मंगलवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
जीते तो जनविश्वास से मगर अब
सत्ता रुतबा और धंधा हो गई है,
लोकतंत्र में सिद्धांतों पर टिके रहना
अब गई-पुरानी कहावत हो गई है।
-रवीन्द्र
आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-
ये नज़र है कि कोई मौसम है
ये सबा है कि वबाल आया है
हम ने सोचा था जवाब आएगा
एक बेहूदा सवाल आया है
मुझे बस इतना ही सोचना है
कौनसा नाम मुझे आकृष्ट करता है
उस पर अपनी सहमती जताना है
उस पर ही सारी श्रद्धा रखनी है |
मगर इस प्रेम की छत आज भी बरसों से सूखी है
बहाने से बुला लाया जुनूने इश्क़ भी तुमको
खबर सर टूटने की सच कहूँ बिलकुल ही झूठी है
उनके जीवन को देख हम लिखा करेंगे
धुँधली बस धुँधली-सी समय की एक रेखा।
जो मूर्त स्मृतियों में बैठी स्वयं ही घट जाएगी
नहीं घटेगी धूप-सी दर्दभरी एक रेखा।
दोनों राज्यों की सीमाओं को दिखाने के लिए इस स्टेशन के बीचो-बीच एक बेंच लगाई गई है, जिस पर बाकायदा पेंट कर दोनों राज्यों की सीमाओं के बारे में बताया गया है। इसमें एक तरफ गुजरात व दूसरी ओर महाराष्ट्र लिखा हुआ है। इसका उल्लेख एक बार रेल मंत्री भी कर चुके हैं। अलग-अलग भाषाओं के राज्य होने के कारण रेलों के आने-जाने की जानकारी भी चार भाषाओं हिंदी-अंग्रेजी-मराठी व गुजराती में दी जाती है ! एक और मजे की बात ! सुरा प्रेमी और गुटका-मसाला के चहेतों को यहां थोड़ा सजग रहने की भी जरुरत है ! ऐसी कोई भी लत लात खाने का कारण बन सकती है ! क्योंकि गुजरात में शराब बंदी है तो महाराष्ट्र में गुटका बैन है!
का अगला विषय है-
'पृथ्वी'
आगामी शनिवार शाम तक हमें भेज सकते हैं।
चयनित रचनाएँ हम-क़दम के 127 वें अंक में आगामी सोमवार को प्रकाशित की जाएँगीं।
उदाहरण स्वरूप
कविवर केदारनाथ सिंह जी कविता-
ओ मेरी उदास पृथ्वी
केदारनाथ सिंह
"घोड़े को चाहिए जई
फुलसुँघनी को फूल
टिटिहिरी को चमकता हुआ पानी
बिच्छू को विष
और मुझे ?
गाय को चाहिए बछड़ा
बछड़े को दूध
दूध को कटोरा
कटोरे को चाँद
और मुझे ?
मुखौटे को चेहरा
चेहरे को छिपने की जगह
आँखों को आँखें
हाथों को हाथ
और मुझे ?
ओ मेरी घूमती हुई
उदास पृथ्वी
मुझे सिर्फ तुम...
तुम... तुम..."
- केदारनाथ सिंह
साभार: हिंदी समय डॉट कॉम
आज बस यहीं तक
बेहतरीन प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर..
बड़े मजे की बात... गुजरात में शराब बंदी है तो महाराष्ट्र में गुटका..
जवाब देंहटाएंसराहनीय प्रस्तुतीकरण
उम्दा संकलन लिंक्स का |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद रवीन्द्र जी |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचनाओं का संकलन और बहुत सुंदर प्रस्तुति। सभी रचनाओं को पढ़ कर आनंद आया और नई प्रेरणा मिली।
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर प्रकृति पर एक कविता है, यदि वह पृथ्वी के विसय आए सम्बन्धित है तो मैं उसे अगले हम कदम के लिए भेजना चाहूंगी। कृपया उसका तरीका बता दें।
सखी अनन्ता जी
हटाएंजरूर लेंगे
मैं जाउँगी और लेकर आऊँगी
सादर
हम ले आए आपकी रचना
हटाएंआप सखी श्वेता से तरीका पूछ लीजिएगा
सादर..
रोचक गुजरात महाराष्ट्र की दिशा की जानकारी ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब लिंक सभी ... आभार मेरी गज़ल और गज़ल की पंक्ति को शीर्षक में स्थान देने का ... 🙏🙏
विसय नहीं विषय और आए नहीं से लिखना चाह रही थी। टंकण की गड़बड़ी।
जवाब देंहटाएंआहिस्ते -आहिस्ते सब आ जाएगा
हटाएंस्कूल में आ गई हैं आप
मेरा मेल आई डी इसी अंक में लिक्खा है
तलाश लीजिए
सादर
आदरणीया प्रधानाचार्या जी,
हटाएंस्कूल में मुझे दाखिल करने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद।😂😂
आपका मेल आई डी ढूंढने का प्रयास किया, पर नही मिला।
इस अंक में कहां ढूँढू? प्रोत्साहन व मार्गदर्शन के लिए हृदय से आभार।
दाईं तरफ ध्यान से देखिए..
हटाएंहमसे संपर्क करें के नीचे लिखा है
सादर...
बादलों की मर्जी है, जब बरसें ... जहाँ बरसें ...जितना बरसें ..उत्तम भूमिका के साथ बेहतरीन रचनाओं की खबर देता है आज का हलचल का अंक, आभार रवींद्र जी, मुझे भी इसमें सम्मिलित करने हेतु !
जवाब देंहटाएंवाह!भूमिका बहुत उम्दा ....सिद्धांत ..कौन -से ,कैसे ?शायथ अब तो ये भी भूल गए हैं .......।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएं शानदार ।
अप्रतिम रचना संकलन
जवाब देंहटाएंसुंदर सराहनीय प्रस्तुति आदरणीय सर.मेरी रचना को स्थान देने हेतु सादर आभार .
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