सादर अभिवादन।
मंगलवारीय प्रस्तुति में आपका स्वागत है।
आज विश्व हेपेटाइटिस दिवस है।
हेपेटाइटिस अर्थात लिवर में सूजन जो विभिन्न कारणों से उत्पन्न होती है जिसका मुख्य कारण हेपेटाइटिस वायरस हैं जिन्हें हेपेटाइटिस A,B,C,D,E नामों से जाना जाता है। इनमें हेपेटाइटिस B और C लगभग एक जैसे ख़तरनाक हैं किंतु हेपेटाइटिस B सर्वाधिक गंभीर एवं ख़तरनाक है। विश्वभर में 350 मिलियन संक्रामक रोग हेपेटाइटिस B के ज्ञात मरीज़ हैं। यह रोग इतना भयानक है जिसका अब तक कारगर इलाज उपलब्ध नहीं है। सुखद बात यह है कि हेपेटाइटिस से बचाव के लिए टीका (वैक्सीन ) उपलब्ध है जो एच आई वी के लिए अब तक उपलब्ध नहीं हो सका।
आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-
कभी सड़को पे हंगामा.......उर्मिला सिंह
दौलत,ओढ़न दौलत,बिछावन दौलत जिन्दगी जिसकी,वो क्या जाने भूखे पेट सोने वालों की बेबसी क्या है!!
सीना ठोक कर जो देश भक्त होने का अभिमान करते
वही दुश्मनों का गुणगान करते,बताओ मजबूरी क्या है!!
खराब समय और फूटे कटोरे समय के थमाये सब को सब की सोच के हिसाब से रोना नहीं है कोई रो नहीं सकता है..... डॉ.सुशील कुमार जोशी
‘उलूक’
ठंड रख मान भी जा
तेरा कुछ नहीं हो सकता है
अपना कटोरा
सम्भाल के किसलिये रखता है
फूटा कटोरा है
चोरी हो नहीं सकता है
मेघ घुमड़ते नाच रहे हैं
प्रवात पायल झनक रही
सरस धार से पानी बरसा
रिमझिम बूँदें छनक रही
ऐसे मधुरिम क्षण जीवन को
सुधा घूंट ही गयी पिला ।।
छू के तुझको कुछ कहा तितली ने जिसके कान में
आपको देखा अचानक बज उठी सीटी मेरी
उम्र तो बढ़ती रही पर दिल में बच्चा रह गया
आपातकाल (इमरजेंसी) 1974 का एक संस्मरण(लेख)....
ब्रजेन्द्रनाथ मिश्रा
गया कैंटोनमेंट से सेना बुलाकर पूरा शहर उसी को सौंप दिया गया था। देखते ही गोली मारने का आदेश जारी था। लोग कह रहे थे कि ऐसा हाल तो 1947 के दंगों के समय भी नहीं था। मेरे ममेरे भाई गली - गली से होकर सिविल अस्पताल पहुंच गए। वहाँ उन्होंने लाशों के चेहरे पर से चादर हटाकर मेरी पहचान करनी चाही। मैं उनमें नहीं था। इसका मायने मेरी लाश उनमें थी, जिसे कहीं फेंक दिया गया हो।
का अगला विषय है-
कॉन्टैक्ट फ़ॉर्म के ज़रिये
आगामी शनिवार शाम तक हमें भेज सकते हैं। चयनित रचनाएँ हम-क़दम के 129 वें अंक में आगामी सोमवार को प्रकाशित की जाएँगीं।
महादेवी वर्मा
"मैं नीर भरी दुख की बदली !
स्पंदन में चिर निस्पंद बसा,
क्रंदन में आहत विश्व हँसा,
नयनों में दीपक से जलते,
पलकों में निर्झरिणी मचली !
मेरा पग-पग संगीत भरा,
श्वासों में स्वप्न पराग झरा,
नभ के नव रंग बुनते दुकूल,
छाया में मलय बयार पली!
मैं क्षितिज भृकुटि पर घिर धूमिल,
चिंता का भार बनी अविरल,
रज-कण पर जल-कण हो बरसी,
नव जीवन अंकुर बन निकली!
पथ को न मलिन करता आना,
पद चिह्न न दे जाता जाना,
सुधि मेरे आगम की जग में,
सुख की सिहरन बन अंत खिली!
विस्तृत नभ का कोई कोना,
मेरा न कभी अपना होना,
परिचय इतना इतिहास यही
उमड़ी कल थी मिट आज चली!"
-महादेवी वर्मा
साभार: हिंदी समय डॉट कॉम
आज बस यहीं तक
बेहतरीन प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंज़ियादा रात तक जागरण
अनुचित है..
सादर..
सराहनीय प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंआभार रवीन्द्र जी।
जवाब देंहटाएंव्वाहहहहहह
जवाब देंहटाएंबढ़िया अंक...
सादर..
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।हमारी रचना को शामिल करने के लिए ह्रदय से आभार।
जवाब देंहटाएंमहा देवी जी की रचना कई कई बार पढ़ी जा सकती है ... बहुत आभार पटल पर रखने के लिए ...
जवाब देंहटाएंआज की हलचल भाव भीनी ... आभार मेरी ग़ज़ल को इतना मान देने के लिए ... 🙏
उम्दा प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंवाह!!बहुत खूबसूरत प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार भूमिका ,हेपेटाइटिस पर विस्तृत जानकारी।
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंक चयन सभी रचनाएं बहुत आकर्षक सुंदर।
सभी रचनाकारों को बधाई।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
शानदार भूमिका के साथ लाजवाब प्रस्तुति.... बेहद उम्दा लिंको से सजी।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।
बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआ महादेवी वर्मा की इस रचना को पटल पर रखने के लिए हार्दिक साधुवाद!--ब्रजेन्द्रनाथ
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