ़ कर सुबह की शुरुवात बहुत ही सुखद होती है।
    मेरी रचना को स्थान देने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद।
    आप सबों ने जिस प्रकार मुझे स्नेह और प्रोत्साहन दिया, उसके लिए मन से आभार।
    एक विनती और है, मैं कृतज्ञ रहूँगी यदि आप लोग मुझे केवल मेरे नाम से सम्बोधित करें।
    आप सभी बड़ों को सादर प्रणाम

    जवाब देंहटाएं
  4. उम्दा लिंक संकलन |मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह!!खूबसूरत लिंकों से सजी ,मनभावन प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  6. उम्दा लिंक संकलन, यशोदा दी।

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुन्दर रचनाएं ! सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई एवं अनंत अशेष शुभकामनाएं ! मेरी रचना को आज की हलचल में स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! सप्रेम वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  8. "पृथ्वी" एक गंभीर विषय। आज की प्रस्तुति की सभी रचनाएँ चिंतन-मनन करने योग्य है ,हमें इन विषयों पर सिर्फ लिखना ही नहीं है बल्कि इसके लिए अपने सामर्थ्य के मुताबिक प्रयासरत भी रहना होगा। आज की इस विशिष्ट प्रस्तुति में मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार दी। सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  9. पृथ्वी पर बहुत शानदार सृजन आते हैं सभी रचनाकारों को बधाई।
    शानदार प्रस्तुति।
    विख्यात रचनाकारों की सुंदर रचनाएं।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।

    जवाब देंहटाएं
  10. पृथ्वी पर एक से बढ़कर एक बेहतरीन रचना यें, बेहद सुंदर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  11. बेहतरीन संदर्भ अंक..
    सभी को शुभकामनाएँ..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  12. शानदार प्रस्तुति ....पृथ्वी पर सभी रचनाएं बेहद उम्दा एवं बिगड़ते पर्यावरण के प्रति विचारणीय...
    मेरी रचना को विशेषांक में स्थान देने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद आपका।

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत ही सुंदर सराहनीय प्रस्तुति आदरणीय दी।देरी से आने हेतु माफ़ी चाहती हूँ। मेरी रचना को स्थान देने हेतु सादर आभार।

    जवाब देंहटाएं

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