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शनिवार, 9 मई 2020

1758.. सोचती हूँ……

आप सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष

सीमांत तक आलोचना करना अच्छा लगता है,
अपना महत्त्व सूचीबद्ध हो जाना अच्छा लगता।
सुझाव-सलाह देने में तो विद्यावाचस्पति हैं,
कैसे रहते , क्यों कहते , क्या वो अध्वाति हैं!

सोचती हूँ... स्वाति ग्रोवर

 फिर मन का क्या करो
यह भी तो भारी हों जाता हैं
और आईने से भी मुँह छुपाना पड़ता हैं
वह थोड़ा ग़मज़दा होगा
हैरान  या परेशान होगा
शुरू में सब मुश्किल होगा 
बाद में आसान होगा

एक किरदार - वो लड़का संजीव सारथि 

मैंने ताज्जुब से (शायद) उसके चेहरे को देखा,
वही उदासी बरकरार थी,
मगर उसकी आँखों ने शायद,
मेरे चेहरे के भाव पढ़ लिए थे,
वो मुंह फेर कर बैठ गया,
मैं असहाय सा उसे देखता रहा,


मनुपुत्रों का विभाजन कौन करता है?
जाति ,रंग बल ,धन ,देश ,मान ,मर्यादा ,रीति संस्कार ,शिक्षा क्या है ?
वह जो हमे हमसे अलग करता है। हम देखते हैं लोग कुत्ते पालते हैं।
भेड़ ,बकरी ,मुर्गी,गाय भैंस ऊंट घोड़े बिल्ली,पक्षी ,सांप बिच्छू ,बाघ भालू ,
बन्दर आदि खूंखार हिंसक घातक पशुओं को बड़े प्रेम से पालते हैं ,नहलाते हैं ,
भोजन पानी की व्यवस्था करते हैं। उनकी सुख सुविधा के लिए स्वयं पसीना बहाते  हैं।
 आप कहेंगे की ये सब आर्थिक सुख सुविधा के लिए करते हैं.
 बात ठीक है जब ऐसे हिंसक पशु हमारे लिए लाभकारी हो सकते हैं
 तो फिर  मानव मानव के लिए पशुओं से अधिक लाभकारी नहीं हो सकता ?

जैसा मन वैसा तन  संजय कुमार कुन्दन

आधुनिक जीवन शैली की इस पागल दौड़ में थोड़ा समय बचाकर
हम अपने मन में झाँकें, थोड़ा आशावादी हों, खुलकर हँसें
तो हम अपने नथुनों से दूर कर सकेंगे अस्पताल की महक और
अपने टेबुल की दराज़ से डॉक्टरों के नए-पुराने पुरज़े हटाकर भर सकेंगे
उन खाली जगहों पर स्वस्थ मन के प्रेम भरे सन्देश...।

सब लोग अनीश अंकुर

उसके पिता पुराने ख्यालों वाले सच्चरित्र व्यक्ति थे
लेकिन माँ को धोखा देने वाला, उपर से मुस्कराने और 
भीतर से कपटी व्यक्ति अधिक पसन्द आता है। 
अपनी माँ के कामातुर व्यवहार से हैमलेट हतप्रभ है।
 तब वो वाक्य बोलता है जो शेक्सपीयर के साथ
पिछले चार सौ  वर्षों से दुहराया जा रहा है।
 ये जीवन जीने लायक है या नहीं। 
‘जियें कि न जियें’ ‘टू बी और नॉट टू बी’...


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पुनः मिलेंगे
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हम-क़दम-119 का विषय है-
'संजीदगी' 
उदाहरणस्वरूप पढ़िए नाज़िम हिकमत जी की कविता -
जीना - नाज़िम हिकमत की
कविता
जीना कोई हँसी-मजाक की चीज़ नहीं,
तुम्हें इसे संजीदगी से लेना चाहिए।
इतना अधिक और इस हद तक
कि, जैसे मिसाल के तौर पर, जब तुम्हारे
हाथ बँधे हों
तुम्हारी पीठ के पीछे,
और तुम्हारी पीठ लगी हो दीवार से
या फिर, प्रयोगशाला में अपना सफेद
कोट पहने
और सुरक्षा-चश्मा लगाये हुए भी,
तुम लोगों के लिए मर सकते हो --
यहाँ तक कि उन लोगों के लिए भी जिनके
चेहरे
तुमने कभी देखे न हों,
हालाँकि तुम जानते हो कि जीना ही
सबसे वास्तविक, सबसे सुन्दर चीज है।
मेरा मतलब है, तुम्हें जीने को इतनी
गम्भीरता से लेना चाहिए
कि जैसे, मिसाल के तौर पर, सत्तर की उम्र
में भी
तुम जैतून के पौधे लगाओ --
और ऐसा भी नहीं कि अपने बच्चों के लिए,
लेकिन इसलिए, हालाँकि तुम मौत से डरते
हो
तुम विश्वास नहीं करते इस बात का,
इसलिए जीना, मेरा मतलब है, ज्यादा
कठिन होता है।

- नाज़िम हिकमत



4 टिप्‍पणियां:

  1. आभार
    सेक्सपियर की नाटिका अथोलो पढ़वाने का लिए
    सदाबहार प्रस्तुति
    शादर नमन

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन प्रस्तुति बिभा दी ,सादर नमस्कार

    जवाब देंहटाएं
  3. सभी लोग सपरिवार सुरक्षित रहें, स्वस्थ रहें ! यही कामना है

    जवाब देंहटाएं

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