सादर अभिवादन आ गया अक्टूबर काफी दिनों से प्रतीक्षा थी आओ अक्टूबर आओ सितम्बर पहाड़ तोड़ने में असफल रहा... अब आपकी बारी है..गर आप भी असफल रहे तो ..ये फावड़ा नवम्बर का पकड़ा देना.. ...हो गई काफी बक-बक ...चलिए रचनाएँ देखें..
क्रोध क्या है? एक सुलगती अगन है, आग विनाश का प्रति रुप जब धरती है, जलाती आसपास और स्व का अस्तित्व है, क्रोध अपने से जुड़े सभी का दहन करता है। हो गया आज को काम कल मनाएँगे बापू का जनमदिन इससे पहले आज का विषय इक्यानबेवाँ विषय पर्दा / पर्दे / परदा / चिलमन / उदाहरण.. पूरा कर लें मनभेद इस से अच्छा माहौल आगे होना भी नहीं है झूठ सारे लिपटे हुऐ हैं परतों में पर्दे में नहाने की जरूरत भी नहीं है बन्द रखनी हैं बस आँखें
आज वृद्ध दिवस पर भी चिन्तन मंथन होना चाहिए, बड़ों का तिरस्कार अनेक घरों में होने लगा है। महानगरों में ही नहीं मीरजापुर जैसे छोटे शहर में,फिर वे कहाँ जाएँ... प्रस्तुति में एक हृदय को छूने वाली रचना है ,इस संदर्भ में.. मैंने भी यहाँ के वृद्धाश्रम और समाजसेवियों का असली चेहरा देखा है.. बारिश में भींगने के कारण पिछले चार-पांच दिनों से गंभीर रूप से अस्वस्थ हूँ। स्थिति यह है कि बिस्तरे पर से कुर्सी पर बैठने की क्षमता भी नहीं रही। अतः होटल के अपने कमरे में एकांत चिंतन कर रहा हूँ । भविष्य में वृद्धाश्रम में शरण लेने की जब भी इच्छा होती है, तो एक पत्रकार के रुप में निरीक्षण के दौरान यहाँ की स्थिति को देखकर हृदय कंतित हो जाता है। ऐसे निस्सहाय स्त्री- पुरुष किस तरह से मूलभूत सुविधाओं से वंचित यहाँ जीवन गुजार रहे हैं। हाँ, किसी विशेष अवसर पर समाज सेवक यहाँ अवश्य पहुंच जाते हैं , कुछ फल, मिठाई अथवा वस्त्र आदि लेकर , उद्देश्य उनका अपना फोटो समाचर पत्रों में प्रकाशित करना होता है। मिष्ठान को देख ये वृद्ध किस तरह से टुकुर- टुकुर ताकते है, आपने क्या कभी किसी वृद्धाश्रम में जा कर इसकी अनुभूति की है ? किसी की वेदनाओं को समझने के लिये हमें उसका साक्षात्कार करना होगा। उक्ति है न- " जाके पांव न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई ।" कभी-कभी मुझे तो लगता है कि अपने शहर के संकटमोचन मंदिर के बाहर बैठे भिक्षुक की पंक्ति में सम्मिलित हो जाना, इस तरह के वृद्धाश्रम से बेहतर होगा । कम से कम उन्हें सुबह से ही चाय ,समोसा ,ब्रेड और भी कुछ ना कुछ भक्तगण देते ही रहते हैं। ठंड में कंबल इन्हें इतना पर्याप्त मिलता है कि वह उसे बेच भी देते हैं। बात मान,सम्मान एवं स्वाभिमान की रही , तो वह इन वृद्धों के लिये दोनों ही स्थान पर नहीं है। वृद्धाश्रम में वे बंधक जैसे अवश्य है।
हमेशा की तरह दी आपकी प्रस्तुति श्रेष्ठ होती है। प्रणाम।
हल्की फुलकी भूमिका के साथ अक्टूबर का पहला अंक और पिछले अंक की छाया के रूप में सुरीला अमर गीत | दूसरा गीत भी बेहतर | सभी सराहनीय सूत्र | शशि भाई की मार्मिक टिप्पणी से वृद्ध दिवस के बारे में ज्ञात हुआ और शब्द चित्र में उकेरी वृद्धावस्था की असहायता की कल्पना कर मन बहुत विकल हो गया | बढती भौतिकता और घटती संवेदनाओं के बीच वृद्धजनों की उपेक्षा एक सामाजिक विकार के रूप में फ़ैल रहा है | श्रवण के देश में वृद्ध-आश्रमों की बढती संख्या बहुत बड़ा दुर्भाग्य है| सभी याद रखना होता कि हरेक को इस दशा से गुजरना है | एक शायर का शेर याद आ गया --
दुनिया भी अजीब साराये फानी देखी,
हर चीज यहाँ की आनी जानी देखी,
जो आके न जाये वो बुढ़ापा देखा,
ओर जा के न आये वो . जवानी देखी!!
