आदरणीया उर्मिला सिंह जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
करोना-काल में
लोगों की जान
आफ़त में,
अब भी बचा है
यक़ीन
सियासतदानों की
शराफ़त में!
-रवीन्द्र
पकड़ लेते हैं पड़ोसियों का भारी थैला
जिनके अंकपत्र नहीं होते औरों की तरह
वजनदार और चमकदार !
भरती आँगन में उजियारा,
निश्छ्ल वाणी मन सहलाती
करती जीना आसान लाडली!
मौन-मौन,
मुस्काता, वो मन,
भाव-विरल,
खोता,
इक, हृदय इधर,
कोई थामे बैठा, इक हृदय उधर!
शिव. महाकाल, सावन...पम्मी सिंह 'तृप्ति'
निर्गुण,निराकार,नियंता,धारे रूप विशाल।
शिव रूपी सत् सनातनी,मुदित हुए शिवशाल।।
हलाहल कंठ में लिए, करें निज जग कल्याण।
ऊँ कारा के बोल से, करो शिवम् का ध्यान।।
बेहतरीन अंक..
जवाब देंहटाएंसभी तरह की रचना
एक मंच पर..
सादर..
क्या बात है। आदरणीय रवीन्द्र जी के स्पर्श का अनुभव सा हुआ,इस अंक को पढ़कर।
जवाब देंहटाएंसमस्त रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएँ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति रविन्द्र जी।हमारी रचना को शामिल करने के लिये हार्दिक धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंवाह! अनुज रविन्द्र जी ,सुंदर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदयतल से आभार।
धन्यवाद
बहुत ही आनन्दकर व प्रेरणादायक प्रस्तुति। पढ़ कर बहुत आनंद आया। विशेष कर भगवान शिव की स्तुतियों को।
जवाब देंहटाएंसभी बड़ों को सादर प्रणाम।
सुंदर संकलन !
जवाब देंहटाएंबहुत बढियां रचना संकलन
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति आदरणीय रविन्द्र जी | मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिकआभार | सभी रचनाकारों को शुभकामनाएं |
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार प्रस्तुति, सुंदर लिंक चयन ।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
वाह! बेहतरीन रचनाओं को प्रस्तुत किया गया है।
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंNice sir
जवाब देंहटाएंLoanonline24.com