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शनिवार, 4 जुलाई 2020

1814... कोकिला

सभी को यथायोग्य
"क्या हम सामान्य स्वर में बातचीत/बतकही/गप्प/विमर्श नहीं कर सकते ? थोड़ी देर में ऐसा लगने लगता है जैसे लड़ाई हो रही हो...!"
"तुम्हारे हाँ में हाँ नहीं मिलाने से तुम्हारे चेहरे की भाव-भंगिमा बदल जाती है... रुष्ट होते ही सामने वाले की आवाज पर अप्रिय टिप्पणी होने लगती है...!"
"शब्दों पर ध्यान तो दिया नहीं जाता अब सबकी आवाज तो नहीं हो सकती
यह मनुज  कितना क्रूर है,
गरीबों   से    छीनता    है,
अमीरों    को   भेट    देता,
कपड़ों   से जन  अमीर है,
आज   पहचान है   कपड़े,
गुण   कोई   नहीं   देखता,
अंग्रेज़ों द्वारा भारतीय कैदियों को तरह तरह की यातनाएँ दी जाती थी।
कैदियों से पशुओं की तरह काम करवाया जाता था।
उन्हें अँधेरी कोठरियों में कैदियों को जंजीरों से बाँध कर रखा जाता था।
कोठरियां भी बहुत छोटी होती थीं और खाने को भी कम दिया जाता था।
इस व्रत में देवी के स्वरूप कोयल रुप में पूजा जाता है.
कहा जाता है कि माता सती ने कोयल रुप में भगवान शिव को
पाने के लिए वर्षों तक कठोर तपस्या की थी.
उनकी तपस्या के शुभ फल स्वरूप उन्हें पार्वती रुप मिला
और जीवन साथी रुप में भगवान शिव की प्राप्ति होती है
कोकिला
आओ न अब हम तुम साथ गाते हैं
जीवन संगीत गुनगुनाते हैं |
दोनों के स्वरों के अनुनाद से
आसमान गूंजेगा
इतिहास के पन्नों में
एक नया पृष्ठ जुङेगा |
कोयल
कभी तो मेरे आंगन आओ,
मुन्ना-मुन्नी को बहलाओ।
मृदुल कंठ कहां से पाया,
जो सारे जग को है भाया।
मैं और गद्य लेखन
थोड़ा लिखकर मन उचटता है, चाय बनाकर पी लेता हूँ,
एकाध सिगरेट पीता हूँ और टी वी का रिमोट हाथ में आ जाता है. 
हैरीपॉटर या अवेंजर्स वाली कोई फिल्म मिल गई तो
 एक तिलिस्म की दुनिया में खो जाता हूँ. सब कुछ ख़्वाब सा 
लेकिन यह ख़्वाब सा मेरे ख़्वाबों में आ नहीं पाता क्योंकि 
अपने ख़्वाब तो वही हैं- छोटे लोगों के ख़्वाब. और फिर 
कितने दिन बल्कि महीने गुज़र जाते हैं और ऐसा
 इत्तफ़ाक़ फिर आता है, वही नस्रनिगारी का उबाल. और 
हासिल होतेहैं डायरी के वही पुरानीबातों को दुहराते हुए पन्ने.
><><><
पुन: भेंट होगी
><><><

विषय जारी
125 वां विषय
"सरहद"उदाहरण...
सोचती हूँ अक्सर 
सरहदों की
बंजर,बर्फीली,रेतीली,
उबड़-खाबड़,
निर्जन ज़मीनों पर
जहाँ साँसें कठिनाई से
ली जाती हैं वहाँ कैसे
रोपी जा सकती हैं नफ़रत?
रचनाएँ आज शनिवार 04 जुलाई शाम तक
ब्लॉग सम्पर्क फार्म द्वारा


19 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद खूबसूरत प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सार्थक भूमिका। विमर्श की सनातन परंपरा तो यह है कि शस्त्रार्थ-स्थल ( युद्ध भूमि) में भी हम शास्त्रार्थ करते थे ( कुरुक्षेत्र में गीता)। आज की नई बौद्धिक संस्कृति में अब सब कुछ उलट गया है। सभ्यता की दौड़ में संस्कृति वहीं छोड़ दी और कुरुक्षेत्र उठा लाये। बहुत रोचक प्रस्तुति। आभार और बधाई!!!

    जवाब देंहटाएं
  3. एकदम सही कहा दी स्वस्थ विमर्श तो दूर की बात हैं साधारण बातचीत में भी मनमुताबिक कोई बात न हो तो उसकी गांठ मन में पड़ जाती है। मतभेद मनभेद करने में.पूर्णतया सक्षम है।
    यही वर्तमान दौर के चलन में है।
    कोकिला पर आधारित सभी रचनाएँ बहुत सुंदर हैं। आलेख भी अच्छा है।
    हमेशा की तरह सुंदर प्रस्तुति दी।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  4. कोकिला की तरह ही मीठी सुरीली प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  5. हमारी रचना 'कोयल' को लिंक करने के लिए मैं बहुत बहुत आभार व्यक्त करता हूं

    जवाब देंहटाएं
  6. इस ब्लॉग की एक्टिविटी के बारे में हमें बताएं लेखक किस प्रकार अपनी बातों को साझा करते हैं?

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. इस ब्लॉग के संयोजक/प्रस्तुतिकर्त्ता/ब्लॉगर अपनी पसंद के 5 लिंक्स चयन कर अपनी भावाभिव्यक्ति को भूमिका में लेखन कर प्रस्तुतीकरण से पाठक को अवगत करवाते हैं

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