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शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

1827 ..गर्दिश-ए-दौर किसका था

सखी आज
अपरिहार्य कारणों से व्यस्त हैं..
तो आज हमारी पसंद...
जरा ऊट-पंटांग सी रहती है
आत्मविश्वास, 
आत्मज्ञान और आत्म संयम 
सिर्फ़ यही तीन 
जीवन को बल और 
सबलता प्रदान करती है 
....
गर्दिश-ए-दौर किसका था
कुछ समझ आया कुछ नहीं आया!
वक्त थमा था उसी जगह
हम ही गुज़रते रहे दरमियान,
गजब! खेल था समझ से बाहर
कौन किस को बना रहा था,
कौन किसको बिगाड़ रहा था,
चारा तो बेचारा आम जन था,




तेरी हर आहट पर
अब नहीं  चौंकती  
कोरोना डरा नहीं मुझको
मैं हूँ क्या तू नहीं जानता|
मुझे सभी युक्तियाँ 
मालूम हो गई हैं
तुझसे छुटकारा पाने की
मैंने भी कच्ची गोलिया 
नहीं खेली हैं
जो तुझसे भयभीत रहूँ|




मेरा मन आज उदास हो गया
बैठे-बैठे तुम्हारे ख्यालों में  खो गया।

तुम्हारी बदरी सी जुल्फें
तुम्हारा हँसता हुवा चेहरा
तुम्हारे आँचल का मुझे छूना, याद आ गया
मेरा मन तुम्हारी चुहलबाजी की
यादों में खो गया
मेरा मन आज उदास हो गया।


मैं हसरतों के साथ नयी बस्तियां लिये चलता हूं, 
मैं इरादों के दरिया में कई कश्तियां लिये चलता हूं। 

जीवन का जो दस्तूर है इसे बेनकाब नहीं होने देंगे, 
मैं इसीलिए अपनी लाश की अस्थियां लिये चलता हूं।



मामला इस तरह न सुलझेगा.
मुझको उलझा के वो भी उलझेगा.

खूब रच ले तिलिस्म तू झूटा,
एक दिन ये तिलिस्म टूटेगा.

सबने गिरवीं रखीं ज़ुबा अपनी,
हम ना बोले तो, कौन बोलेगा ?
.....
.......

हम-क़दम का नया विषय
आज बस
कल विभा दीदी आ रही है
विशिष्ठ  प्रस्तुति के साथ
सादर


6 टिप्‍पणियां:

  1. भौंचक रह जाती हूँ आपके द्वारा दी औचक प्रस्तुति जो आती है

    साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात
    उम्दा लिंक्स|
    धन्यवाद मेरी रचना को स्थान देने के लिए |

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह!! बहुत ही सुंदर सहजता से संजोए लिंक सभी रचनाकारों को बधाई।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  4. मेरी रचना की पंक्ति शीर्षक में सजाने के लिए बहुत बहुत आभार यशोदा जी ,मन अभिभूत हुआ।
    सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं
  5. आनन-फानन प्रस्तुति भी
    अनोखा रंग दिखा जाती है
    सादर

    जवाब देंहटाएं

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