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रविवार, 13 अक्तूबर 2019

1549....मुर्दा बन सोता रहेगा ....

जय मां हाटेशवरी......
आज महर्षि वाल्मीकि  जयंती है.....

महर्षि वाल्मीकि जी ने रामायण की रचना करके हर किसी को सद्‍मार्ग पर चलने की राह दिखाई।
पावन ग्रंथ रामायण में प्रेम, त्याग, तप व यश की भावनाओं को महत्व दिया गया है।
आप सभी को महा-रिषी वालमिकी जयंती की शुभकामनाएं.....
अब पेश है आज के लिये मेरी पसंद....


मुर्दा बन सोता रहेगा ....
मर जायेंगे अहसास
सारे खोखली होगी हँसी,
साँस लेती देह बस
ये आदमी ढोता रहेगा!!
स्वर्ग जाने के लिए
बेटे की सीढी ढूँढ कर,
नर्क भोगेगा सदा ये
आदमी रोता रहेगा!!
ढूँढ लेगा चंद खुशियाँ
अपने जीने के लिए,
आदमी बिन बेटियों के
मुर्दा बन सोता रहेगा!!

इंद्रधनुष बन जाओगे क्या!
दिन भर की थकान से बदन टूट जाता है,
शाम को घर आने पर मेरे पाँव दबाओगे क्या।
ज़िन्दगी में नए रंग देखने की ख्वाहिश है,
तुम मेरा इंद्रधनुष बन जाओगे क्या।

दोहे "खुलकर हँसा मयंक"
पंचपर्व नजदीक हैं, सजे हुए बाजार।
दूकानों में आज तो, उमड़ी भीड़ अपार।।
--
मिलता है भगवान के, मन्दिर में सन्तोष।
माता जी का भुवन में, गूँज रहा उद्घोष।।
--
होता है अन्तःकरण, जब मानव का शुद्ध।
दर्शन देते हैं तभी, महादेव अनिरुद्ध।।

तलाक़
 वो प्यार मेरा अधूरा ही रह गया
जजसे पूरा समझ रही थी
कोशिश थी जिसे पूरा करने की
वो बंदगी टूट गई
-------–-------/-----

तुमसे ज़्यादा समाज ने नफ़रत की मुझसे
नाकामयाब मुहब्बत की मैंने
सहेलियों ने ताना मारा
रूह कांप उठी पर मैं वहीँ चुपचाप खड़ी
अलविदा अमन
ज़िन्दगी से ज़िन्दगी ख़ुद ज़िन्दगी ने छीन ली
हम सुखनवर हैं कि हम पे नाज़ करता है जहाँ
हाँ मगर रोटी हमारी शायरी ने छीन ली
इसीलिए संदूक से, गहने दिये निकाल।।
एक पुत्र ने माँ चुनी, एक पुत्र ने बाप।
माँ-बापू किसको चुनें, मुझे बताएँ आप?
प्रेम किया तो फिर सखे! पूजा-पाठ फ़ुज़ूल।
ढाई आखर में निहित, सकल सृष्टि का मूल।।
मानवता के मर्म का, जब समझा भावार्थ।
मधुसूदन से भी बड़े, मुझे दिखे तब पार्थ।।

सच्चाई ज़िन्दगी की
 अब तो पत्थरो में
ढल गए है हम
अब कोई दर्द महसूस नहीं होता
अब तो ज़िन्दगी में बहुत दूर
निकल गए है हम.

एक पिता की चुपचाप मौत
मरघट हो जाता है स्वयं में
हर आग चिता की तरह डराती है उसे,
चुकी हुई रोटी की भूख
चिपका देती है उसकी अंतड़ियाँ,
पल भर में लाश बने उस देह की आग ठंडी होने तक
मर चुका होता है पिता भी;
बची-खुची देह भी समा जाना चाहती है
किसी कूप में
जब जमाना करने लगता है
पाप और पुण्य का हिसाब-किताब.

धन्यवाद।


9 टिप्‍पणियां:


  1. जी बिल्कुल,आदिकवि वाल्मीकि की जयंती पर सभी को शुभकामनाएँ ।
    धर्म, समाज, राजनीति, अर्थनीति, कला-विज्ञान, भूगोल, नृत्य-संगीत, कृषि-व्यापार आदि का संपूर्ण ज्ञान वाल्मीकि रामायण में समाहित है ।
    उन्होंने राम के माध्यम से सुनीति और सत्य पथ पर चलने की प्रेरणा दी है। संसर्ग-दोष के कारण डाकू रत्नाकर के रूप में निम्नस्तरीय कार्य के दौरान ऋषियों से उनकी मुलाक़ात हुई। ऋषियों ने इनमें छुपे गुणों को पहचाना। अतः वे आदिकवि बन गये ।
    महर्षि वाल्मीकि के श्राप से ही संस्कृत के पहले श्लोक की उत्पत्ति हुई थी-
    मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः ।
    यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम् ॥
    अर्थ : हे निषाद ! तुमको अनंत काल तक (प्रतिष्ठा) शांति न मिले, क्योकि तुमने प्रेम, प्रणय-क्रिया में लीन असावधान क्रौंच पक्षी के जोड़े में से एक की हत्या कर दी।
    इस सुंदर प्रस्तुति के लिये धन्यवाद,प्रणाम।


    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ प्रभात...
    बढ़िया रचनाएँ..
    आभार आपका..
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  3. मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. अमन चाँदपुरी की स्मृति साझा करने हेतु आभार

    जवाब देंहटाएं
  5. प्रिय कुलदीप जी -- आज की प्रस्तुति के सूत्र बहुत भावुक कर गये | युवा कवी अमन चांदपुरी के बारे में पढ़कर बहुत दुःख हुआ | साहित्य के बहुत ही कमउम्र लेकिन जगमगाते सितारे का असमय अस्त होना परिवार के लिए तो मर्मान्तक ही ही साहित्य के लिए भी कम क्षति नहीं | उनकी रचनाओं के अंश पढ़कर लगा ही नहीं ये किसी नये लेखक की रचनाएँ हैं | मैं उनके नाम से परिचित नहीं थी .पर उनके बारे में पढ़कर बहुत पीड़ा हुई | और रोली अभिलाषा जी की रचना तो मानो दिवंगत कवि अमन के बेहाल पिता की अनकही व्यथा -कथा कह गयी | एक होनहार अपार संभावनाओं से भरे युवा बेटे के जाने की पीड़ा को रोली जी ने बहुत ही मार्मिकता से लिख दिया | एक जवान बेटे के साथ एक पिता के सपने और जीने का उत्साह भी मर जाता है | वे आंशिक रूप से जीवित रहते हैं | बाकि सभी रचनाकारों की रचनाएँ भी बहुत बेहतरीन रही | आपके लिंक अपनी पहचान आप रखते हैं | ढेरों शुभकामनयें और आभार आपके लिए |सभी रचनाकारों को बधाई |

    जवाब देंहटाएं
  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  7. उफ ! बाईस साल की उम्र में इतना परिपक्व लेखन करके जिंदगी को अलविदा कह देना। अमन चाँदपुरी का निधन दुःखद और भावुक कर देनेवाली घटना है।

    जवाब देंहटाएं

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