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गुरुवार, 2 जुलाई 2020

1812...दोनों ही शातिर हैं लेकिन विपरीत ध्रुव हैं


सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ। 
आपका हार्दिक स्वागत है। 

         उन दोनों ने व्यापारिक हितों के लिए झगड़ा किया। 
दोनों बातचीत की टेबल पर आए। 
दोनों ही शातिर हैं लेकिन विपरीत ध्रुव हैं। 
तय हुआ घाटे की भरपाई पिछलग्गू देश में युद्ध की स्थिति पैदा करने से होगी। 
वे अपनी कार्य योजना में ऐसे लगे जैसे हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और... करोना काल के बदलते परिदृश्य में शातिरों की चाल भाँप ली गई है।     
 -रवीन्द्र 

आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-


 

नीयत और प्रवृति किसी की कहाँ बदल पाती है

शक्ल मुखौटों की अपनी असली याद  दिला जाती है 

अविनाश वाचस्पति की याद आज चिट्ठे के दिन 

'उलूक' को बहुत आती  है  बहुत आती  है।


 मेरी फ़ोटो

वक़्त के ताखे पे रखी रही उम्र की बाती
   
किस्मत गुनहगार ज़िन्दगी जलने नहीं देती !   

अब रूसवाई क्या और भला किससे करना 
  
चाक-चाक दिल मगर आँसू बहने नहीं देती !   
  

 
कम लोगों के बीच दो परिवारों या दो लोगों की आपसी रजामंदी से होने वाली शादियों को सरकार को हमेशा के लिए नियम बना देना चाहिए। यह गैर जरूरी खर्चों पर लगाम लगाएगा और दहेज के लिए होने वाली हत्याओं को कम करेगा।  सभी शादियों के लिए सरकार को एक निश्चित रकम तय कर देनी चाहिए और दिए जाने वाले उपहार भी रकम के अंदर शामिल करने चाहिए।
  
तूने हम पर कर विश्वासघात।
अपने पैरों पर किए आघात।

दोस्त की खाल में दुश्मन हो,
तुम पर है धिक्कार चीनियों,
बंद करो व्यापार।
  

 टूट जाना बचपन के सपनों का
बिना किसी शोर के
दफ़न हो गए सब
ज़रूरतों की क़ब्र में



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'सरहद'
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 शनिवार 04 जुलाई 2020 शाम तक। 


मेरी ओर से समर्पित है 1962 के भारत-चीन युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनी फ़िल्म हक़ीक़त का अमर गाना- 
वीडियो साभार :यू ट्यूब (YouTube.com)

सादर। 

रवीन्द्र सिंह यादव 


7 टिप्‍पणियां:

  1. अविनाश वाचस्पति जी को विनम्र श्रद्धाँजलि

    सराहनीय प्रस्तुतीकरण

    जवाब देंहटाएं
  2. विचारणीय भूमिका के साथ लाजवाब प्रस्तुति आदरणीय रविंद्र जी । अविनाश वाचस्पति जी को श्रद्धा सुमन अर्पित करते सुशील जी की बहुत भावपूर्ण रचना की ये पंक्तियाँ मन को छू गई -----
    चिट्ठों के जंगल में उसने एक चिट्ठा बोया है जिस दिन से बोया है चिट्ठा वो खोया खोया है
    चिट्ठे चिट्ठी लिखते हैं कोई सोया सोया है चिट्ठी लेकर घूम रहा कोई रोया रोया ------
    उलूक का ये अंदाज नया और मन को छू जानेवाला है। इसके साथ सखी सुजाता प्रिये जी की धूर्त पडोसी चीन को ललकार के रूप में लिखी रचना में समस्त देशवासियों की भावनाएं समाहित है। सरल से बाल सुलभ अंदाज में ये घुड़की वहुत शानदार रही ----------
    टीक-टॉक,शेयरिंग,यू सी ब्राउजर।
    हम सब खुश हैं उन्हें हटा कर।
    तेरे सभी सामानों का हम,
    कर रहे बहिष्कार चीनियों,
    बंद करो व्यापार।

    जेन्नी जी बढ़िया गजल,रिकी जी की सुंदर कविता और अपर्णा वाजपेयी के प्रेरक लेख के साथ
    सीमा पर बलिदान हेतु तत्पर सैनिकों की अंतिम लालसाओं और अपने साथी केअधूरे सपनों के लिए खुद को जिम्मेवार मानते हुये विचलित मन की मर्मांतक अनुभूतियों को, संजोता हकीकत फिल्म का ये गीत मेरे अत्यंत पसंदीदा गीतों में से एक है। सैनिक भी इंसान हैं। उनके भीतर भी भावनाओं के ज्वार उमड़ते हैं। हर एक को ये गीत सुनना चाहिए। ये वो पुकार है जो बलिदान के शोरोगुल में अनसुनी रह जाती है। वातानुकूलित कमरों में देश भक्ति के लिए युद्ध को अनिवार्य मानते हुये ,लोगों को ये पता नहीं एक सैनिक के बलिदान के साथ उसके अपने सपने तो मरते ही हैं उसके कई अपनों के सपनों की चिता भी उसके साथ जलती है। युद्ध स्वाभिमान और अभिमान दोनों के लिए होते हैं। दुआ करें शांति का मार्ग प्रशस्त हो । युद्ध ना हो। सभी रचनाकारों को शुभकामनायें ।आपको आभार और बधाई। सादर🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभार रेणू जी। अविनाश जी के उत्साहवर्धन से ही चिट्ठा जगत में कदम रखने की हिम्मत जुटा पाया था।

      हटाएं
  3. आभार रेणु बहन..
    बेहतरीन अंक..
    आभार ...

    जवाब देंहटाएं
  4. आभार रवींद्र जी और टिप्पणी के लिये रेणु जी का आभार भी।

    जवाब देंहटाएं

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