खैर , मेरी एक रचना उन बुजुर्गो के नाम जो अपने घर आँगन में सघन छांह भरे बरगद के समान है | जो उनकी कद्र जानते हैं उन्ही के मन के भाव ----
बाबा की आखों से झांक रही स्नेह की छांव सुहानीहै मेरे लिए सुधारस पावन नयन कोर से छलका पानी है !!
नित मेरी राह निहारा करते धुंधले तरल नयन गदगद से , घर की दीवार को थामे बैठे - बाबा छाँह भरे बूढ़े बरगद से ; खुले है द्वार मन और घर के- हर ताला बेमानी है !
शुक्र है बदौलत बूढ़े बाबा की आबाद आंगन -मेरे घर का - लरजते हाथ दुआओं वाले - घना साया मेरे सर का - उनसे ही गाँव बसा मेरा - अपनेपन की निशानी है
नाज़ करे , न करें गिला
बैठे लिए भीतर बचपन मेरा प्यार भरे दो बोल के भूखे भूला देते हर अवगुण मेरा मन भीतर लहराती यादों की फसलें धानी है!!
सार्थक , भावपूर्ण अंक के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय दीदी । 🙏🙏
बहुत अच्छी प्रस्तुति भुमिका मोहक ,सभी सूत्र बहुत लुभावने है । मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार। शशि भाई का लिखा हृदय वेदना से भर गया, न जाने जिस देश में दुश्मन भी अगर मेहमान बनकर आते तो उसे सत्कार मिलता है, उस देश में बुजुर्गो की ऐसी अवस्था पढ़ मन ग्लानि से भर गया । सामाजिक संस्थाओं का भरोसा छोड़ स्वयं जूड़ना चाहिए हर उस व्यक्ति को जिसमें थोड़ी भी संवेदना बची हो । सभी रचनाकारों को बधाई।
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आज वृद्ध दिवस पर भी चिन्तन मंथन होना चाहिए, बड़ों का तिरस्कार अनेक घरों में होने लगा है। महानगरों में ही नहीं मीरजापुर जैसे छोटे शहर में,फिर वे कहाँ जाएँ...
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति में एक हृदय को छूने वाली रचना है ,इस संदर्भ में..
मैंने भी यहाँ के वृद्धाश्रम और समाजसेवियों का असली चेहरा देखा है..
बारिश में भींगने के कारण पिछले चार-पांच दिनों से गंभीर रूप से अस्वस्थ हूँ। स्थिति यह है कि बिस्तरे पर से कुर्सी पर बैठने की क्षमता भी नहीं रही। अतः होटल के अपने कमरे में एकांत चिंतन कर रहा हूँ । भविष्य में वृद्धाश्रम में शरण लेने की जब भी इच्छा होती है, तो एक पत्रकार के रुप में निरीक्षण के दौरान यहाँ की स्थिति को देखकर हृदय कंतित हो जाता है। ऐसे निस्सहाय स्त्री- पुरुष किस तरह से मूलभूत सुविधाओं से वंचित यहाँ जीवन गुजार रहे हैं। हाँ, किसी विशेष अवसर पर समाज सेवक यहाँ अवश्य पहुंच जाते हैं , कुछ फल, मिठाई अथवा वस्त्र आदि लेकर , उद्देश्य उनका अपना फोटो समाचर पत्रों में प्रकाशित करना होता है। मिष्ठान को देख ये वृद्ध किस तरह से टुकुर- टुकुर ताकते है, आपने क्या कभी किसी वृद्धाश्रम में जा कर इसकी अनुभूति की है ? किसी की वेदनाओं को समझने के लिये हमें उसका साक्षात्कार करना होगा। उक्ति है न-
" जाके पांव न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई ।"
कभी-कभी मुझे तो लगता है कि अपने शहर के संकटमोचन मंदिर के बाहर बैठे भिक्षुक की पंक्ति में सम्मिलित हो जाना, इस तरह के वृद्धाश्रम से बेहतर होगा । कम से कम उन्हें सुबह से ही चाय ,समोसा ,ब्रेड और भी कुछ ना कुछ भक्तगण देते ही रहते हैं। ठंड में कंबल इन्हें इतना पर्याप्त मिलता है कि वह उसे बेच भी देते हैं।
बात मान,सम्मान एवं स्वाभिमान की रही , तो वह इन वृद्धों के लिये दोनों ही स्थान पर नहीं है।
वृद्धाश्रम में वे बंधक जैसे अवश्य है।
हमेशा की तरह दी आपकी प्रस्तुति श्रेष्ठ होती है। प्रणाम।
कटु सत्य से परिचित कराती आपके विचार ।
हटाएंपढ़ कर इस पीड़ा को भोगना मुश्किल है ,तो जो सहते होंगे ,उनकी व्यथा का अंदाज लगाना भी मुश्किल
शीघ्र स्वास्थलाभ करें। कोशिश करें गिलोय की एक गोली (हिमालया की गुडुचि) रोज लेने की।
हटाएंकर्मभोग ही बड़े भैया
हटाएंजब भी लगता हूँ ,अब संभल जाऊँगा
फिसल के पुनः वहीं आ जाता हूँ।
आप ने जो दवा बतायी है, वह मंगा लेता हूँ।
प्रणाम।
व्वाहहहह..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन..
