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गुरुवार, 10 अक्टूबर 2019

1546...बुराई पर अच्छाई की लक्षित / अलक्षित विजय का अभियान दो क़दम भी आगे न बढ़ा !...

सादर अभिवादन। 


रावण का 
विस्तृत इतिहास ख़ूब पढ़ा, 
तीर चलाये मनभर 
प्रतीकात्मक प्रत्यंचा पर चढ़ा; 
बुराई पर अच्छाई की 
लक्षित / अलक्षित विजय का, 
अभियान दो क़दम भी आगे न बढ़ा !
-रवीन्द्र 

आइये अब पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ -



जब सुबुद्धि आती
सभी कार्य सफल होते
समाज बहुत सचेत हो जाता
आगे बढ़ने का मार्ग खोजता
उन्नत समाज आगे आता |


मेरी फ़ोटो

जो लोग
सहेजकर सुरक्षित रखे हैं
शातिरानापन
गोटीबाजी
दोगलापन
इसे जलाना भूल गये बंधु !




चुभोए हैं काँटे, पग-पग पाँवों में तुमने,
गम ही तो बाँटे, हैं इन राहों में तूने!
सखा धर्म, निभा है कब तुझसे?
दिखा एक पल भी, रहम कहाँ तुझमें?
इक पल न तू, दे पाएगा संबल!

संग-संग न चल, ऐ मेरे दुःख के पल!



सफाई अभियान खतम हो चुका था। गवाही देने के लिए नाश्ते की प्लेट्स सड़क के किनारे पड़ी थी।आम जनता के आने-जाने के लिए सड़क पर लगे बैरिकेड हट चुके थे। लोगों की आवाजाही शुरू हो गई थी।
लोगों में सफाई अभियान की चर्चा शुरू हो गई थी।हमने सुना आज यहाँ कहीं सफाई अभियान होने वाला था। लगता है कार्यक्रम रद्द हो गया।अरे भाई कार्यक्रम रद्द नहीं हुआ है..बल्कि पूरी तरह सफल हो गया यह देखो चाय नाश्ते का बिखरा कचरा।




 मुहल्ले-टोले में ऐसा कोई परिवार नहीं था, जो हर सप्ताह सपरिवार पिकनिक मनाता हो। गरीब मास्टर साहब के इस खुशहाल परिवार को देख धनिक पड़ोसियों को तनिक ईष्या भी होती थी। हम तीनों बच्चों को स्वच्छ,सुंदर और बढ़िया वस्त्र पहने देख , वे समझ नहीं पाते थें कि इसके लिये पैसा कहाँ से आता था , पर वे नहीं जानते थें कि  हमारे वस्त्रों की धुलाई और रख रखाव पर कितना ध्यान दिया जाता था। धूप में सारे कपड़े उलटा कर ही फैलाये जाते थें , इसलिये उसका रंग नहीं उड़ता था। विद्यालय से घर आते ही हमारे यूनिफॉर्म खूंटी पर टंग जाते थें। जूता रैक में होता था।


हम-क़दम का नया विषय

आज बस यहीं तक 
फिर मिलेंगे अगली प्रस्तुति में। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

14 टिप्‍पणियां:

  1. बुराई पर अच्छाई की 
    लक्षित / अलक्षित विजय का, 
    अभियान दो क़दम भी आगे न बढ़ा

    यह आत्मचिंतन ही हम लक्ष्य की बढ़ने के लिये प्रेरित करता है। ब्लॉग जगत में अनेक बुद्धिजीवी हैं। कुछ की रचनात्मक क्षमता अधिक है और कुछ की कम। एक तरह से हम अपनी मन की बात अथवा डायरी लिखते हैं।
    हो सकता है कि जो हम लिखते हैं, दूसरों को पसंद न आये, परंतु पसंद न आने का अर्थ यह नहीं है कि हम अपनी विद्वता (शब्द कला) का प्रयोग किसी को नीचा दिखलाने के लिये करे। यह भी रावण का ही एक गुण है कि किसी भी प्रकार स्वयं को श्रेष्ठ बताना।
    सो, ब्लॉग जगत में जो कड़वाहट पिछले दिनों देखने को मिली । उसको ध्यान में रख मैंने टिप्पणी बाक्स ही हटा दिया।
    वह कहते हैं न कि ना रहे बांस ना बजेगी बांसुरी...
    आपकी प्रस्तुति सदैव ही संक्षिप्त, परंतु उपदेश परक होती है। मेरी रचना को स्थान देने के लिये आभार।
    प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ प्रभात..
    बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति..
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सुन्दर हलचल का संकलन |सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई |
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर प्रस्तुति।मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय।

    जवाब देंहटाएं
  5. व्वाहहहह
    बेहतरीन प्रस्तुति
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत अच्छी पोस्ट थी आपकी धन्यवाद
    hindi varnamala

    जवाब देंहटाएं
  7. धन्यवाद मेरी रचना शामिल करने के लिए |

    जवाब देंहटाएं
  8. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  9. शानदार प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन...

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत सुंदर प्रस्तुति
    उम्दा संकलन
    सभी रचनाकारों को खूब बधाई
    सादर नमन

    जवाब देंहटाएं

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