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बुधवार, 8 जुलाई 2020

1817..इक पुरानी रुकी घड़ी हो क्या ...


।। सुहानी भोर ।।
"झम झम झम झम मेघ बरसते हैं सावन के,
छम छम छम गिरतीं बूँदें तरुओं से छन के।
चम चम बिजली चमक रही रे उर में घन के,
थम थम दिन के तम में सपने जगते मन के..!!"
~ सुमित्रानंदन पंत

हर सुबह जिंदगी की नई शुरुआत थोड़ी आस्था, आशा और आसपास की मरहले से होती है।
जो खास बात भी होती है, तो इसी खास सोच के साथ आज रूबरू होते हैं ..कुछ रचनाओं के लयबद्ध अभिव्यक्तियों के हुनर से..✍
घटा घनघोर सावन की, बरसती शाम लिखता हूँ,
टपकती बूँद के हर कण, तुम्हारा नाम लिखता हूँ।

यकीं मुझपे नहीं हो तो , बरसते मेघ से पूछो-..

कमल उपाध्याय की अफ़वाह ब्लॉग से...
अरे यार तुम तो पूरे बैल हो। इस विधा में कहे गए वाक्य को लक्षणा शब्दशक्ति कहा जाता है। यहाँ मुर्ख शब्द की जगह बैल शब्द का उपयोग किया गया है। लोकतंत्र में हमें बहुत सी स्वतंत्रताएँ मिली है, उन्हीं स्वतंत्रताओ में से एक स्वतंत्रता दूसरे व्यक्ति को बैल समझने क..

⛈️⛈️


न जाने कहाँ से आती है और न जाने कहाँ को जाती है,
सुबह होने के साथ ही सड़कों,चौराहों पे नज़र आती है।

कुछ आदमी,कुछ औरत और कुछ बच्चों की शक्ल में
⛈️⛈️




देख तबाही के मंजर को, मन मेरा अकुलाता है।
एक थपेड़े से जीवन यह, तहस नहस हो जाता है ।।

करो नहीं खिलवाड़ कभी भी, पड़ता सबको भारी है।

⛈️⛈️

आ० दिगंबर नासवा जी की सुरुचिपूर्ण लेखनी संग आज बस यहीं तक..पढ़ें ग़ज़ल

यूँ ही मुझको सता रही हो क्या 
तुम कहीं रूठ कर चली हो क्या

उसकी यादें हैं पूछती अक्सर
मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या
⛈️⛈️
✌✌
हम-क़दम का नया विषय
यहाँ देखिए
✌✌

।। इति शम ।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह ‘तृप्ति’..✍

8 टिप्‍पणियां:

  1. टपकती बूँद के हर कण,
    तुम्हारा नाम लिखता हूँ।
    शानदार प्रस्तुति..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत भीनी भीनी बरसाती हलचल ...
    आभार मेरी गज़ल को आज जगह देने के लिए यहाँ ...

    जवाब देंहटाएं
  3. सुहानी भोर , तुम्हारे नाम, मैं तो बहुत बड़ा बैल हूँ, ये जो भीड़ है, इक पुरानी रुकी घड़ी, सभी की रचनाएँ बहुत अच्छी है । बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ ।
    मेरी रचना प्रकृति की लीला को स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद एवं ह्रदय से आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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