सादर...
सस्नेहाशीष संग असीम शुभकामनाएं छोटी बहना
जवाब देंहटाएंआपकी भूमिका लेखन बहुत प्यारी रहती है
लाजबाब प्रस्तुतीकरण
उम्दा लिंक्स |
जवाब देंहटाएंसुंदर और पठनीय रचनाओं के सूत्रों से सजी आज की प्रस्तुति बहुत अच्छी लगी दी।
जवाब देंहटाएंनया विषय रोचक है उम्मीद है एक से बढ़कर रचनाएँ पढ़ने को मिलेगी।
सादर आभार ,
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के।लिए
सुन्दर अंक। आभार यशोदा जी।
जवाब देंहटाएंपर्दा है पर्दा ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब गीत के साथ सुन्दर रचनाओं का संकलन ...
आभार मेरी रचना को शामिल करने के लिए ...
हल्की फुलकी भूमिका के साथ अक्टूबर का पहला अंक और पिछले अंक की छाया के रूप में सुरीला अमर गीत | दूसरा गीत भी बेहतर | सभी सराहनीय सूत्र | शशि भाई की मार्मिक टिप्पणी से वृद्ध दिवस के बारे में ज्ञात हुआ और शब्द चित्र में उकेरी वृद्धावस्था की असहायता की कल्पना कर मन बहुत विकल हो गया | बढती भौतिकता और घटती संवेदनाओं के बीच वृद्धजनों की उपेक्षा एक सामाजिक विकार के रूप में फ़ैल रहा है | श्रवण के देश में वृद्ध-आश्रमों की बढती संख्या बहुत बड़ा दुर्भाग्य है| सभी याद रखना होता कि हरेक को इस दशा से गुजरना है | एक शायर का शेर याद आ गया --
जवाब देंहटाएंदुनिया भी अजीब साराये फानी देखी,
हर चीज यहाँ की आनी जानी देखी,
जो आके न जाये वो बुढ़ापा देखा,
ओर जा के न आये वो . जवानी देखी!!
खैर , मेरी एक रचना उन बुजुर्गो के नाम जो अपने घर आँगन में सघन छांह भरे बरगद के समान है | जो उनकी कद्र जानते हैं उन्ही के मन के भाव ----
बाबा की आखों से झांक रही
स्नेह की छांव सुहानीहै
मेरे लिए सुधारस पावन
नयन कोर से छलका पानी है !!
नित मेरी राह निहारा करते
धुंधले तरल नयन गदगद से ,
घर की दीवार को थामे बैठे -
बाबा छाँह भरे बूढ़े बरगद से ;
खुले है द्वार मन और घर के-
हर ताला बेमानी है !
शुक्र है बदौलत बूढ़े बाबा की
आबाद आंगन -मेरे घर का -
लरजते हाथ दुआओं वाले -
घना साया मेरे सर का -
उनसे ही गाँव बसा मेरा -
अपनेपन की निशानी है
नाज़ करे , न करें गिला
बैठे लिए भीतर बचपन मेरा
प्यार भरे दो बोल के भूखे
भूला देते हर अवगुण मेरा
मन भीतर लहराती
यादों की फसलें धानी है!!
सार्थक , भावपूर्ण अंक के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय दीदी । 🙏🙏
पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं ! माँ का आशीर्वाद सभी पर बना रहे
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति भुमिका मोहक ,सभी सूत्र बहुत लुभावने है । मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
जवाब देंहटाएंशशि भाई का लिखा हृदय वेदना से भर गया, न जाने जिस देश में दुश्मन भी अगर मेहमान बनकर आते तो उसे सत्कार मिलता है, उस देश में बुजुर्गो की ऐसी अवस्था पढ़ मन ग्लानि से भर गया ।
सामाजिक संस्थाओं का भरोसा छोड़ स्वयं जूड़ना चाहिए हर उस व्यक्ति को जिसमें थोड़ी भी संवेदना बची हो ।
सभी रचनाकारों को बधाई।
बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसादर
मेरी रचना को मंच पर स्थान देने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया यशोदा दीदी।
जवाब देंहटाएंSimply wanted to inform you that you have people like me who appreciate your work.
जवाब देंहटाएंDefinitely a great post.satta King satta khabar