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बुधवार, 22 जुलाई 2020
1832..अपाहिज शहर देखिए..
8 टिप्पणियां:
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बेहतरीन..
जवाब देंहटाएंतू तो अब ख़्वाबों के भी पार हुआ जाता है
बोल क्या ऐसे भी लाचार हुआ जाता है
सादर..
सराहनीय प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंवाह!खूबसूरत प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसराहनीय !
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब आज की लिंक चर्चा ...
जवाब देंहटाएंआभार मेरी गज़ल को जगह देने के लिए ...
बहुत सुंदर प्रस्तुति पमृमी जी, भूमिका में लुभानी शब्द रचना ।
जवाब देंहटाएंशानदार लिंक चयन।
सभी रचनाकारों को बधाई
मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
सुंदर प्रस्तुति..मेरे संस्मरण को स्थान देने के लिए शुक्रिया
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